हालांकि हाल के वर्षों में कोयला आधारित इस्पात निर्माण का कुछ भाग उत्पादन के स्वच्छ स्वरूपों को दे दिया गया है मगर यह बदलाव बहुत धीमी गति से हो रहा है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के वर्ष 2050 के नेटजीरो परिदृश्य के मुताबिक 'इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस' क्षमता की कुल हिस्सेदारी वर्ष 2050 तक 53 प्रतिशत हो जानी चाहिये। इसका मतलब है कि 347 मैट्रिक टन कोयला आधारित क्षमता को या तो छोड़ने अथवा रद्द करने की जरूरत होगी और 'इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस' की 610 मैट्रिक टन क्षमता को मौजूदा क्षमता में जोड़ने की आवश्यकता होगी। ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर में भारी उद्योग इकाई की कार्यक्रम निदेशक केटलिन स्वालेक ने कहा, ‘‘स्टील उत्पादकों और उपभोक्ताओं को डीकार्बनाइजेशन की योजनाओं के प्रति अपनी महत्वाकांक्षा को और बढ़ाने की जरूरत है। हालांकि स्टील उत्पादन में कोयले के इस्तेमाल में कमी लायी जा रही है लेकिन यह काम बहुत धीमी रफ्तार से हो रहा है। कोयला आधारित उत्पादन क्षमता में वृद्धि कर रहे विकासकर्ता भविष्य में इसकी कीमत अरबों में चुकाने का खतरा मोल ले रहे हैं।”
E3G के वरिष्ठ नीति सलाहकार कटिंका वागसेथर के अनुसार, 'वैश्विक इस्पात उत्पादन क्षमता को धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से स्वच्छ उत्पादन मार्गों की ओर बढ़ते देखना उत्साहजनक है। लेकिन जीईएम की रिपोर्ट यह भी स्पष्ट रूप से रेखांकित करती है कि कोयले से अपेक्षित बदलाव देखने से हम अभी भी कितने दूर हैं। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रियाई स्टील निर्माता वोएस्टालपाइन की हालिया रीलाइनिंग घोषणा से पता चलता है कि यद्यपि यूरोप स्वच्छ स्टील उत्पादन के लिए पाइपलाइन के मामले में अग्रणी है, फिर भी यूरोपीय स्टील निर्माता अभी भी स्वच्छ स्टील में बदलाव के अवसर की महत्वपूर्ण खिड़कियां खो रहे हैं और इसके बजाय उच्च-उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों को लॉक कर रहे हैं।' अंत में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस्पात उद्योग को डीकार्बोनाइजेशन योजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए और कोयला मुक्त उत्पादन विधियों का रुख करने में तेजी लानी चाहिए। साथ ही, सरकारों, इस्पात उत्पादकों और उपभोक्ताओं को समान रूप से एक टिकाऊ और पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार भविष्य बनाने के अवसर का लाभ भी उठाना चाहिए।
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