घटने की जगह बढ़ गयी है दुनिया की कोयला-आधारित स्‍टील निर्माण क्षमता - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

गुरुवार, 20 जुलाई 2023

घटने की जगह बढ़ गयी है दुनिया की कोयला-आधारित स्‍टील निर्माण क्षमता

coal-based-steel-plant
ग्‍लोबल एनर्जी मॉनिटर (Global Energy Monitor) की ताजा रिपोर्ट यह कहती है कि दुनिया में स्‍टील उत्‍पादन के लिये ‘ब्‍लास्‍ट फर्नेस- बेसिक ऑक्‍सीजन फर्नेस’ पद्धति का इस्‍तेमाल करने वाली कोयला आधारित उत्‍पादन क्षमता वर्ष 2021 के 350 एमटीपीए के मुकाबले 2022 में बढ़कर 380 एमटीपीए हो गयी है। यह ऐसे वक्‍त हुआ है जब लंबी अवधि के डीकार्बनाइजेशन लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिये दुनिया की कुल उत्‍पादन क्षमता में कोयले की हिस्‍सेदारी में नाटकीय रूप से गिरावट आनी चाहिये। ग्‍लोबल स्‍टील प्‍लांट ट्रैकर के डेटा के वार्षिक सर्वेक्षण में पाया गया है कि कोयला आधारित स्‍टील उत्‍पादन क्षमता में वृद्धि का लगभग पूरा काम (99 प्रतिशत) एशिया में ही हो रहा है और चीन तथा भारत की इन परियोजनाओं में कुल हिस्‍सेदारी 79 प्रतिशत है। ध्यान रहे, एशिया कोयला आधारित इस्पात उत्पादन का केंद्र है, जहां 83% चालू ब्लास्ट फर्नेस, 98% निर्माणाधीन और 94% आगामी सक्रिय होने वाली भट्टियां हैं। इसको देखते हुए यह जरूरी है कि जलवायु आपदा से बचने के लिए पूरे एशिया में निवेश संबंधी फैसले तेजी से बदले जाएं। नई तकनीक, ग्रीन स्टील की मांग और कार्बन की कीमतों के साथ वैश्विक स्तर पर बाजार बदल रहा है। एशियाई उत्पादकों के सामने एक विकल्प है, चाहे वे दशकों से अधिक कोयले में निवेश करें, या भविष्य के इस्पात क्षेत्र में निवेश करें। इतिहास में ऐसा पहली बार है जब भारत कोयला आधारित स्‍टील उत्‍पादन क्षमता के विस्‍तार के मामले में चीन को पछाड़कर शीर्ष पर पहुंच गया है। भारत में कोयला आधारित ‘ब्‍लास्‍ट फर्नेस-बेसिक ऑक्‍सीजन फर्नेस’ क्षमता का 40 प्रतिशत हिस्‍सा विकास के दौर से गुजर रहा है, जबकि चीन में यही 39 फीसद है।


हालांकि हाल के वर्षों में कोयला आधारित इस्पात निर्माण का कुछ भाग उत्पादन के स्वच्छ स्‍वरूपों को दे दिया गया है मगर यह बदलाव बहुत धीमी गति से हो रहा है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के वर्ष 2050 के नेटजीरो परिदृश्‍य के मुताबिक 'इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस' क्षमता की कुल हिस्‍सेदारी वर्ष 2050 तक 53 प्रतिशत हो जानी चाहिये। इसका मतलब है कि 347 मैट्रिक टन कोयला आधारित क्षमता को या तो छोड़ने अथवा रद्द करने की जरूरत होगी और 'इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस' की 610 मैट्रिक टन क्षमता को मौजूदा क्षमता में जोड़ने की आवश्‍यकता होगी। ग्‍लोबल एनर्जी मॉनिटर में भारी उद्योग इकाई की कार्यक्रम निदेशक केटलिन स्‍वालेक ने कहा, ‘‘स्‍टील उत्‍पादकों और उपभोक्‍ताओं को डीकार्बनाइजेशन की योजनाओं के प्रति अपनी महत्‍वाकांक्षा को और बढ़ाने की जरूरत है। हालांकि‍ स्‍टील उत्‍पादन में कोयले के इस्‍तेमाल में कमी लायी जा रही है लेकिन यह काम बहुत धीमी रफ्तार से हो रहा है। कोयला आधारित उत्‍पादन क्षमता में वृद्धि कर रहे विकासकर्ता भविष्‍य में इसकी कीमत अरबों में चुकाने का खतरा मोल ले रहे हैं।”


E3G के वरिष्ठ नीति सलाहकार कटिंका वागसेथर के अनुसार, 'वैश्विक इस्पात उत्पादन क्षमता को धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से स्वच्छ उत्पादन मार्गों की ओर बढ़ते देखना उत्साहजनक है। लेकिन जीईएम की रिपोर्ट यह भी स्पष्ट रूप से रेखांकित करती है कि कोयले से अपेक्षित बदलाव देखने से हम अभी भी कितने दूर हैं। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रियाई स्टील निर्माता वोएस्टालपाइन की हालिया रीलाइनिंग घोषणा से पता चलता है कि यद्यपि यूरोप स्वच्छ स्टील उत्पादन के लिए पाइपलाइन के मामले में अग्रणी है, फिर भी यूरोपीय स्टील निर्माता अभी भी स्वच्छ स्टील में बदलाव के अवसर की महत्वपूर्ण खिड़कियां खो रहे हैं और इसके बजाय उच्च-उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों को लॉक कर रहे हैं।' अंत में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस्पात उद्योग को डीकार्बोनाइजेशन योजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए और कोयला मुक्त उत्पादन विधियों का रुख करने में तेजी लानी चाहिए। साथ ही, सरकारों, इस्पात उत्पादकों और उपभोक्ताओं को समान रूप से एक टिकाऊ और पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार भविष्य बनाने के अवसर का लाभ भी उठाना चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं: