जगदीश यादव
किसी भी व्यक्ति को अधिकार है कि वो राजनीति में आए। लेकिन आमतौर पर देखा जाता है कि अपने करियर की ढलान पर फिल्मी तमाम फिल्मी सितारे राजनीति का नकाब ओढ़ लेते हैं और मतदाता उन्हें अपने क्षेत्र का जनप्रतिनिधि पाकर गदगद हो जाती है और वह चुनाव जीत जाते है। अभी कुछ घंटे पहले यह खबर सामने आई की अभिषेक बच्चन अपने पिता अमिताभ व मां जया की तरह राजनीति में आ रहें हैं । लेकिन इसके बाद तुरंत कहा जाने लगा कि उक्त खबर फेक है। अगर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में फिल्म जगत के लोगों को शानदार स्थान मिला। फिल्म जगत की ऐसी कम ही हस्तियां हैं जो राजनीति में आकर जन सरोकार की राजनीति से उनका वास्ता रहता हो। आमतौर पर वह पार्टी का एक कथित ऐसा चेहरा हो जाते हैं जिसे देख कर भीड़ जुटे। शायद यही कारण है कि ऐसे लोगों को राज्यसभा से सांसद बना दिया जाता है। वैसे राजनीति के जानकार व आम भारतीय से सरोकार रखने वालों की माने तो ऐसे सेलिब्रिटी संसद और विधानसभा में पहुंच तो जाते हैं लेकिन जन सरोकार के मुद्दों और काम से इनका कोई वास्ता नहीं होता है। ऐसे लोगों को यह भी पता नहीं होता है कि चावल से लेकर सब्जी का मूल्य क्या है और उनके क्षेत्र के लोग किस परेशानी या फिर समस्याओं का सामना कर रहें हैं। सच तो यह भी है कि कई बार उन्हें अपने क्षेत्र की पूरी जानकारी भी नहीं होती है। देश के तमाम पार्टियों को इस मानसिकता से अलग हटकर काम करना होगा कि, सेलिब्रिटी उनकी नाव को पार लगा सकते हैं। कारण इंटरनेट और एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस दौर में एक रिक्शावाला भी दुनिया को मुट्ठी में रखकर चलता है। गांव के पान की दुकान हो या फिर शहर का काफी हाउस, हर छोर से भारत की एक बड़ी आबादी देश दुनिया की खबर ही नहीं क्रिया कलाप पर नजर रख रही है। खासकर भारत के युवा अब सेलिब्रिटी जैसे लोगों को अपने देश के भाग्य का फैसला नहीं करना देना चाहते हैं कारण देश के भाग्य के साथ ही उनका भी, भूत, भविष्य और वर्तमान जुड़ा हुआ है। तमाम युवाओं का मानना है कि उक्त सेलिब्रिटी या सितारे इनपर पहले ही लोग अपना प्यार व धन इस कदर लूटा चुके होते हैं कि उनके कई पीढ़ी के इन सब की आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन जब इनके करिअर ढ़लान पर होता है तो तमाम सितारे राजनीति में आने के लिए तमाम हथकंडे आजमाने लगते हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर समाजवाद और सबका साथ सबका विकास के इस कथित दौर में सेलिब्रिटी या सितारे ही क्यों राजनीति में भेजे जाते हैं। भारत के लोग इनके जाल में फंसकर उन्हें वोंट देकर अपना भूत, भविष्य और वर्तमान क्यों खराब करते हैं। क्या उनके गांव, चौपाल, इलाके या क्षेत्र में समझदार मेहनती और ईमानदार युवाओं की कमी है जो राजनीति में आकर देश, समाज का विकास नहीं कर पाएगें। सच तो यह है कि ऐसे युवाओं की कमी नहीं है। लेकिन इन्हें राजनीति के कथित 'माफियावाद' के कारण मौका ही नहीं मिलता है। जबकि सेलीब्रेटी या सितारों की बात करे तो इनके पास कोई अभाव ही नहीं होता। इनका जीवन सुखमय ही नहीं महासुखों से लबालब होता है। इन्हें आम जन जीवन की पीड़ा और सरोकारों की जानकारी नहीं होती और अपवाद छोड़ दे तो इनके पास सबकुछ होता लेकिन इसके बाद ही राजनीति में इन्हें ही लेने के लायक समझा जाता है। सच तो यह है कि क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के राजनीतिक पार्टियों के तमाम निचले स्तर के तमाम नेता, कर्मी और समर्थकों की माने तो उन्हें बस सीढ़ी बनाया जा रहा लेकिन जब बात उचित सम्मान या जगह देने की हो सभी को वही उपयुक्त लगते हैं जिनके माथे पर तेल हो। बहरहाल देश के तमाम युवाओं की राय है कि अगर देश की तमाम राजनीतिक पार्टियों की मानसिकता यही रही तो भारत की जनता के लिए आने वाला दौर बेहद बुरा साबित हो सकता है। वहीं देश की जनता को भी ऐसे सेलिब्रिटी या सितारों को अपने सिर पर बैठाने से पहले सोचना होगा कि ऐसे लोग उनका भूत, भविष्य और वर्तमान संवारेंगे या फिर अपना।
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