दूसरा कारण है कुछ क्षेत्रों से ‘सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम’ (एएफएसपीए) का हटाया जाना। इससे सुरक्षा-बल कानूनी सुरक्षा से वंचित हो गए और चाहते हुए भी उपद्रवियों के विरुद्ध कोई सख्त कदम उठाने से हिचकते रहे। तीसरा कारण है बाहरी ताकतों का हस्तक्षेप। प्राप्त जानकारी के अनुसार चीन और म्यांमार मणिपुर के अलगाववादी गुटों को उकसता है, उन्हें हथियारों की आपूर्ति करता है और इस तरह से वहां की स्थिति को खराब कर प्रदेश की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने से नहीं चूकता। इस के अलावा अफीम की खेती और नार्को-आतंकवाद में वृद्धि के साथ-साथ म्यांमार से अवैध घुसपैठ ने मणिपुर की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है। खबर है कि पहाड़ियों पर बसा कुकी समुदाय अफीम की खेती करता है। चूंकि प्रदेश में और ख़ास तौर पर पहाड़ी इलाकों में बेरोजगारी बहुत है, ऐसे में वहां के बेरोजगार युवकों को अफीम की खेती रास आ रही है। इस के अलावा म्यांमार से लगातार घुसपैठ भी बढ़ी है। म्यांमार से आने वाले लोगों के लिए पहाड़ी इलाकों में आसानी से छिपना और स्थानीय समुदाय के लोगों में लसना-बसना सुगम है। इन लोगों को भी रोज़गार का सबसे आसान तरीका अफीम की खेती लगता है।मैतेई समुदाय का आरोप है कि कुकी अवैध आप्रवासियों की सहायता कर रहे हैं, जिससे भूमि और संसाधनों पर संघर्ष हो रहा है। मणिपुर में 2017 में सरकार बनाने के बाद से ही भाजपा की कोशिश राज्य में अफीम की खेती और घुसपैठ रोकने की रही है। इसके लिए राज्य सरकार ने पहले ड्रोन के जरिये अफीम की खेती की जानकारी हासिल की। फिर उन्हें नष्ट करने की कोशिश शुरू हुई। कुकी समुदाय को लगा कि इससे उसके रोजगार का साधन छिन जाएगा। इसके बाद से ही कुकी समुदाय नाराज था। रही-सही कसर पूरी कर दी बाहरी फंडिंग से पोषित यहां के सक्रिय उग्रवादी समूहों ने।माना जाता है कि मणिपुर में करीब 26 उग्रवादी समूह सक्रिय हैं। उनमें से एक ऐसा भी है जिसकी कोशिश बांग्लादेश, दक्षिणी म्यांमार और मणिपुर के हिस्सों को मिलाकर अलग देश बनाने की है।
गौरतलब है कि कुछ समय पूर्व मणिपुर में हिंसा के दौरान कुकी-बहुल इलाकों के वन-विभाग के सारे दफ्तर और चौकियां जला दिए गये थे। वन विभाग के दफ्तरों को निशाना इसलिए बनाया गया, क्योंकि अफीम की खेती और मादक पदार्थों की तस्करी की ज्यादातर जानकारी इन्हीं दफ्तरों में रिकार्ड के रूप में रखी गई थी। खबर यह भी है कि मैतेई समुदाय की एक नाबालिग लड़की का कुकी समुदाय के कुछ उग्रवादियों ने आईएसआई की तर्ज़ पर जघन्य हत्या की थी। यह वीडियो नेट पर उपलब्ध है । इसी का बदला लेने के लिए बाद में मैतेई समुदाय के लोग प्रतिहिंसा पर उत्तर आये। यहाँ पर अस्सी के दशक की एक बात याद आ रही है।केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा आयोजित एक सप्ताह तक चलने वाले किसी आयोजन में भाग लेने के लिए इम्फाल/मणिपुर जाना हुआ। स्वागत-भाषण में स्थानीय आयोजनकर्त्ता ने सभी सहभागियों को समझाया कि कृपया शाम सात बजे के बाद होटल से कहीं बाहर न निकलें।यहाँ माहौल ठीक नहीं है। छिटपुट जातीय उपद्रव कभी भी होते हैं यहाँ। लगभग चालीस साल पहले की यह बात इस बात का प्रमाण है कि मणिपुर भी प्रायः हर-हमेशा कश्मीर की तरह ही अशांत रहा है और हमारी किसी भी सरकार ने वहां की सामजिक-राजनीतिक स्थिति को सुधारने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं किये।
एक बात और. इधर, असामाजिक तत्वों द्वारा सच्चे-झूठे वीडियो और समाचारों को समाज में विषक्त्ता, अशांति और उन्माद फैलाने की गरज़ से वायरल करने की होड़-सी मची हुयी है। क्या सही है और क्या ग़लत, यह निर्णय कर पाना मुश्किल है।सोशल मीडिया पर डाली गयी ऐसी विवादित,भ्रामक और उत्तेजक सामग्री की पड़ताल के लिए आचार-संहिता को और कठोर बनाने की ज़रूरत है। चंद्रायन द्वारा चाँद तक उड़ान भरने की सुखद कल्पना से भले ही हम रोमांचित हो रहे हों मगर सच यह भी है कि धरती पर घटित हो रही कुत्सित और अमानीय घटनयें हमें उतना ही विक्षुबध और उद्विग्न भी कर रही हैं।मणिपुर इस समय अपने जातीय, धार्मिक और सामाजिक-आर्थिक संकट के कठिनतम दौर से गुजर रहा है, इसलिए वहां पर स्थायी स्थिरता और सद्भाव को बहाल करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।
डा० शिबन कृष्ण रैणा
सम्प्रति बंगलौर से,
skraina123@gmail.com
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