वाट्सएप पर फोरवर्ड मैसेज पढ़ने का अवसर मिला. सामाजिक कार्यकर्ता को पाठ पढ़ाया जा रहा था कि कोई भी संघ अथवा संगठन, एसोसिएशन,काउंसिल के पदधारी जब भी कहीं या किसी कार्यालय में पत्राचार आदि करता है तो उसमें पत्रांक ,ज्ञापन, पता तारीख रहना आवश्यक होता है.तब जाकर औरचारिक पत्र कहलाता है, नहीं तो अनौपचारिक पत्र कहलाता है.तो उस पत्राचार का कोई महत्व नहीं रहता है.और तो और पत्राचार के पहले कार्यकारिणी समिति (Executive Body ) की Approvel की अवश्यकता भी होती है.ये सब कार्यालय पत्राचार की सिस्टम है.यह भी पाठ पढ़ाया गया कि आपके प्रेषित ई-मेल पर किसी सत्यता पर संदेह न हो ख्याल रखे .इस तरह से भविष्य में न करें तो अच्छा है अन्यथा हम दिखाने के लिए बाध्य करेंगे.श्री एस. के. लौरेंस से अनुरोध है कि कृपया इस बात पर ध्यान देंगे. तब मुझे न्यायाधीश वीएम तारकुंडे जी काे प्रेषित पोस्टकार्ड पर ही संज्ञान लेने की बात सामने आने लगी.अप्रैल 1997 में मैसूर सेंट्रल जेल से किसी अरुलदास से एक पत्र न्यायाधीश वीएम तारकुंडे जी के नाम से मिला.यह एक पोस्टकार्ड था जिसमें तमिलनाडु और कर्नाटक के सीमावर्ती इलाकों में हो रहे उल्लंघनों को सूचीबद्ध किया गया था. हमें यानी न्यायाधीश वीएम तारकुंडे जी को अपने समाचार माध्यमों के माध्यम से कभी पता ही नहीं चला कि ये घटनाएँ वास्तव में सीमावर्ती क्षेत्रों में हो रही थीं. मैं न्यायाधीश वीएम तारकुंडे जी नामक अधिवक्ता जॉन विंसेंट की सेवाओं को याद करना चाहता हूं जो आज मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ में प्रैक्टिस करते हैं, और मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के अधिवक्ताओं के बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे हैं. वह तुरंत मैसूर सेंट्रल जेल गए और लोगों से मुलाकात की. वह चौंकाने वाली खबर लेकर वापस आया जिसने हमें इस मुद्दे पर तथ्यात्मक खोज करने का संकल्प दिलाया. 1997 में और 1998 में सेलम, इरोड और कोयंबटूर जिलों में तमिलनाडु और कर्नाटक के सबसे अंदरूनी सीमा क्षेत्रों में बड़ी कठिनाई के साथ जारी तथ्यान्वेषण से हमें पता चला कि कुछ दिनों, हफ्तों या महीनों में नहीं बल्कि अवैध हिरासत में रखा गया था.ऐसे मामले जिनमें लोगों को हिरासत में रखा गया था.विभिन्न रूपों में हिरासत में यातना देना, सबसे भीषण रूपों में महिलाओं के खिलाफ हिरासत में हिंसा. जिम्मेदार पुलिस कर्मी हर स्तर पर थे, यहां तक कि स्वयं श्री देवाराम भी तमिलनाडु सरकार के पूर्व डीजीपी, जो उन दिनों संयुक्त एसटीएफ का नेतृत्व कर रहे थे.
यहां पर प्रेषित पत्र के आलोक दमन का अंत करने का प्रयास किया गया.जो कानूनी प्रक्रिया और औपचारिक/अनौपचारिक पत्र को लेकर विवाद नहीं हुआ.और न ही किसी संघ, संगठन, महासंघ या परिषद् के माध्यम से पत्र प्रेषित करने को कहा गया.और न किसी वकील के माध्यम से आने को कहा गया.उक्त मूल प्रति को साक्ष्य मानकर कार्रवाई की गई. ऐसा प्रतीक हो रहा है कि कमी हम ईसाइयों में है क्योंकि हम संगठित होकर किसी भी सरकार से बात नहीं करते ना दबाव ही बनाते हैं?यहां पर वाट्सएप ग्रुप को चाहिए था कि एसके लौरेंस के चौका पर छक्का मारना.जितने लोग वाट्सएप के अंदर के माथापच्ची कर रहे हैं.सभी सड़क पर उतरकर सरकारी नीतियों व तुष्टिकरण करने की धज्जिया उड़ाते.हम बस जाति/क्षेत्र में बंटे हुए हैं जिसका फायदा हमेशा से सरकार और मिशनरी संस्था के लोग उठाते है.इस समय बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग में ईसाई समुदाय को प्रतिनिधित्व नहीं देने पर खेमाबाजी शुरू कर दी गयी है. जब केंद्र सरकार के द्वारा एंग्लो-इंडियन समुदाय का संवैधानिक आरक्षण समाप्त कर दिया गया.तब एसके लौरेंस ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को ई-मेल या ट्वीट नहीं किए कि लोकसभा और विधानसभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय का मनोनीत होने का अधिकार समाप्त न किया जाए.इस लिए वाट्सएप पर मुद्दा नहीं बना. सुशील लोबो लिखते है कि पत्रकार भाई आप ने जबर्दस्त ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय और मिशनरीस का इतिहास बताए और ध्यान इस ओर दिलाया है.इसके लिए साधुवाद और धन्यवाद.ईसाई समुदाय के बीच बढ़ती आपसी ईगो और अपनी डफली अपनी राग अलापने के कारण समस्या उत्पन्न हो रही है. उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय की तरह हम ईसाई समुदाय के पास ठोस वोट बैंक नहीं रहने के होना ज्वलंत समस्याओं में एक कारण है.हमारी सरकार व मिशनरीस ही है.शायद इसलिए किसी ईसाई को मनोनीत नहीं किया गया है.सरकार पर जरूर जब सब मिल कर दबाव बनायेंगे.
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