बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन : प्लास्टिक पॉल्यूशन-वैश्विक समस्या और समाधान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 1 अगस्त 2023

बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन : प्लास्टिक पॉल्यूशन-वैश्विक समस्या और समाधान

संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस साल के विश्व पर्यावरण दिवस का मुख्य विषय ‘बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ घोषित किए जाने के बाद प्लास्टिक प्रदूषण एक बार फिर से चर्चा में है। संयुक्त राष्ट्र की स्टडी के मुताबिक पूरे विश्व में हर साल 400 मिलिटन टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से सिर्फ 50 फीसदी का ही फिर से प्रयोग होता है और सिर्फ 10 प्रतिशत की ही रिसाइकिलिंग हो पाती है। ऐसे में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक कचरा हमारे पर्यावरण को किसी न किसी रूप में नुकसान पहुंचा रहा है, जिसमें 19 से 23 मिलियन टन प्लास्टिक हमारे पहाड़ों, तालाबों, नदियों और समुद्र में पहुंच जाता है।


महासागरों में प्लास्टिक प्रदूषण की स्थिति

1-महासागर हमारी पृथ्वी पर न सिर्फ जीवन के प्रतीक हैं, बल्कि पर्यावरण संतुलन में भी प्रमुख भूमिका अदा करते हैं। पृथ्वी पर जीवन का आरम्भ महासागरों से माना जाता है, जिनमें असीम जैव विविधता का भंडार समाया है। पृथ्वी का लगभग सत्तर प्रतिशत भाग महासागरों से घिरा है। पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का लगभग सत्तानवे प्रतिशत जल महासागरों में समाया हुआ है। महासागरों की विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगर पृथ्वी के सभी महासागरों को एक विशाल महासागर मान लिया जाए तो उसकी तुलना में पृथ्वी के सभी महाद्वीप एक छोटे द्वीप से प्रतीत होंगे।

2-हाल के वर्षों में महासागरों में बढ़ता प्रदूषण चिन्ता का विषय बनता जा रहा है। अरबों टन प्लास्टिक का कचरा हर साल महासागरों में समा जाता है। आसानी से विघटित नहीं होने के कारण यह कचरा महासागरों में जस का तस पड़ा रहता है। अकेले हिन्द महासागर में भारतीय उपमहाद्वीप से पहुंचने वाली भारी धातुओं और लवणीय प्रदूषण की मात्रा प्रतिवर्ष करोड़ों टन है। विषैले रसायनों के रोजाना मिलने से समुद्री जैव विविधता भी प्रभावित होती है। लेकिन वायु और अन्य प्रकार के प्रदूषण से समुद्र के इस कदर प्रदूषित होते जाने को लेकर उसी अनुपात में चिन्ता नहीं दिखाई देती।

3-गौरतलब है कि प्रशांत महासागर पृथ्वी पर सबसे बड़ा महासागर है। पृथ्वी की सतह का यह लगभग तीस प्रतिशत हिस्सा है। इस महासागर की गहराई पैंतीस हजार फुट और इसका आकार त्रिभुज की तरह का है। प्रशांत महासागर में करीब पच्चीस हजार द्वीप हैं। अटलांटिक महासागर क्षेत्रफल और विस्तार की  दृष्टि से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा महासागर है। इसके पास पृथ्वी का  इक्कीस प्रतिशत से अधिक भाग है। अटलांटिक महासागर का आकार अंग्रेजी के अंक आठ यानी 8 की संख्या के जैसा है। इस महासागर की कुछ वनस्पतियां  खुद से चमकती हैं, क्योंकि यहाँ सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती। हिंद महासागर दुनिया का तीसरा सबसे बढ़ा महासागर है। यह धरती का लगभग चौदह प्रतिशत हिस्सा है। हिन्द महासागर को रत्नसागर नाम से भी जाना जाता है। हिन्द महासागर इकलौता ऐसा महासागर है, जिसका नाम किसी देश के नाम पर रखा गया है। अंटार्कटिका महासागरों में चौथा सबसे बड़ा महासागर है। इसको आस्ट्रल महासागर के नाम से भी जाना जाता है। इस महासागर में आइसबर्ग यानी पहाड़ की तरह दिखते बर्फ के विशालकाय टुकड़े तैरते हुए देखे जाते हैं। अंटार्कटिका की बर्फीली जमीन के अन्दर चार सौ से भी अधिक झीलें हैं। आर्कटिक महासागर पांच महासागरों में सबसे छोटा और उथला महासागर है। इसे उत्तरी ध्रुवीय महासागर भी कहते हैं। सर्दियों में यह महासागर पूर्णतः समुद्री बर्फ से ढ़का रहता है। 

4-हम सांस लेने के लिए जिस आक्सीजन का प्रयोग करते हैं, उसकी दस फीसद मात्रा हमें समुद्र से ही प्राप्त होती है। समुद्र में मौजूद सूक्ष्म बैक्टीरिया या जीवाणु आक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं। जो पृथ्वी पर मौजूद जीवन के लिए बेहद जरूरी है। समुद्र में प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण की वजह से ये बैक्टीरिया पनप नहीं पा रहे हैं, जिसके कारण समुद्र में आक्सीजन की मात्रा भी घट रही है। पहले ही जलवायु परिवर्तन या अन्य वजहों से समुद्रों की प्रकृति में अक्सर तेज बदलाव होता देखा जा रहा है, जो कभी व्यापक विनाश का कारण बन सकता है। अगर हम समय रहते नहीं चेते तो यह पशु-पक्षियांे के साथ-साथ इंसानों के लिए भी बहुत बड़ा खतरा बन सकता है।


समुद्र में कचरा फैलाने वाले देश

चीन 88 लाख मीट्रिक टन

इंडोनेशिया 32 लाख मीट्रिक टन

फिलीपींस 19 लाख मीट्रिक टन

वियतनाम 18 लाख मीट्रिक टन

श्रीलंका 16 लाख मीट्रिक टन

मिश्र 10 लाख मीट्रिक टन

थाईलैंड 10 लाख मीट्रिक टन

मलेशिया 09 लाख मीट्रिक टन

नाइजीरिया 09 लाख मीट्रिक टन

बांगलादेश 08 लाख मीट्रिक टन

अमेरिका 03 लाख मीट्रिक टन


पहाड़ों पर प्लास्टिक प्रदूषण की हालत-

इसी तरह हजारों टन कचरा पहाड़ों पर हर वर्ष पर्यटक लोग फेंककर आ जाते हैं। उसमें भी मुख्य रूप से प्लास्टिक एवं पॉलिथीन का कूड़ा ही होता है। विश्व की बड़ी से बड़ी पहाड़ी चोटियों पर हजारों टन कूड़ा बिखरा पड़ा है जो प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियर पिघलने, असमय अत्यधिक वर्षा एवं असमय सूखे का कारण बन रही है। यह कू़ड़ा फेंकने का दुष्कर्म अगर समय रहते बन्द नहीं हुआ तो मानव वनस्पति एवं जीव-जन्तु का विनाश अवश्यमभावी है। अभी हाल ही की जानकारी में पता लगा की अकेले माउन्ट एवरेस्ट पर 35,000 किलो कूड़ा हटाने की योजना नेपाल सरकार ने बनाई है। विशेषज्ञों का कहना है कि माउन्ट एवरेस्ट जैसी सबसे ऊँची चोटी पर इससे कई गुना कुड़ा जमा हुआ है।


नदियों में प्लास्टिक प्रदूषण की स्थिति-

इसी प्रकार भारत की लगभग सभी नदियों में हमारी जनता एवं सरकारें   बेरोक-टोक सहजता से स्वाभाविक रूप से लाखों टन कूड़ा प्रवाहित करती हैं और फिर नदियों को साफ करने की बातें करती हैं। कैसी विडम्बना है एक तरफ हम अपनी नदियों को जीवनदायिनी पवित्र एवं माता का दर्जा देते हैं दूसरी ओर उसी में सारी गंदगी प्रवाहित करते हुए इसे पूण्य मानते हैं।


शहरों-गांवों में प्लास्टिक प्रदूषण की स्थिति-

भारत के किसी भी शहर या गाँव में जब हम जाते हैं तो देखते हैं कि सभी  सार्वजनिक स्थानों पर, रेल की पटरियों के किनारे, रोड के दोनों तरफ एवं  खेत-खलिहानों के किनारों पर प्लास्टिक एवं पॉलिथीन के कूड़े का ढे़र आपका स्वागत करता मिलेगा। इससे हमारे स्वच्छ भारत की सारी कल्पनाएं धूमिल होती नजर आती हैं। ऐसी अनचाही गन्दगी का विकराल एवं वीभत्स रूप हमें हर जगह दिखाई देता है। जिसका हम चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते।


यह है समाधान-

इस समस्या का एक ही समाधान है कि हम एक बार प्रयोग आने वाली पॉलिथीन या प्लास्टिक उत्पादन ही बन्द कर दें एवं जो अभी तक बना हुआ है उसे कृत्रिम कुंआ बनाकर उसमें दफना दें। ताकि आने वाले पचास-सौ वर्षों में वह नष्ट हो जाए। इस तरह के कुंए हमें हर गाँव-शहर में बनाने होंगे। यह सब हमारी सामाजिक बुराइयां हैं, जोकि मानवजनित दुशवारियां हैं। इसे हमें ही रोकना होगा।





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-डॉ. अशोक कुमार गदिया

(लेखक मेवाड़ विश्वविद्यालय, चित्तौड़गढ़, राजस्थान के कुलाधिपति हैं।)

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