रक्षाबंधन से पहले ही राम मंदिर व चंद्रयान-3 वाली राखियों का क्रेज मार्केट में बढ़ रहा है. छोटे बच्चों से लेकर बड़ों के लिए राम मंदिर व चंद्रयान वाली राखियों की डिमांड बाजार में है. बच्चे से लगायत बड़े बुजुर्गो के मन में बनते राम मंदिर व चंद्रयान को लेकर अलग ही जोश देखने को मिल रहा था। इसी के मद्देनजर अब कारोबारियों ने राम मंदिर व चंद्रयान वाली राखियां, टीशर्ट, खिलौने, पतंग आदि बाजार में उतार दिए हैं. खास यह है कि मार्केट में चंद्रयान वाले पतंगों से लेकर पटाखे खूब बिक रहे हैं. इसरो और चंद्रयान प्रिंट वाली टीशर्ट भी इस बीच डिमांड में है. मतलब साफ है इसरो के मिशन मून से देश की लोकल इकोनॉमी को बूस्ट मिल रहा है। कारोबारियों के मुताबिक वाराणसी पूर्वांचल का हब है। इसीलिए रक्षाबंधन के मौके पर बाजारों में 15 सौ रुपए तक का व्यवसाय होने का अनुमान हैभाई और बहन के अटूट प्रेम के त्योहार रक्षाबंधन के आते ही बाजारों में रौनक भी लौट आई है। भाई चाहे सात समंदर दूर ही क्यों न हो, लेकिन इस दिन बहन की राखी उस तक पहुंच ही जाती है। बहनें अपने भाई की कलाई में बांधने के लिए खूबसूरत राखियों को खरीदने के लिए बाजार पहुंच रही हैं। बाजार खूबसूरत राखियों से अटे पड़े हैं। खास बात यह है कि इस बार विभिन्न वेराइटी के बीच बाजार में राम मंदिर व चंद्रयान निर्मित राखियों की जबरदस्त डिमांड है। इसके अलावा खादी के धागों से निर्मित रक्षासूत भी खूब बिक रहे है। दावा है कि महंगाई के बावजूद इस बार बाजार में 1500 करोड़ की राखियों की बिक्री होगी। बता दें, अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम मंदिर के निर्माण की तिथि घोषित होने के बाद सनातनियों की खुशी को देखते हुए व्यापारियों ने भी इसे भुनाने का पूरा इंतजाम किया है। अबकी बार राखियों पर राम मंदिर को आकर्षक तरीके से पिरोया है, जिसे बहनें खूब पसंद कर रही है। इसके अलावा चंद्रयान 3 की लैंडिंग के बाद हर तरफ इसकी ही चर्चा को देखते हुए व्यापारियों ने चंद्रयान वाले प्रिंट की राखियों के अलावा टी-शर्ट व साडियों आदि के प्रोडक्ट बाजार में उतारा है, जिसे खूब पसंद किया जा रहा है। रक्षाबंधन से पहले ही बाजारों में राम मंदिर व चंद्रयान वाली राखियों की जबरदस्त डिमांड है. मतलब साफ है मिशन अयोध्या व चंद्रयान ने न सिर्फ कंपनियों की कमाई करा रही है बल्कि लोकल कारोबारियों की भी इससे खूब कमाई हो रही है.
कार्टून नहीं श्री कृष्ण,गणेश वाली राखियां
बाजार में भीड़ देखते ही बन रही है। शहर के सभी प्रमुख बाजार और चौक-चौराहों पर सजे राखी बाजार में खासी चहल-पहल होने लगी है। शाम होते ही आकर्षक लाइट से राखियां और भी चमकने लगती है। धार्मिक मान्यता रखने वालों के लिए बाजार में चंदन और रुद्राक्ष की राखियां भी उपलब्ध हैं। इसके साथ ही रेशम की डोरी, मोती, जरी, कुंदन, खिलौने वाली राखियों से बाजार की रौनक देखते ही बन रही है। बच्चों में कुछ साल पहले तक काटूर्न कैरेक्टर का जादू छाया हुआ था। इस वजह से वे अपनी पसंद के कार्टून कैरेटर वाली राखियां पसंद करते थे। इसमें छोटा भीम, मोटू-पतलू, डोरेमान समेत कई कैरेटर शामिल थे। लेकिन अब बच्चे श्री कृष्ण, गणपति सहित देवी-देवताओं वाली राखियां पसंद करने लगे हैं। साथ ही म्यूजिकल राखी और लाइट वाली राखियां भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। बाजार में मेटल की गोल्डन और सिल्वर आभा ली हुई आर्टिफिशल राखी की मांग ज्यादा है।
मोती, स्टोन व कुंदन की राखी
भाई की राखी के साथ ही भाभियों के लिए लुंबा राखी और फूलों वाली राखी उपलब्ध हैं। कंगन के साथ और बिना कंगन की लुबा राखी खास हैं। इसमें जरदोजी, मोती, स्टोन और कुंदन के साथ ही फूलों की सजावट देखते ही बन रही है। राखी के लिए विशेष रूप से घेवर और सेवई की मांग बनी हुई है। बाजार में घेवर के साथ ही सेवई की भी मांग बनी हुई है। साथ ही मिठाई के रूप में गिफ्ट देने के लिए चाकलेट पैक भी आ चुका है।
स्वदेशी राखियों की मांग अधिक
इस बार व्यापारियों ने बेहतर कारोबार होने की उम्मीद है। राखियों से बाजार गुलजार हो चुका है। स्वदेशी राखियों की अधिक मांग है। स्वदेशी राखियों की कीमत भी बजट में है। जिसके चलते लोगों की पहली पसंद बनी हुई है। समूह की महिलाओं ने बताया कि बड़ी मेहनत से राखियां तैयार की है। गेंहू, धान, गोबर से भी राखियां तैयार की गई है। जिसमें काफी समय लगा है। इस बार फेंगशुई राखियों की भी डिमांड बनी हुई है। इसके अलावा इको फ्रेंडली राखियों की भी धूम है। मोतियों, रूबी और रंग-बिरंगे पत्थरों को रेशमी धागे में पिरोकर बनाई गई राखियों की भी खूब बिक्री हो रही है। चंदन की लकड़ी से बने गणेश हों या रूबी जैसे महंगे पत्थर से बने फूलों के आकार की राखी....सभी अपने आप में बेहद खूबसूरत हैं। बहनें बाजार में जमकर खरीदारी का आनंद उठा रही हैं। बाजार में सस्ती राखियां भी हैं और डिजाइनदार महंगी राखियां भी। कारोबारियों के मुताबिक इस बार यहां इको फ्रेंडली राखी की धूम है। इस राखी की खासियत की बात करें, तो ये पूरी तरह से डिग्रेडेबल चीज़ों से बनी है। इसमें खूबसूरती से फूलों के बीजों को सजाया गया है। इसे बाद में गमले में लगाया जा सकता है, जिससे निकलने वाले खुशबूदार फूल भाई को हर पल अपनी बहन की याद दिलाते रहंगे। इस राखी का मकसद मौजूदा प्रदूषित माहौल में पौधारोपण को बढ़ावा देना है। पिछले साल से 25 फीसदी महंगी होने के बावजूद इस साल राखी कारोबारियों को 1500 करोड़ रुपए की राखी बिक्री की उम्मीद है। इसके साथ अगर मिठाइयां, चॉकलेट और सोने-चांदी की बिक्री को मिला लिया जाए तो यह आंकड़ा और ज्यादा हो जाता है। व्यापारी मगरुराम का कहना है कि कुल लागत करीब 25 फीसदी बढ़ी है, मगर दाम 10 से 15 फीसदी ही बढ़ाए गए हैं। इससे व्यापारियों का मुनाफा घट गया है।
चीन से आता है कच्चा माल
देश में कुल कारोबार में 50 से 60 फीसदी हिस्सा बंगाल का है। इसके बाद राजस्थान, गुजरात, मुंबई, दिल्ली में बड़े पैमाने पर राखियां बनती हैं। चीन से राखी में लगने वाला सामान जैसे फैंसी पार्ट, पन्नी, फोम, सजावटी सामान, स्टोन आदि वहीं से आता हैं। इस त्योहार का अपना एक अलग स्वर्णिम इतिहास है, लेकिन बदलते समय के साथ इसमें भी बहुत से बदलाव आए हैं। आज आधुनिकता हमारे मूल्यों और रिश्तों पर हावी होती जा रही है। रिश्तों में मजबूती और प्रेम की जगह दिखावे ने ले ली है।
छह जार साल पुराना है रक्षा बंधन का इतिहास!
1947 के भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिए भी इस पर्व का सहारा लिया गया। रवींद्रनाथ टैगोर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबंधन त्योहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर इस त्योहार का राजनीतिक उपयोग आरंभ किया। 1905 में उनकी प्रसिद्ध कविता मातृभूमि वंदना का प्रकाशन हुआ, जिसमें उन्होंने इस पर्व का उल्लेख किया है। शास्त्रों के अनुसार रक्षिका को आज के आधुनिक समय में राखी के नाम से जाना जाता है। रक्षाबंधन के संदर्भ में भी कहा जाता है कि अगर इस पर्व का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व नहीं होता तो शायद यह पर्व अब तक अस्तित्व में रहता ही नहीं। हिन्दू धर्म में प्रत्येक पूजा कार्य में हाथ में कलावा ( धागा ) बांधने का विधान है। यह धागा व्यक्ति के उपनयन संस्कार से लेकर उसके अन्तिम संस्कार तक सभी संस्करों में बांधा जाता है। राखी का धागा भावनात्मक एकता का प्रतीक है। स्नेह व विश्वास की डोर है। धागे से संपादित होने वाले संस्कारों में उपनयन संस्कार, विवाह और रक्षा बंधन प्रमुख है। भविष्य पुराण के अनुसार, जब देव-दानव के युद्ध में दानव हावी होने लगे, तो भगवान इंद्र घबराकर गुरु बृहस्पति के पास गए। वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थीं। उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है। इस त्योहार से कई ऐतिहासिक प्रसंग जुड़े हैं। राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ-साथ हाथ में रेशमी धागा बांधती थी। यह विश्वास था कि यह धागा उन्हें विजयश्री के साथ वापस ले आएगा। मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर आक्रमण करने की सूचना मिली। रानी उस समय लड़ने में असमर्थ थी अतः उन्होंने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंच कर बहादुरशाह के विरुद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ाई लड़ी। हुमायूं ने कर्मावती व उनके राज्य की रक्षा की। एक अन्य प्रसंग में कहा जाता है कि सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पोरस (पुरू) को राखी बांधकर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन ले लिया। पोरस ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान किया और सिकंदर पर प्राण घातक प्रहार नहीं किया। रक्षाबंधन की कथा महाभारत से भी जुड़ती है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। कृष्ण और द्रौपदी से संबंधित वृत्तांत में कहा गया है कि जब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया था तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांध दी थी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया था।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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