वंदना जानती हैं कि अपने अंदर एक अनकही कहानी को रखने से बड़ी कोई पीड़ा नहीं होती अतः किसी ऊंचे बुर्ज पर चढ़ करना चाहती है आसमान से बातें, जीना चाहती है एक लापरवाह जिंदगी। पदचिह्न शीर्षक कविता में वे कहती हैं- नहीं बंधी रहूंगी, खूंटे में तुम्हारे, दाना-पानी के आसरे ताउम्र ! वे बड़ी बेबाकी से कहती हैं- देह के दस्तरखान में, खुश्क होती रही मेरी सांसे, जवान होते ही कतर दिए गए मेरे पंख, मेरे स्वप्न, मेरी चाहतें, मेरे निर्णय की निर्धारित कर दी गयी सीमाएं। कवयित्री अपनी बात दो-टूक शब्दों कहती है कि स्त्री, अब फरेब की दुकान नहीं, पितृसत्तात्मक व्यवस्था का इतिहास और भूगोल बदलना चाहती है, अब वह लिखना चाहती है नयी तहरीरें अपनी तमाम व्यवस्थाओं की बदल डालना चाहती है फरेब के उन पन्नों को जिन पर उनके अरमानों की तमाम लाशें दफ़न पड़ी । 'छलांग मारती स्त्रियां' को पढ़ते हुए मैं चौंक पड़ता हूँ जब वे लिखती हैं 'कुछ तितलियां भी कैद थीं, आलपिनों में !' यह एक भयावह दृश्य है उस बादशाह के दरबार की, जहां मुक्ति की छटपटाहट लिए सदियों सदी शरबतिया सदृश्य मजदूरन मर खप जाती हैं- शरबतिया! तुम ऐसे ही चुरा लिया करो अपनी जिंदगी की व्यस्तताओं में कुछ पल अपने लिए ताकि इन चुराए लम्हों में तुम लड़ सको, चाय बागान में काम करने वाली, स्त्रियों के हक की लड़ाई !
डॉ. वंदना गुप्ता की आवाज़ देश के उन रचनाशील कवयित्रियों में शामिल हैं जो आधी आबादी की दारुण दशा पर मुखरित रही हैं, मसलन गगन गिल, निर्मला पुतुल, अनामिका, कात्यायनी, निर्मला गर्ग, सविता सिंह, ज्योति चावला आदि के स्वर समवेत हैं। वंदना पूछती हैं 'जीवन के मंत्र' में -प्रेम को कैसे रचती हो तुम अपने भीतर, जबकि तुम्हारे अंदर दहकते हैं न जाने कितने पलाश के जंगल.., दूसरी ओर गगन गिल कहती हैं - प्रेम में लड़की शोक करती है, शोक में लड़की प्रेम करती है ! स्त्री विमर्श पर निर्मला पुतुल ने भी एक गंभीर सवाल सामने रखती हैं- बता सकते हो, सदियों से अपना घर तलाशती, एक बेचैन स्त्री को उसके घर का पता ? वहीं वंदना कहती हैं -अजीब विडंबना थी उस स्त्री के जीवन की, पहले आंखों का पानी सूखा फिर सूख गई मन की नदी.. जिस दिन रच लोगी तुम खुद को, रचनात्मकता के न जाने कितने दरवाज़े खुल जाएंगे तुम्हारे लिए ! यह संग्रह स्त्री विमर्श और स्त्री मुक्ति की दिशा में मील का पत्थर है ! जहां देखा हुआ यथार्थ और भोगा गया सच साथ-साथ है। कवयित्री वंदना गुप्ता का रचना संसार ब्रह्मांड से बातें करती हैं, बिना लाग लपेट के। वे वैसी दुनिया में यकीन करती हैं जहां स्त्री-पुरुष सहअस्तित्व को अपनी पूंजी मानकर एक सुंदर संसार की परिकल्पना कर सकते हैं, अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित इनकी कविताएं तथा देश-देशांतर अपनी यात्राओं का व्यापक संस्मरण इनके साथ हैं, जो आनेवाली संतति के लिए संग्रहणीय है, स्तुत्य है ! इनके अनवरत लेखन व सुदीर्घ जीवन की अशेष मंगलकामनाएं करता हूँ !
पुस्तक : छलांग मारती स्त्रियां (कविता संग्रह)
लेखिका : डॉ. वंदना गुप्ता
प्रकाशन : सर्वभाषा प्रकाशन, नई दिल्ली- 110059., मोबाइल- +91 8178695606
www.sarvbhasha.in
मूल्य : 250 ₹
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समीक्षक : अरविन्द श्रीवास्तव
पता : 203, बेऊर मेंशन, पटना- 800002.
मोबाइल- 9431080862.
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