- बिहार ने तमाम लोकतंत्र पसंद नागरिकों को एक नई उम्मीद दी है : शकील अहमद
- सामाजिक आंदोलनों के बिना लोकतंत्र और लोकतंत्र के बिना समाज नहीं चल सकता : रामपुनियानी
- मनुस्मृति और आरएसएस मूलतः हिंदू औरतों व दलितों के खिलाफ : शमुसल इसलाम
- भाजपा-आरएसएस ने आरक्षण लगभग खत्म कर दिया : उदय नारायण चौधरी
- दंड संहिता को न्याय संहिता कहकर अन्याय को ही स्थापित करने की साजिश : मीना तिवारी
- एआइपीएफ के बैनर से:आजादी के 75 साल: देश किधर’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन, परिचर्चा में बड़े पैमाने पर बुद्धिजीवियों, ऐक्टिविस्टों की हुई भागीदारी
डा. शकील अहमद ने कहा कि बिहार से एक उम्मीद की रौशनी फैल है. बिहार आंदोलनों की धरती है और विपक्षी दलों की पहली बैठक यहीं हुई. दूसरी बैठक में ‘इंडिया बना. जो भी दल संविधान व लोकतंत्र के पक्ष में हैं, वे इंडिया के साथ हैं. रामपुनियानी ने कहा कि फासिस्ट ताकतें इतिहास तो बहुत ही पीछे धकेल सकती हैं. यदि हिटलर 25 वर्ष पीछे ढकेल सकता है, तो यहां की ताकतें तो और ज्यादा खतरनाक हैं. हजारों प्रचारक व स्वसंसेवक इसी काम में लगे हुए हैं. यदि ये आगे का चुनाव जीत गए तो इस प्रकार की बैठक करना भी आसान नहीं होगा. सामाजिक आंदोलनों ने समाज का विकास किया. उन्होंने कहा कि सामाजिक आंदोलनों के बिना लोकतंत्र संभव नहीं और लोकतंत्र के बिना सामाजिक आंदोलन नहीं चल सकते. हमें ऐसी सभी ताकतों को एकताबद्ध करना होगा. उदय नारायण चौधरी ने कहा कि ब्राह्मणवादी ताकतों से गंभीर खतरा है. 2015 में आरक्षण को खत्म करना चाहते थे. हमने उनको चुनौती दी थी. लेकिन आज धीरे-धीरे करके आरक्षण को लगभग समाप्त कर दिया गया. अब आरक्षण नाम की कोई चीज नहीं रह गई. आज के नौजवानों, कमजोर वर्ग व दलित समुदाय के लोगों को बताना होगा कि भाजपा-आरएसएस दरअसल करना क्या चाहते हैं.
प्रो. शमसुल इसलाम ने मनुस्मृति के कई उद्रणों को उद्धत करते हुए कहा कि हिंदुवाद से सबसे ज्यादा खतरा हिंदु महिलओं और दलितों को है. उन्होंने अपने वक्तव्य में आजादी के आंदोलनों के दौरान आरएसएस की नकारात्मक भूमिका पर फोकस किया. कहा कि कट्टरपंथी किसी भी समुदाय का हो, वह धर्मनिरपेक्षता व लोकतंत्र के लिए खतरनाक है. मुसलमानों के लिए कई झूठ फैलाए जाते हैं. 1940 में मुसलमानों की सबसे बड़ी सभा हुई थी, जो पाकिस्तान बनाए जाने के खिलाफ था. मीना तिवारी ने कहा कि मणिपुर में औरतों के शरीर को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. यह बीजेपी की राजनीति है. आज का पूरा दौर है, उसमें विभिन्न तरीकों से व तमाम क्षेत्रों में आरएसएस औरतों की गुलामी को बढ़ावा दे रही है. केवल तीन तलाक के खिलाफ कानून नहीं बनाए जा रहे बल्कि ये दंडिसंहिता को जो आज न्याय संहिता कह रहे हैं, यह पूरी तरह से अन्याय को ी स्थापित करने की कोशिशें है. इस न्याय संहिता में औरतों की तमाम आजादी को कुचल देने की साजिश है. परिचर्चा फासीवादी हमले के खिलाफ लोकतंत्र व संविधान के पक्ष में वैचारिक मोर्चे को मजबूत बनाने के उद्देश्य से की गई है. जिसमें पटना शहर के बुद्धिजीवियों, छात्र-नौजवानों और दलित-बुद्धिजीवियों ने भी बड़ी संख्या में हिस्सा लिया और भाजपा-आरएसएस के खिलाफ निर्णायक संघर्ष में एकताबद्ध होकर आगे बढ़ने का संकल्प भी लिया. कार्यक्रम को सफल बनाने में एआइपीएफ के कार्यकर्ताओं ने बड़ी भूमिका अदा की. मुख्य रूप से संतोष आर्या, गालिब, अभय पांडेय, आसमा खान, रजनीश उपाध्याय, संजय कुमार, पुनीत कुमार आदि कार्यक्रम में पूरी तरह से सक्रिय रहे. कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन पंकज श्वेताभ ने किया.
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