- साहित्य की तीनों धाराओं का संगम इलाहाबाद है: अब्दुल बिस्मिल्लाह
- आजादी के पहले हिंदी का केंद्र था इलाहाबाद : प्रो. आलोक राय
प्रयागराज, 25 अगस्त, 2023 : मेजर ध्यानचंद छात्र गतिविधि केन्द्र, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज में राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा आयोजित ‘ज्ञान पर्व’ के पांचवे दिन की शुरुआत 'शोध आलेख कैसे लिखें? विषय पर आयोजित कार्यशाला से हुई। इस सत्र में बतौर विशेषज्ञ डॉ० रमाशंकर सिंह तथा प्रो० योगेंद्र प्रताप सिंह उपस्थित रहे। डॉ० रमाशंकर सिंह ने कार्यशाला की शुरुआत करते हुए शोध लेखन के कारणों पर प्रकाश डाला। शोध के इतिहास पर बात करते हुए रमाशंकर जी ने इसके विकास पर भी अपने विचार प्रकट किये। आगे रमाशंकर जी ने बताया कि शोध पत्र लिखने के पूर्व किन चीजों का ज्ञान होना चाहिए तथा शोध लेखन में किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए। प्रो योगेंद्र प्रताप सिंह ने रिसर्च शब्द के इतिहास के बारे में बताया कि पुनर्जागरण या रेनेसा के मध्य ही यह शब्द प्रकट हुआ। उन्होंने बताया रिसर्च नया या अद्वितीय नहीं बल्कि मौलिक होता है।
दूसरा सत्र 'कलाओं के अंतर्सम्बन्ध' विषय पर परिचर्चा का था। इस सत्र में वक्ता के रूप में प्रो. अजय जैतली, यश मालवीय और डॉ. सूर्यनारायण उपस्थित रहे। इस सत्र का संचालन दीक्षा त्रिपाठी ने किया। तीसरा सत्र 'दलित विमर्श: आसन्न चुनौतियां' विषय पर केंद्रित परिचर्चा का रहा। इस सत्र में डॉ. भूरेलाल, डॉ. विजय रविदास और गुरु प्रसाद मदन उपस्थित रहे। इस सत्र का संचालन नीरज विश्वकर्मा ने किया। डॉ. भूरेलाल जी ने विषय पर अपनी बात रखते हुए यह बताया कि किस प्रकार दलित समाज विभिन्न प्रकार की चुनौतियों से जूझ रहा है। अगले वक्ता डॉ. बिजय रविदास जी ने विषय पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि दलित साहित्य का जन्म जाति व्यवस्था से हुआ है...सवर्णों का एक वर्ग है जो दलित विमर्श को स्वीकार ही नहीं करता है तथा जो वर्ग स्वीकार करता है वह भी दलित साहित्य को सवर्ण जनित मानता है। इस सत्र के अंतिम वक्ता गुरु प्रसाद मदन ने बताया कि दलित कौन हैं? आपने वैश्विक नेताओं का उदाहरण देते हुए भारतीय दलितों के प्रति धारणा पर अपनी बात रखी। आपने दलित विमर्श पर बात करते हुए शास्त्रों पर चोट की। आपने अंबेडकर पर बात करते हुए उनके साहित्य को आधार बनाकर दलित विमर्श पर अपने विचार रखे।
ज्ञान पर्व के पाँचवे दिन का चौथा सत्र 'अदब का शहर इलाहाबाद' पर परिचर्चा का रहा। इस सत्र में वक्ताओं के रूप में कवि हरीश चंद्र पाण्डेय, प्रो. आलोक राय और प्रो. अब्दुल बिस्मिल्लाह उपस्थित रहे। इस सत्र का संचालन सूर्यनारायण जी ने किया। प्रो. हरीश चन्द्र पांडे जी ने विषय पर बात करते हुए अपने अतीत को याद करते हुए कई बातें कहीं। उन्होंने महादेवी जी, यशपाल जी और अन्य साहित्यकारों का स्मरण करते हुए अपनी यादों को सभी श्रोताओं के साथ साझा किया। उन्होंने अपनी बात में प्रगतिशील लेखक संघ तथा परिमल संस्था का भी जिक्र किया। प्रो. आलोक राय जी ने विषय पर अपनी बात कहते हुए अपने अतीत के कुछ संस्मरणों को याद करते हुए इलाहाबाद शहर के कई साहित्यकारों को याद किया। आपने बताया कि आजादी के पहले हिंदी का केंद्र इलाहाबाद था। प्रो. अब्दुल बिस्मिल्लाह जी ने विषय पर अपने विचार प्रकट करते हुए अपने समय के इलाहाबाद की बात करते हुए उस समय के संस्मरण साझा किये। उन्होंने ग़ालिब के एक वाकए को साझा करते हुए बताया कि ग़ालिब ने कहा था कि इलाहाबाद बड़ा बेअदब शहर है। उन्होंने आगे कहा कि कोई भी शहर बेअदब नहीं होता। कोई भी जगह जहाँ इंसान रहते हैं वो अदब की जगह ही है। आपने कहा कि साहित्य की तीनों धाराओं का संगम भी इलाहाबाद ही है।
ज्ञान पर्व के पाँचवे दिन का अंतिम सत्र 'पौराणिक परंपरा में स्त्रियों का सांपत्तिक अधिकार' पुस्तक के लोकार्पण का था। इस पुस्तक के लेखक डॉ. हर्ष कुमार हैं। इस सत्र में श्री चन्द प्रकाश जी की उपस्थिति रही। इस सत्र का संचालन अनुराधा सिंह ने किया। डॉ. हर्ष कुमार जी ने अपनी पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 2007 से लेकर 2014 तक उनके कई शोध पत्र प्रकाशित हुए जो इस पुस्तक का आधार बने। इन शोध पत्रों से इस पुस्तक की सम्भावना बनी। उन्होंने रमेश ग्रोवर जी को पुस्तक प्रकाशन में उनके योगदान के लिए आभार प्रकट किया। 21 से 26 अगस्त तक आयोजित ज्ञान पर्व के इस आयोजन में पुस्तक प्रदर्शनी भी लगाई गई है जिसमें राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित अनेकों विधाओं की पुस्तकें व छात्रोपयोगी पुस्तकें उपलब्ध हैं। यह पुस्तक प्रदर्शनी मेजर ध्यानचंद स्टूडेंट एक्टिविटी सेंटर में सुबह 9:30 से शाम 5:30 बजे तक लगाई जा रही है।
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