चले लहरें तूफानों की,
अम्बर में धामनी कड़क रही है।
कहर दोनों का यूं जारी है।
मानों मानव से हिसाब की बारी है।।
दरिया-नाले सब उफानो पर,
भूस्खलन भी जारी है।
कहर दोनों का यूं जारी है।
मानों मानव से हिसाब की बारी है।।
भूकंप से कांपे पहाड़,
ग्लेशियर की भी तयारी है
कहर दोनों का यूं जारी है।
मानों मानव से हिसाब की बारी है।।
बाढ़ से सब बह गए हैं
भला मौत से किसकी यारी है
कहर दोनों का यूं जारी है।
मानों मानव से हिसाब की बारी है।।
बादल फटना यूं पहाड़ों पर,
मैदानों मे लू न्यारी है
कहर दोनों का यूं जारी है।
मानों मानव से हिसाब की बारी है।।
जंगलों में आग भयंकर है
वृक्षों के तने पर आरी है
कहर मानव का यूं जारी है।
जैसे प्रकृति ना इस को प्यारी है।
जिस की गोदी में पला तू,
उस प्रकृति के खेल निराले हैं
हानि पहुंचाएगा जो उसको ,
वक़्त पर उस के दिवाले हैं।
इसलिए कहर सब का यूं जारी है।
मानों मानव से हिसाब की बारी है।।
हरीश कुमार
पुंछ, जम्मू
(चरखा फीचर)
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