आलेख रक्षाबंधन : अब बहने भी बन रही भाई की ढाल - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 30 अगस्त 2023

आलेख रक्षाबंधन : अब बहने भी बन रही भाई की ढाल

समय के साथ अब सब कुछ बदल रहा है। यदि बहन पर आफत पड़ने पर भाई उसकी रक्षा कर सकता है तो भाई पर मुसीबत आने पर बहन भी उसकी सहायता और रक्षा कर सकती है। ऐसे एक-दो नहीं कई उदाहरण है जहां बहनें जरूरत पड़ने पर भाई को अपनी किडनी या अन्य अंग देकर जीवनदान किया है। स्वयं के पैरों पर खड़ी ऐसी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बहनें भी हैं जिन्होंने भाइयों को आर्थिक कठिनाइयों से उबारा है। अपने प्रिय भाई को दीदियां अपने हिस्से की चॉकलेट देती आई हैं तो भाई का अपराध अपने सिर लेकर उन्हें बचपन में मां-बाप की डांट से बचाती भी आई हैं। बड़ा भाई छोटी बहन के सिर पर हाथ रखता है तो बहन भी तो ऐसा निःस्वार्थ प्रेम करना जानती है, जिससे मुकाबला सिर्फ मां का प्यार ही कर सकता है। मतलब साफ है राखी को हम रक्षा-सूत्र के बजाए मोह का धागा भी कह सकते हैं। यह रेशमी सूत्र भाई और बहन के बीच ही नहीं, बहनों-बहनों और भाईयों-भाईयों के बीच यह अद्दश्य धागा है। सच कहें तो जिस भी रिश्ते में अपनत्व भरा जुड़ाव है, मोह का यह धागा होता ही है

Raksha-bandhan
रक्षाबंधन की जड़ें हमारी संस्कृति से बहुत ही गहराई के साथ जुड़ी हुई हैं। भाई तो बहन की रक्षा करता ही है लेकिन साथ ही बहन भी अपने भाई की हर विपत्ति से रक्षा की प्रार्थना करती है। ये रंग-बिरंगे धागे भले हैं कच्चे हों, लेकिन इनमें बंधा प्यार और विश्वास बहुत मजबूत होता है जो हर विपत्ति में रक्षा करता है। हमारी संस्कृति में बहुत पहले से रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा चली आ रही है। पंडित द्वारा मंत्रोच्चार के साथ यजमान के रक्षासूत्र बांधा जाता है तो वहीं पहले के समय में जब राजा युद्ध पर जाते थे तो उनकी रक्षा और विजय की कामना के साथ रक्षा सूत्र बांधा जाता था। पूर्व की कथाओं के अनुसार लोगों ने विपरीत परिस्थितियों में भी राखी का मान रखते हुए अपने वचन को निभाया और अपनी बहन की रक्षा को हमेशा तत्पर रहे। राखी का मतलब केवल बहन की दूसरों से रक्षा करना ही नहीं होता है बल्कि उसके अधिकारो और सपनों की रक्षा करना भी भाई का कर्तव्य होता है। राखी के दिन केवल अपनी बहन की रक्षा का संकल्प मात्र नहीं लेना चाहिए के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण नारी जगत के मान-सम्मान और अधिकारों की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए, ताकि सही मायनों में राखी के दायित्वों का निर्वहन

रक्षा करने वाले के प्रति आभार है ‘राखी’

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रक्षाबंधन यानी राखी बाधना असल में एक जिम्मेदार सोच से जुड़ा भाव है। अपने कर्तव्य को निभाने का वादा है। अपने दायित्व को समझने का बोध लिए है। यही वजह है कि हमारे यहां सिर्फ भाई को ही राखी बांधने का रिवाज नहीं है। राखी के पर्व का संबंध रक्षा करने के वचन से जुड़ा है। इसीलिए जो भी रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार जताने के लिए भी रक्षासूत्र बांधने की रवायत है। चाहे वो सरहद पार देश की रक्षा करने वाले सैनिक हो या पुरोहितों के यमजमान हो या सृष्टि रचयिता ईश्वर समेत उन सभी कों धर्म, जाति और वर्ग से परे भारतीय बहनें राखियां भेजती व बांधती है। रक्षाबंधन सिर्फ एक त्योहार नहीं बल्कि भाई-बहन के बीच उस अटूट रिश्ते को दर्शाता है जो रेशम के धागे से जुड़ा हुआ होता है। इस बार राखी बांधने के लिए भद्रा काल का संयोग नहीं है। या यूं किसी भी तरह का कोई ग्रहण नहीं है। इस बार रक्षाबंधन शुभ संयोग वाला और सौभाग्यशाली है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी या रक्षा सूत्र बांधकर उसकी लंबी आयु और मंगल कामना करेंगी। भाई अपनी प्यारी बहना को बदले में भेंट या उपहार देकर हमेशा उसकी रक्षा करने का वचन देगा।

रिश्ते को मजबूत बनाती है परंपराएं

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रक्षाबंधन पर्व की भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फिल्में भी इससे अछूते नहीं हैं। गुरुकुल परंपरा के अंतर्गत शिक्षा पाने वाला युवा जब शिक्षा पूरी करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था, तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षा सूत्र बांधता था, जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बांधता था कि वह भावी जीवन में अपने ज्ञान कासमुचित ढंग से प्रयोग करे। मौजूदा समय में पूजा आदि के अवसर पर बांधा जाने वाला कलावा भी रक्षा-सूत्र का ही प्रतीक होता है, जिसमें पुरोहित और यजमान एक-दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिए एक-दूसरे को अपने बंधन में बांधते हैं। रक्षा-बंधन का पर्व हमारे सामाजिक ताने-बाने में इस प्रकार रचा-बसा हुआ है कि विवाह के बाद भी बहनें भाई को राखी अवश्य बांधती हैं, फिर चाहे उनका ससुराल मायके से कितनी ही दूर क्यों न हो। या तो वे भाई के घर इसी विशेष प्रयोजन से स्वयं पहुंचती हैं अथवा भाई उनके घर आ जाते हैं। अगर आना-जाना संभव न हो, तो डाक से राखी अवश्य भेज दी जाती है। आज के दौर में महिलाओं पर जो अत्याचार बढ़ रहे हैं, उसका मूल कारण यही है कि लोग बहन की अहमियत भूलते जा रहे हैं। बेटों का वर्चस्व बढ़ने और बेटियों को उपेक्षित करने से समाज खोखला होता जा रहा है। गौर कीजिए एक समय, बहन जी शब्द में अपार आदर छलकता था और लोग किसी भी बहन के लिए न्योछावर होने के लिए तत्पर रहते थे। आज इन रिश्तों की सामाजिक अहमियत कम होने के कारण ही महिला उत्पीड़न के मामले बढ़ रहे हैं। जबकि सच यह है कि बेटियों में छिपा बहन का प्यार ही स्वस्थ समाज की बुनियाद गढ़ पायेगा।

कच्चे धागे पक्के बंधन

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वैसे भी हिन्दू धर्म में स्त्रियों का मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है। लगभग हर घर में मां लक्ष्मी मां, बहन, पत्नी और बेटी के रूप में वास करती हैं। अगर घर की महिलाएं खुश रहती हैं तो घर में धन-दौलत की कभी कमी नहीं होती है। इससे बड़ी बात और क्या होगी कि जो बहन और बेटियां दुसरे घर की अमानत हो गयी है, लेकिन रक्षाबंधन के दिन जरुर भाई की कलाई पर राखी बांधने जरुर पहुंचती हैं। बहन के राखी बांधने के बाद भाई उसे तोहफा देता है। मनु स्मृति में स्वयं मनु ने बताया है कि ऐसी तीन चीजें हैं जिन्हें घर की महिलाओं को देने से घर में खुशहाली आती है। यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवताः। माता लक्ष्मी को घर का साफ और स्वच्छ माहौल बहुत ज्यादा पसंद होता है। जिस घर के पुरुष और महिलाएं दोनों साफ-सुथरे से रहते हैं और अच्छे वस्त्र धारण करते हैं, मां लक्ष्मी उनसे काफी प्रसन्न रहती हैं। ऐसे में रक्षाबंधन के दिन आप अपनी बहन को सुन्दर वस्त्र तोहफे के रूप में दें। जो लोग ऐसा नहीं करते हैं, उन्हें जीवन में दरिद्रता का मुख देखना पड़ता है। गहनों को भी मां लक्ष्मी का प्रतिरूप माना जाता है। जिस घर की महिलाएं सुन्दर गहनों से सजती-संवरती हैं, वहां मां लक्ष्मी का बसेरा हमेशा बना रहता है। घर में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती है। जब भी कोई विशेष त्योहार हो उस मौके पर पुरुषों को घर की महिलाओं को तोहफे में सुन्दर गहने देने चाहिए। सभी तोहफों से बढ़कर मीठी वाणी होती है। जिस घर के पुरुष महिलाओं को सम्मान देते हैं और उनसे अच्छे से बात करते हैं, उस घर पर मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। जिस घर की स्त्रियां चिंतित होती हैं, उस घर की तरक्की रुक जाती है। जहां महिलाएं खुश रहती हैं वहां दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होती है।

खुशियों की डोर रक्षाबंधन

भारत एक खुबसूरत देश है। खुबसूरत इसलिए, क्योंकि हर त्योहार की रौनक यहां दिखाई देती है। त्योहार कोई भी हो उसका जश्न धर्म, सम्प्रदाय, जाति और सामाजिक स्तर के भेदभाव से उपर उठकर दिखाई देता है। राखी भी एक ऐसा ही पर्व है, जिसमें रिश्ते खून से बढ़कर भरोसे, प्रेम, स्नेह और आत्मीयता के डोर से बंधे होते है। इसे सिर्फ हिन्दू ही नहीं, बल्कि अन्य धर्म के लोग जैसे कि सिख, जैन और ईसाई भी हर्षोल्लास के साथ इसे मनाते हैं। रक्षा के नजरिये से देखें तो, राखी का ये त्योहार देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा तथा लोगों के हितों की रक्षा के लिए बाँधा जाने वाला महापर्व है। जिसे धार्मिक भावना से बढकर राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने में किसी को आपत्ति नही होनी चाहिए। भारत जैसे विशाल देश में बहने सीमा पर तैनात सैनिकों को रक्षासूत्र भेजती हैं एवं स्वंय की सुरक्षा के साथ उनकी लम्बी आयु और सफलता की कामना करती हैं। हमारे देश में राष्ट्रपति भवन में तथा प्रधानमंत्री कार्यालय में भी रक्षाबंधन का आयोजन बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन भाई-बहन के बीच प्रेम का ऐसा झरना बहता है, जो आपकी जिंदगी को खुशियों से भर देता है। इस रिश्ते का डीएनए ही कुछ ऐसा है कि मुसीबत के वक्त जब कहीं से मदद की उम्मींद नहीं होती है, तब भी कलाई पर बंधा स्नेह जिन्दगी की डोर थामने के लिए खड़ा हो जाता है। अर्थात रक्षाबंधन भाई-बहन के बीच वह रिश्ता है जिसमें गंगाजल की तरह बहनें धारा तो भाई कल-कल। बहनें टहनी तो भाई श्रीफल, बहने स्नेहिल तो भाई वत्सल या यूं कहें भाई-बहनों के सभी सवालों का जवाब है रक्षाबंधन। या यूं कहें भाई-बहन का नाता स्नेह, ममता, वात्सल्य, करुणा और रक्षा के भावों के ताने-बाने में बुना होने से अनूठा ही है। यह नाता जितना स्नेहमय है उतना ही शालीन और पावन भी। क्योंकि इसमें जुड़ी होती है बचपन की यादें। साथ खेलना, झगड़ना, शरारतें और भी बहुत कुछ। जन्म से जुड़ा ये रिश्ता वक्त के साथ मजबूत होता जाता है। बेशक, कहने को राखी सिर्फ एक पतले से धागे को कलाई पर बांधने का त्योहार है। लेकिन, इस महीन सी डोर में जीवन को संबल व दिशा देने वाली कितनी शक्ति है, ये तो वे ही बता सकते हैं जिनके मन में बहन के प्रति प्यार बसा है। भाई-बहन का यह भाव प्राचीन काल से हमारे यहां रहा हैं। इस संबंद्ध को लेकर सबसे प्राचीन विमर्श ऋुग्वेद के यम-यमी सुक्त मिलता है। यम और यमी दोनों विवस्वान यानी सूर्य की संतानें है, दोनों जुड़वा भाई-बहन है। यम अपनी बहन को इस संबंध की मर्यादा का बोध कराते हैं। भाई-बहन के बीच परस्पर रक्षा का संबंध भी एकतरफा नहीं है, केवल भाई ही बहन की रक्षा नहीं करता, बहन भी आड़े वक्त में भाई को बचाती है। रक्षाबंधन का पर्व और राखी के धागे इस पारस्परिक रक्ष्य-रक्षक संबंध के प्रतीक हैं। यूं तो नारी, मां, बेटी या पत्नी के विभिन्न रुपों में पुरुषों से जुड़ती है पर उन सब में अपनत्व और अधिकार के साथ-साथ, कहीं न कहीं कुछ पाने की लालसा रहती है। नारी का सबसे सच्चा स्वरुप बहन के रिश्ते में ही प्रकट होता है। मां-बाप भले ही लड़के-लड़कियों में भेद करें पर बहन के मन में ऐसा करने का चाव होता है जिससे भाई के जीवन में खुशहाली रहे। यही वजह है कि भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन यानी रक्षा की कामना लिए कच्चे धागों का ऐसा बंधन जो पुरातन काल से इस सृष्टि में रक्षा के आग्रह और संकल्प के साथ बांधा और बंधवाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनके लिए मंगल कामना करती हैं। तो वहीं, भाई भी अपनी बहनों को इस पवित्र बंधन के बदले उपहार देने के साथ ही उसकी रक्षा करने का वचन देते हैं। कहा जा सकता है रक्षाबंधन के पर्व का संबंध रक्षा से है।


वरुण देव की पूजा से दुश्मन होते हैं परास्त

शास्त्रों के अनुसार में भद्रा के पुच्छ काल में कार्य करने से कार्यसिद्धि और विजय प्राप्त होती है। जो लोग अपने दुश्मनों को या फिर प्रतियोगियों को हराना चाहते हैं उन्हें रक्षाबंधन के दिन वरुण देव की पूजा करनी चाहिए।


कैसा रक्षासूत्र बांधें

- भाई की अच्छी शिक्षा और एकाग्रता के लिए - नारंगी रंग का रक्षासूत्र बांधें।

- भाई के शीघ्र विवाह के लिए - ऐसा रक्षासूत्र बांधें जिसमें सफ़ेद रंग के नग लगे हों।

- भाई के विवाह सम्बन्धी समस्याओं के लिए - पीले रंग का रक्षासूत्र बांधें।

- भाई के रोजगार और आर्थिक लाभ के लिए - नीले रंग का रक्षासूत्र बांधें।

- भाई की नकारात्मक ऊर्जा और दुर्घटना से रक्षा के लिए - लाल रंग का रक्षासूत्र बांधें।

- भाई की हर प्रकार से रक्षा के लिए - लाल पीले सफ़ेद रंग का मिश्रित रक्षासूत्र बांधें।


बहन को कैसा उपहार दें

- बहन के करियर और नौकरी के लिए- अच्छी कलम, पुस्तकें और लैम्प उपहार में दें।

- बहन के शीघ्र विवाह के लिए- सुगंध और पीले वस्त्र उपहार में दें।

- बहन के सुखद वैवाहिक जीवन के लिए- चांदी के आभूषण और चप्पल जूते उपहार में दें।

- बहन के संतान सम्बन्धी समस्याओं के लिए- बाल कृष्ण की मूर्ति और संगीत का सामान दें।

- बहन की आर्थिक सम्पन्नता के लिए- बहन को लाल वस्त्र, मिठाई और चावल उपहार में दें।


दरिद्रता दूर करने के उपाय

- अपनी बहन के हाथ से गुलाबी कपडे में अक्षत, सुपारी और एक रूपये का सिक्का ले लें।

- इसके बाद अपनी बहन को वस्त्र और मिठाई उपहार में दे दें, उनका चरण छूकर आशीर्वाद लें।

- गुलाबी कपडे में सारे सामान को बांधकर अपने धन स्थान पर रख दें।

- आपकी दरिद्रता दूर होनी शुरू हो जायेगी।


मानसिक समस्याओं को दूर करने के उपाय

- रक्षाबंधन को शाम को अपनी गोद में एक हरा पानी वाला नारियल रखें।

- इसके बाद “ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः“ का 108 बार जाप करें।

- जाप समाप्त हो जाने के बाद नारियल को अगले चौबीस घंटे में बहते जल में प्रवाहित कर दें।

- हर तरह की मानसिक और शारीरिक पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।


पौराणिक मान्यताएं

रक्षाबंधन का इतिहास काफी पुराना है, जो सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। असल में रक्षाबंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं, भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो, लेकिन उसकी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है। इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत 6 हजार साल पहले माना जाता है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है। मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायू ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था। इतिहास का एक दूसरा उदाहरण कृष्ण और द्रोपदी को माना जाता है। कृष्ण भगवान ने राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दी, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। कहा जाता है तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। सालों के बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी। भविष्यपुराण के मुताबिक राखी ना केवल भाई बहनों के प्रेम और स्नेह का त्योहार है बल्कि यह पति-पत्नी के संबंध और उनके सुहाग से जुड़ा हुआ पर्व भी है। सतयुग में वृत्रासुर नाम का एक असुर हुआ जिसने देवताओं के पराजित करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। इसे वरदान था कि उस पर उस समय तक बने किसी भी अस्त्र-शस्त्र का प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसलिए इंद्र बार-बार युद्ध में हार जा रहे थे। देवताओं की विजय के लिए महर्षि दधिचि ने अपना शरीर त्याग दिया और उनकी हड्डियों से अस्त्र-शस्त्र बनाए गए। इन्हीं से इंद्र का अस्त्र वज्र भी बनाया गया। देवराज इंद्र इस अस्त्र को लेकर युद्ध के लिए जाने लगे तो पहले अपने गुरु बृहस्पति के पहुंचे और कहा कि मैं वृत्रासुर से अंतिम बार युद्ध करने जा रहा हूं। इस युद्ध में मैं विजयी होऊंगा या वीरगति को प्राप्त होकर ही लौटूंगा। देवराज इंद्र की पत्नी शची अपने पति की बातों को सुनकर चिंतित हो गई और अपने तपोबल से अभिमंत्रित करके एक रक्षासूत्र देवराज इंद्र की कलाई में बांध दी। जिस दिन इंद्राणी शची ने देवराज की कलाई में रक्षासूत्र बांधा था उस दिन श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि थी। इस सूत्र को बांधकर देवराज इंद्र जब युद्ध के मैदान में उतरे तो उनका साहस और बल अद्भुत दिख रहा था। देवराज इंद्र ने वृत्रासुर का वध कर दिया और फिर से स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। यह कहानी इस बात की ओर संकेत करती है कि पति और सुहाग की रक्षा के लिए श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के दिन पत्नी को भी पति की कलाई में रक्षासूत्र बांधना चाहिए। एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक, रक्षाबंधन समुद्र के देवता वरूण की पूजा करने के लिए भी मनाया जाता है। आमतौर पर मछुआरें वरूण देवता को नारियल का प्रसाद और राखी अर्पित करके ये त्योहार मनाते है। इस त्योहार को नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है। कहते हैं एलेक्जेंडर जब पंजाब के राजा पुरुषोत्तम से हार गया था तब अपने पति की रक्षा के लिए एलेक्जेंडर की पत्नी रूख्साना ने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुनते हुए राजा पुरुषोत्तम को राखी बांधी और उन्होंने भी रूख्साना को बहन के रुप में स्वीकार किया।


इंसानियत का पर्व है रक्षाबंधन

देखा जाए तो रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन का त्योहार नहीं है बल्कि ये इंसानियत का पर्व है। यह अनेकता में एकता का पर्व है, जहां जाति और धर्म के भेद-भाव को भूलकर एक इंसान दूसरे इंसान को रक्षा का वचन देता है और रक्षा सूत्र में बंध जाता है। रक्षा सूत्र के विषय में श्रीकृष्ण ने कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है। रक्षा बंधन भाई-बहन के प्यार का त्योहार है, एक मामूली सा धागा जब भाई की कलाई पर बंधता है, तो भाई भी अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर करने को तैयार हो जाता है। बहनों का स्नेह, प्यार और दुलार भाइयों के लिए उनके सुरक्षा कवच का काम करता है। वहीं बहनों का मान-सम्मान भाइयों की प्राथमिकता होती है। आजकल बहनें ज्यादा सजग हो गई हैं। अब वे भाइयों के पीछे नहीं, उनके बचाव में सबके सामने खड़ी होने लगी हैं। शायद इसी सेवा भाव के रिश्ते को नमन करते हुए चिकित्सा परिचर्या में लगी महिलाओं को सिस्टर कहा जाता है। वो लोग बड़े खुशकिस्मत होते हैं जिनके बहनें होती हैं क्योंकि जीवन में यह एक ऐसा पवित्र रिश्ता है जिससे आप बहुत कुछ सिखते हैं। पुरुषों के चारित्रिक विकास में मां-बाप से भी ज्यादा एक बहन का संवाद ज्यादा असर करता है। बहन से संवाद से ना केवल पुरुष के नकारात्मक विचारों में कमी आती है बल्कि उसके अंदर नारी जाति के लिए आदर भ्ज्ञी पनपता है। 


बढ़ती है साझेदारी

हर रिश्ते में अब बदलाव आ रहा है। भाई बहन का रिश्ता भी और सहज और सजग हुआ है। इस बात की प्रमाणिकता पर तो मनोवैज्ञानिकों ने भी अपनी मुहर लगा दी है। आजकल आपसी रिश्तों में बिखराव तो आ रहा है पर उनमें लगाव कम भी नहीं हुआ है। कामकाजी माता-पिता हर घर की जरूरत बन चुके हैं और इसके चलते बच्चों में साझेदारी बढ़ी है। घर में बच्चों को मिल रहे खुलेपन से उनमें अपनी बात रखने का हौसला भी बढ़ा है। आपसी बातचीत से बच्चों में विकास जल्दी होता है। आजकल के बच्चे ज्यादा समझदार और परिपक्व हो रहे हैं। इसका एक फायदा ये भी हुआ है कि वो आपस की जिम्मेदारियों को भी पहले से कहीं अधिक समझने लगे हैं। बहनों ने भाईयों के साथ रिश्तों की इन जिम्मेदारियों को बांटना शुरू किया है। प्यार और सुरक्षा का भाव मैच्योरिटी लाने में सहायक हुआ है। इसी से रिश्ता मजबूत होता है।


‘मोह के धागे‘ से हैं जुड़े है सारे संबंध

यशराज बैनर की फिल्म ‘दम लगा के हईशा‘ का एक गीत है, ‘ये मोह-मोह के धागे।‘ बड़ा प्यारा गीत है। इसे नायक-नायिका नहीं गाते, यह नेपथ्य में बजता है। पर है यह रुमानियत से संबंधित गीत। मगर मोह शब्द सिर्फ इतने में ही सीमित नहीं है। दुनिया के सारे संबंध मोह के धागे से ही जुड़े हैं। मोह के अर्थ भी तो कई हैं और प्रकार भी कई। मोह के कुछ प्रकारों को निरर्थक मोह में गिना जाता है तो कुछ प्रकारों को सार्थक मोह में। मसलन किसी भी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति से मोह की अति, मोह में उससे चिपके रहना, उसे सांस लेने का अवसर न देना, अनुपयोगी वस्तुओं का संग्रह इत्यादि नकारात्मक व निरर्थक मोह की श्रेणी में आते हैं। दूसरी ओर सार्थक और जरूरी किस्म का मोह तो जीने का आकर्षण होता है, यह न हो तो व्यक्ति निर्जीव दीवार के समान हो जाए। इस प्रकार के मोह में हर प्रकार का लगाव, प्यार, स्नेह, ममता और अपनापन आता है। मोह का यह धागा दिखाई नहीं देता, बस महसूस होता है। इसकी सुगंध स्वार्गिक होती है। वह मोह जिसे अपनापन कहते हैं, इंसान के भावनात्मक जीवन के लिए ऑक्सीजन होता है, यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। मोह में जाने क्या होता है कि वो आपमें जीने की ललक बनाए रखता है। मोह न हो तो जीवन रेगिस्तान हो जाए। यह वह मोह है जो गोंद नहीं, रुई का शुभ्र-श्वेत फाहा होता है जिस पर, जिससे आप प्यार करते हैं उसी का रंग चढ़ता जाता है।


बहनें खुश तो बरसेगी मां लक्ष्मी की कृपा!

रक्षाबंधन के दिन भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधना पारंपरिक रुप में भले ही भाई की ओर से बहन की रक्षा करने का प्रतीक हो, लेकिन यह शायद ही किसी को पता हो कि अगर बहनें इस दिन मेहरबान हो गयी तो भाई हो जायेगा मालामाल। घर में न सिर्फ खुशियां ही खुशियां होंगी, बल्कि धन-धान्य होने के साथ मिलेगा मां लक्ष्मी का आर्शीवाद। यह सब होगा भाई द्वारा बहनों की मनपसंद उपहारों को भेंट करने से। यह सच है कि विकास और आधुनिकता की चकाचौंध में सबसे ज्यादा असर अगर किसी पर डाला है तो वे हमारे रिश्ते ही हैं। इंटरनेट, तकनीक, एक्सपोजर और बढ़ती महत्वाकांक्षाएं ये तमाम ऐसे पहलू है जिन्होंने इंसान की सोच को बदलाव की ओर उन्मुख किया है। लेकिन भाई और बहन का एक ऐसा पवित्र रिश्ता हैं, जिसे अब भी बदलती जीवन शैली छू तक नहीं सकी है। परंपरागत तरीके से भाई-बहन का प्रेम भरा ये रिश्ता निभाई जा रही है। उन्हीं परंपराओं में से एक है रक्षाबंधन, जो भाई और बहन के प्रेम का दिवस होता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उससे खुद की सुरक्षा का भरोसा पाती है। बहन अपने भाई को सबसे ज्यादा प्रेम करती है। ज्योतिषियों की मानें तो इस दिन बहनें भाईयों पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान होती है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बहनें सात समुन्दर पार से भी भाई को रक्षा बांधने चली आती है। बहनों की इस खुशी में अगर उनके मनपसंद उपहार भाईयों द्वारा दी जाएं तो वे बड़ी सहजता से देती है धन-धान्य होने का आर्शीवाद। वैसे भी हिन्दू धर्म में स्त्रियों का मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है। लगभग हर घर में मां लक्ष्मी मां, बहन, पत्नी और बेटी के रूप में वास करती हैं। अगर घर की महिलाएं खुश रहती हैं तो घर में धन-दौलत की कभी कमी नहीं होती है। इससे बड़ी बात और क्या होगी कि जो बहन और बेटियां दुसरे घर की अमानत हो गयी है, लेकिन रक्षाबंधन के दिन जरुर भाई की कलाई पर राखी बांधने जरुर पहुंचती हैं। बहन के राखी बांधने के बाद भाई उसे तोहफा देता है। मनु स्मृति में स्वयं मनु ने बताया है कि ऐसी तीन चीजें हैं जिन्हें घर की महिलाओं को देने से घर में खुशहाली आती है। यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवताः। माता लक्ष्मी को घर का साफ और स्वच्छ माहौल बहुत ज्यादा पसंद होता है। जिस घर के पुरुष और महिलाएं दोनों साफ-सुथरे से रहते हैं और अच्छे वस्त्र धारण करते हैं, मां लक्ष्मी उनसे काफी प्रसन्न रहती हैं। ऐसे में रक्षाबंधन के दिन आप अपनी बहन को सुन्दर वस्त्र तोहफे के रूप में दें। जो लोग ऐसा नहीं करते हैं, उन्हें जीवन में दरिद्रता का मुख देखना पड़ता है। गहनों को भी मां लक्ष्मी का प्रतिरूप माना जाता है। जिस घर की महिलाएं सुन्दर गहनों से सजती-संवरती हैं, वहां मां लक्ष्मी का बसेरा हमेशा बना रहता है। घर में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती है। जब भी कोई विशेष त्योहार हो उस मौके पर पुरुषों को घर की महिलाओं को तोहफे में सुन्दर गहने देने चाहिए। सभी तोहफों से बढ़कर मीठी वाणी होती है। जिस घर के पुरुष महिलाओं को सम्मान देते हैं और उनसे अच्छे से बात करते हैं, उस घर पर मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। जिस घर की स्त्रियां चिंतित होती हैं, उस घर की तरक्की रुक जाती है। जहां महिलाएं खुश रहती हैं वहां दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होती है।


वृक्ष को भी बांधती है राखी

सदियों से चली आ रही रीति के मुताबिक, बहन भाई को राखी बांधने से पहले प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधती है जिसे वृक्ष-रक्षाबंधन भी कहा जाता है। हालांकि आजकल इसका प्रचलन नही है। राखी सिर्फ बहन अपने भाई को ही नहीं बल्कि वो किसी खास दोस्त को भी राखी बांधती है जिसे वो अपना भाई जैसा समझती है और तो और रक्षाबंधन के दिन पत्नी अपने पति को और शिष्य अपने गुरु को भी राखी बांधते है।


विधि

एक थाली में रोली, चन्दन, अक्षत, दही, रक्षासूत्र और मिठाई रख लें। भाई की आरती के लिए थाली में घी का दीपक भी रखें। पूजा की थाली को सबसे पहले भगवान को समर्पित करें। ध्यान रहे कि भाई पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह कर के ही बैठे। पहले भाई को तिलक लगाएं। फिर राखी बांधे और उसके बाद आरती करें। फिर मिठाई खिलाकर भाई की मंगल कामना करें। इस बात का ख्याल रखें कि राखी बांधते समय भाई और बहन दोनों का सिर जरूर ढका हो। इसके बाद माता-पिता और गुरु का आशीर्वाद लें। भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि बहनों को उपहार में काले कपड़े, तीखी या नमकीन चीज ना दें। ऐसा उपहार दें जो दोनों के लिए मंगलकारी हो।


पूजन से परिवार में खुशहाली

रक्षाबंधन का ये पावन पर्व आपकी कई समस्याओं का समाधान भी बनकर आता है। रक्षाबंधन के दिन विधि-विधान से पूजन करने से मानसिक या शारीरिक समस्याओं का समाधान संभव है। इसके लिए सबसे पहले सफेद वस्त्र धारण करके पूजा के स्थान पर बैठें। अपनी गोद में पानी वाला एक हरा नारियल रखें। इसके बाद ओउम सोम सोमाय नमः का जाप करें। फिर नारियल को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। जिन्हें नजदीकी रिश्तों में समस्या आ रही हो, वे रक्षाबंधन की शाम को चावल, दूध और चीनी की खीर बना कर शिव जी को अर्पित कर दें। इसके बाद सफेद फूल डालकर चन्द्रमा को अर्घ्य दें। खीर को प्रसाद की तरह समस्त परिवार के लोगों को दें और खुद भी ग्रहण करें। राखी बांधते समय बहनें अगर इन मंत्र का उच्चारण करती है तो भाईयों की आयु में वृ्द्धि होती है। जो इस प्रकार है, “येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलःद्व तेन त्वांमनुबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल।।




Suresh-gandhi


सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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