भारत की आध्यात्मिक विरासत, समाज जीवन को जोड़ना और समय अनुकूल परिवर्तन करने के लिए प्रेरित करना भारत की पहचान है. इन सब में हमारी सांस्कृतिक धारा का बहुत बड़ा योगदान है। इसकी गवाही खुद करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र गुजरात के जूनागढ़ में अरब सागर के किनारे बना सोमनाथ मंदिर हैं। कहते है सोमनाथ पर जितने हमले हुए हैं, शायद ही किसी और स्मारक ने उतने हमले झेले हों. कभी महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर हमला करके वहां कत्लेआम मचाया तो कभी औरंगजेब ने सोमनाथ मंदिर को ढहवा दिया. सोमनाथ मंदिर बार बार बनता और ढहता रहा, आखिरकार देश आजाद हुआ तो सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया नया सोमनाथ मंदिर। मतलब साफ है आस्था को आतंक से नहीं कुचला जा सकता है। यह तीर्थस्थान देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है। इसका उल्लेख स्कंदपुराणम, श्रीमद्भागवत गीता, शिवपुराणम आदि प्राचीन ग्रंथों में भी है। वहीं ऋग्वेद में भी सोमेश्वर महादेव की महिमा का उल्लेख है। मंदिर निर्माण स्वयं चंद्रदेव सोमराज ने कराया था। सोमनाथ दो शब्दों से मिल कर बना है सोम मतलब चन्द्र और नाथ का मतलब स्वामी। इस प्रकार सोमनाथ का मतलब चंद्रमा का स्वामी होता है। मान्यता है कि सोमनाथ भगवान की पूजा और उपासना करने से उपासक भक्त के क्षय तथा कोढ़ आदि रोग सर्वथा नष्ट हो जाते हैं और वह स्वस्थ हो जाता हैभगवान शिव ही एकमात्र देवता हैं, जो कण-कण में विराजमान है। शहर-शहर-गांव-गांव में भगवान भोलेनाथ का मंदिर है। लेकिन चमत्कार की ढेरों कहानियां समेटे गुजरात सोमनाथ मंदिर की महिमा अनोखी एवं निराली है। द्वादश 12 ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ मंदिर में स्थापित रूद्र ज्योतिर्लिंग का पहला स्थान है। कहते हैं महादेव अपने इस दर पर किसी भी भक्त को खाली नहीं लौटने देते। यहां आने वाले हर श्रद्धालु के मन में ये अटूट विश्वास होता है कि अब उनकी सारी मुशीबतों का अंत हो जाएगा। कोई अपने पापों के प्रायश्चित के लिए आता है, तो कोई अपने सुहाग की लंबी आयु की मन्नत लेकर सोमनाथ रूप भगवान शिव की आराधना करता है, तो कोई अपने नौनिहाल को भगवान के दरबार में इस उम्मीद के साथ लेकर आता कि भगवान से उसे लंबे और निरोगी जीवन का आशीर्वाद मिल सके। यही वजह है कि देश दुनिया की सीमा से परे हर रोज हजारों श्रद्दालु सोमनाथ पहुंचते हैं और अपना मन भगवान को अर्पण कर मुरादों की झोली भरकर ले जाते है। गुजरात के सौराष्ट्र काठियावाड़ से होकर प्रभास क्षेत्र में कदम रखते ही दूर से ही दिखाई देने लगता है वो ध्वज जो हजारों वर्षों से भगवान सोमनाथ का यशगान करता आ रहा है, जिसे देखकर शिव की शक्ति का, उनकी ख्याति का एहसास होता है। आसमान को स्पर्श करता मंदिर का शिखर देवाधिदेव की महिमा का बखान करता है, जहां अपने भव्य रूप में महादेव भक्तों का कल्याण करते हैं। यही पर भगवान श्रीकृष्ण ने यदुवंश का संहार कराने के बाद अपनी नर लीला समाप्त कर ली थी। ‘जरा’ नामक व्याध (शिकारी) ने अपने बाणों से उनके चरणों (पैर) को बींध डाला था। इसके चलते इस क्षेत्र का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। मंदिर में सबसे पहले भक्तों की भेंट भगवान के प्रिय वाहन नंदी से होती है, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो नंदी भगवान के हर भक्त की अगुवायी कर रहे हों। मंदिर के अंदर पहुंच कर एक अलग ही दुनिया में होने का एहसास होता है, जिस तरफ भी नजर पड़ती है भगवान के चमत्कार का कोई न कोई रूप नजर आता है। भगवान के अद्भुत रूप के श्रृंगार का साक्षी बनने का मौका कोई भी भक्त गवाना नहीं चाहता। मस्तक पर चंद्रमा को धारण किए देवों के देव महादेव का सबसे पंचामृत स्नान कराया जाता है। स्नान के बाद उनका भव्य और अलौकिक श्रृंगार होता है। शिवलिंग पर चदंन से ऊं अंकित किया जाता है। फिर बेलपत्र अर्पित किया जाता है। शिव भक्ति में डूबे भक्त अपने आराध्य का यह अलौकिक रूप देखते ही रह जाते हैं। उन्हें इस बात का एहसास होने लगता है कि यह जीवन धन्य हो गया। भगवान सोमनाथ की पूजा के बाद मंदिर के पुजारी भगवान के हर रूप की आराधना करते हैं, जिसे देखना अपने आप में सौभाग्य की बात है। अंत में उस महासागर की आरती उतारी जाती है जो सुबह सबसे पहले उठकर अपनी लहरों से भगवान के चरणों का अभिषेक करता है, लेकिन जाते जाते भक्त भगवान के वाहन नंदी जी से अपनी मन्नतें भगवान तक पहुंचाने की सिफारिश करना नहीं भूलते, क्योंकि भक्तों का मानना है कि उनके आराध्य तक उनकी हर गुहार नंदी जी ही पहुंचाते हैं।
पर्यटकस्थल के रुप में भी विख्यात
यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मंदिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया। आजादी के बाद से अब तक हर साल यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यह मंदिर जहां पर बना हुआ है उस जगह को वेरावल, सोमनाथपाटण, प्रभास और प्रभासपाटण जैसे कई नामों से जाना जाता है। सोमनाथ मंदिर की बनावट और मंदिर की दीवारों पर की गई शिल्पकारी शिव भक्ति का उत्कृष्ठ नमूना है।पौराणिक मान्यताएं
शिव पुराण के अनुसार प्रचीन काल में राजा दक्ष की 27 कन्याएं थी, जिनका विवाह राजा दक्ष ने चंद्रमा से कर दिया, लेकिन चंद्रमा ने 27 कन्याओं में से केवल एक रोहिणी को ही अपनी पत्नी का दर्जा दिया। बाकी के कन्याओं ने इसकी शिकायत अपने राजा-पिता दक्ष प्रजापति से की। अपनी अन्य कन्याओं पर होते हुए अन्याय को देखकर क्रोध में आकर दक्ष ने चंद्रदेव को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन जब उन्होंने दक्ष की बात नहीं मानी तो उन्होंने चंद्रमा को क्षय रोगी होने का श्राप दे दिया। इससे चंद्रदेव की कांति चमक धूमिल पड़ने लगी। परेशान होकर चंद्रमा ब्रह्मदेव के पास पहुंचे। चांद यानी सोम की समस्या सुन ब्रह्मा ने उनसे कहा कि उन्हें कुष्ठ रोग से सिर्फ महादेव ही मुक्ति दिला सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें सरस्वती के मुहाने पर स्थित अरब सागर में स्नान कर भगवान शिव की उपासना करनी होगी। निरोग होने के लिए चंद्रमा ने कठोर तपस्या की, जिससे खुश होकर महादेव ने उन्हें श्राप से मुक्त कर दिया। शिवभक्त चंद्रदेव ने यहां शिव जी का स्वर्ण मंदिर बनवाया। उसमें जो ज्योतिर्लिंग स्थापित हुआ उसका नाम चंद्रमा के स्वामी यानी सोमनाथ पड़ गया। चंद्रमा ने इसी स्थान पर अपनी कांति वापस पायी थी, इसलिए इस क्षेत्र को प्रभास पाटन कहा जाने लगा। लोककथाओं के अनुसार इसी क्षेत्र में श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। सोमनाथ मंदिर के लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर ही भालका तीर्थ है। ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे। तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिन्ह को हिरण की आँख जानकर धोखे में तीर मारा था। तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।17 बार हो चुका है आक्रमण
सोमनाथ मंदिर का इतिहास बताता है कि समय-समय पर मंदिर पर कई आक्रमण हुए तोड़-फोड़ की गयी। मंदिर पर कुल 17 बार आक्रमण हुए। हर बार मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया गया, लेकिन मंदिर पर किसी भी कालखंड का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिलता। यह मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। सर्वप्रथम एक मंदिर ईसा के पूर्व में अस्तित्व में था जिस जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण 7वीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया। 8वीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद गजनवी ने 1024 में 5000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। 50,000 लोग मंदिर के अंदर हाथ जोडकर पूजा अर्चना कर रहे थे, प्रायः सभी कत्ल कर दिये गये। मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा। लेकिन सन 1026 में महमूद गजनी ने जो शिवलिंग खंडित किया, वह यही आदि शिवलिंग था। इसके बाद प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को 1300 में अलाउद्दीन की सेना ने खंडित किया। इसके बाद कई बार मंदिर और शिवलिंग को खंडित किया गया। बताया जाता है आगरा के किले में रखे देवद्वार सोमनाथ मंदिर के हैं। महमूद गजनी सन 1026 में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साथ ले गया था। सोमनाथ मंदिर के मूल मंदिर स्थल पर मंदिर ट्रस्ट द्वारा निर्मित नवीन मंदिर स्थापित है। राजा कुमार पाल द्वारा इसी स्थान पर अन्तिम मंदिर बनवाया गया था। सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री उच्छंगराय नवल शंकर ढेबर ने 19 अप्रैल 1940 को यहां उत्खनन कराया था। इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिग स्थापित किया है। सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1950 को मंदिर की आधार शिला रखी। 11 मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया। नवीन सोमनाथ मंदिर 1962 में पूर्ण निर्मित हो गया। 1970 में जामनगर की राजमाता ने अपने स्वर्गीय पति की स्मृति में उनके नाम से दिग्विजय द्वार बनवाया। इस द्वार के पास राजमार्ग है और पूर्व गृहमन्त्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा है। सोमनाथ मंदिर निर्माण में पटेल का बडा योगदान रहा। मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है। उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है। मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में मान्यता है कि यह पार्वती जी का मंदिर है। सोमनाथजी के मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबंध किया है।श्राद्ध स्थल भी है सोमनाथ
यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध कर्मो व नारायण बलि आदि के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्र, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना गया है। इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है।
कुंड में स्नना से दूर होता है कुष्ठ रोग
प्रभास क्षेत्र में सभी देवताओं ने मिलकर एक सोमकुण्ड की भी स्थापना की है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस कुण्ड में शिव तथा ब्रह्मा का सदा निवास रहते हैं। इस पृथ्वी पर यह चन्द्रकुण्ड मनुष्यों के पाप नाश करने वाले के रूप में प्रसिद्ध है। इसे ‘पापनाशक-तीर्थ’ भी कहते हैं। जो मनुष्य इस चन्द्रकुण्ड में स्नान करता है, वह सब प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है। इस कुण्ड में बिना नागा किये छः माह तक स्नान करने से क्षय आदि दुःसाध्य और असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते हैं। मुनष्य जिस किसी भी भावना या इच्छा से इस परम पवित्र और उत्तम तीर्थ का सेवन करता है, तो वह बिना संशय ही उसे प्राप्त कर लेता है। शिव महापुराण की कोटिरुद्र संहिता के चौदहवें अध्याय में उपर्युक्त आशय वर्णित है- चन्द्रकुण्डं प्रसिद्ध च पृथिव्यां पापनाशनम्। तत्र स्नाति नरो यः स सर्वेः पापैः प्रमुच्यते।। रोगाः सर्वे क्षयाद्याश्च ह्वासाध्या ये भवन्ति वै। ते सर्वे च क्षयं यान्ति षण्मासं स्नानमात्रतः।। प्रभासं च परिक्रम्य पृथिवीक्रमसं भवम्। फलं प्राप्नोति शुद्धात्मा मृतः स्वर्गे महीयते।। सोमलिंग नरो दृष्टा सर्वपापात्प्रमुच्यते। लब्धवा फलं मनोभीष्टं मृतः स्वर्गं समीहते।। इस प्रकार सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव देवताओं की प्रार्थना पर लोक कल्याण करने हेतु प्रभास क्षेत्र में हमेशा-हमेशा के लिए विराजमान हो गये। इस प्रकार शिव-महापुराण में सोमेश्वर महादेव अथवा सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति का वर्णन है। इसके अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों में लिखी कथा भी इसी से मिलती-जुलती है।
विशेषता
यहाँ भू-गर्भ में (भूमि के नीचे) सोमनाथ लिंग की स्थापना की गई है। भू-गर्भ में होने के कारण यहाँ प्रकाश का अभाव रहता है। इस मन्दिर में पार्वती, सरस्वती देवी, लक्ष्मी, गंगा और नन्दी की भी मूर्तियाँ स्थापित हैं। भूमि के ऊपरी भाग में शिवलिंग से ऊपर अहल्येश्वर मूर्ति है। मन्दिर के परिसर में गणेशजी का मन्दिर है और उत्तर द्वार के बाहर अघोरलिंग की मूर्ति स्थापित की गई है। प्रभावनगर में अहल्याबाई मन्दिर के पास ही महाकाली का मन्दिर है। इसी प्रकार गणेशजी, भद्रकाली तथा भगवान विष्णु का मन्दिर नगर में विद्यमान है। नगर के द्वार के पास गौरीकुण्ड नामक सरोवर है। सरोवर के पास ही एक प्राचीन शिवलिंग है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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