पिछले हड़ताल में तत्कालीन भाजपाई स्वास्थ्य मंत्री श्री मंगल पांडेय द्वारा मासिक मानदेय का वादा कर आशाकर्मियों को धोखा देकर छलपूर्वक मानदेय शब्द को बदलकर पारितोषिक कर दिया था. सम्पन्न वार्ता में पारितोषिक शब्द को पलटते हुए महागठबंधन सरकार मासिक मानदेय करने पर सहमत हो गयी है.आशा संयुक्त संघर्ष मंच का स्पष्ट तौर से मानना है कि पारितोषिक को मानदेय में बदलना बिहार के लाखों आशा व फैसिलिटेटरों के ऐतिहासिक हड़ताल की बड़ी जीत है. बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ (गोप गुट-ऐक्टू) अध्यक्ष शशि यादव ने कहा कि अब आशा व आशा फैसिलिटेटर भी राज्य सरकार की मानदेय कर्मी हो गयी है, मानदेय कर्मी कहलाना बिहार के एक लाख आशकर्मियों के स्वाभिमान और उनकी मर्यादा से जुड़ी बात है. क्योंकि कड़ी मेहनत करने वाली एक लाख कामकाजी महिला आशा को मानदेय कर्मी से भी कमतर समझा जाता रहा है. आशा एवं आशा फैसिलिटेटर संघ (सीटू) महासचिव सुधा सुमन ने बताया कि वार्ता में आशाओं को रिटायरमेंट बेनिफिट और रिटायरमेंट उम्र 60 से बढाकर 65 वर्ष करने पर सरकार विचार करेगी. वहीं संयुक्त महामंत्री विश्वनाथ सिंह ने कहा कि मासिक मानदेय में आशाओं की अपेक्षा के अनुरूप सरकार ने बदलाव नहीं किया है, आशा व आशा फैसिलिटेटरों को भुगतान हो रहे प्रति माह एक हजार राशि के अतिरिक्त डेढ़ हजार रु० प्रति माह का बढ़ोतरी करने पर सहमती बन गयी है. अब प्रतिमाह कुल 2500 रुपया मासिक मानदेय के तौर पर बिहार सरकार अपने खजाने से देगी.
महासंघ (गोप गुट) के सम्मानित अध्यक्ष सह बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ (गोप गुट -ऐक्टू) के मुख्य संरक्षक रामबली प्रसाद और ऐक्टू राज्य सचिव रणविजय कुमार ने बताया कि पटना की जीत हमारी है अब दिल्ली के मोदी सरकार की बारी है ,नेताओं ने कहा कि आशा हड़ताल की 9 सूत्री मांगों में केंद्र की मोदी सरकार से आशाकर्मियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने तथा इंसेंटिव राशि मे कम से कम 300 प्रतिशत की बढ़ोतरी करने जैसी महत्वपूर्ण मांग भी शामिल है, सम्पन्न वार्ता में बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री की ओर से एक प्रस्ताव व अनुशंषा से सम्बंधित पत्र केंद्र की मोदी सरकार को भेजे जाने पर सहमति बनी है. नेताओं ने बताया कि एनएचएम के तहत संचालित आशा के प्रत्येक काम का दाम (इंटेंसिव) का निर्धारण वर्ष 2005 में पूरे देश मे आशा का काम शुरू होने के समय ही किया गया था.जसके बाद मोदी सरकार के 9 वर्ष शासन सहित कुल 17 वर्षों में इनके इंसेंटिव राशि मे एक बार भी ठोस पुनरीक्षण नहीं किया गया है जिसका नतीजा है कि बिहार सहित देशभर में कार्यरत लगभग 10 लाख से अधिक कामकाजी महिला आशा वर्कर आज भी 2005 के निर्धारित दर पर काम करने को अभिशप्त है.नेताओं ने कहा कि हमारे प्यारे भारत देश के महान लोकतंत्र और 9 वर्षीय तथाकथिक राष्ट्रवादी मोदी सरकार के लिए इससे बड़े शर्म की और कोई बात नहीं हो सकती. बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ (गोप गुट) अध्यक्ष शशि यादव, महासंघ (गोप गुट) सम्मानित अध्यक्ष रामबली प्रसाद, ऐक्टू राज्य सचिव रणविजय कुमार व आशा व आशा फैसिलिटेटर संघ (सीटू) संयुक्त महामंत्री विश्वनाथ सिंह, महामंत्री सुधा सुमन ने कहा कि सरकार से सभी बकाया,ड्रेस में राशि बढ़ाने, मुकदमों की वापसी सहित अन्य मांगों पर सकारात्मक निर्णय हुआ है इसलिए सामूहिक व व्यापक विमर्श के बाद आशा संयुक्त संघर्ष मंच के आह्वान पर 12 जुलाई 2023 से राज्य में जारी आशा व आशा फैसिलिटेटरों की अनिश्चितकालीन हड़ताल के आज 31वें दिन हड़ताल समाप्ति की घोषणा करते है.
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