आजकल के समय में लोग अपने आपको इतना व्यस्त बता रहे हैं कि उनके पास अपने बूढ़े मां-बाप के लिए भी समय मौजूद नहीं रह गया है. इसी भागदौड़ भरी जिंदगी में वह अपने फैसले भी खुद लेने में ज्यादा विश्वास रखते हैं. जिसके चलते वृद्ध माता-पिता से लोग बिना सलाह लिए काम करते हैं. इससे आपसी रिश्तो पर बुरा असर पड़ रहा है. रिश्तों में खटास पैदा होने लगी है. रिश्ते दिन प्रतिदिन कमजोर होते जा रहे हैं. आज़ादी के नाम पर मां बाप के साथ रहना बुरा लगने लगा है. प्राइवेसी और 'मेरी लाइफ' के नाम पर माता पिता उन्हीं बच्चों की आंखों में खटकने लगते हैं जो कभी उनकी आंखों का तारा हुआ करते थे. धीरे-धीरे रिश्ते इतने कमजोर हो जाते हैं कि लोगों को इस समस्या का समाधान केवल वृद्धाश्रम लगने लगता है और फिर बच्चे अपने वृद्ध मां-बाप को उनके ही घर से निकाल कर वृद्ध आश्रम में छोड़ आते हैं.
कुछ तो ऐसे वृद्ध होते हैं जिन्होंने किसी दुर्घटना में अपना पूरा परिवार ही खो दिया है. इनका वृद्धाश्रम में पहुंचना तो फिर भी समझ में आता है. परंतु कुछ ऐसे वृद्ध माता-पिता भी होते हैं, जिनके उनके अपने बच्चों द्वारा ही उन्हें वृद्धाश्रम में पहुंचा दिया जाता है और फिर कई साल गुजर जाने के बाद भी उन बच्चों द्वारा अपने बूढ़े माता-पिता की कोई सुध नहीं ली जाती है. यह हालात देश के किसी एक राज्य या जिला की नहीं है बल्कि देश का ऐसा कोई जिला नहीं होगा जहां वृद्ध माता पिता को ऐसी परिस्थिति से गुज़रना नहीं पड़ता है. बात चाहे दिल्ली या मुंबई जैसे महानगर हों या पटना और नागपुर जैसे मध्यम दर्जे के शहर, ऐसे वृद्धाश्रम हर कहीं खुल गए हैं.
वहीं डोडा के रहने वाले वृद्ध मोहनलाल बताते हैं कि "बहुत साल पहले मैं जंगल गया हुआ था. पीछे मेरे मकान में आग लग गई और सारा परिवार जल गया. जब तक शरीर में जान थी अपना गुजारा करता रहा. अब बूढ़ा हो गया हूं इसलिए वृद्धाश्रम आ गया. यहां सब कुछ अच्छे से अच्छा मिल रहा है. बस ईश्वर का नाम लेकर ज़िन्दगी गुजार रहा हूँ. परंतु मैं यह कहना चाहता हूं कि हमें एक हजार पेंशन मिलती थी. अब सरकार ने वह भी बंद कर दी है." इस संबंध में जम्मू म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के डिप्टी मेयर बलदेव सिंह का कहना है कि इन पेंशन प्राप्तकर्ताओं की वेरिफिकेशन हो रही है. सरकार ने वेरिफिकेशन का आधार यह रखा है कि जो गरीबी रेखा से नीचे होंगे, अब केवल उन्हें ही पेंशन मिलेगी.
हालांकि बलदेव सिंह अपनी निजी राय व्यक्त करते हुए कहते हैं कि बिना किसी बाधा के सभी दिव्यांगों और बुज़ुर्गों को पेंशन का प्रावधान होनी चाहिए. बहुत से लोग ऐसे हैं जो घर से बाहर तक नहीं निकल पाते हैं क्योंकि वह पटवारी या तहसील ऑफिस जाने के काबिल ही नहीं होते हैं. इसलिए सरकार को ऐसे सभी लोगों के लिए पेंशन की व्यवस्था करनी चाहिए. इस संबंध में इस ओल्ड एज होम के वार्डन प्रीतम चंद कहते हैं कि यहां कुल 40 बुजुर्ग हैं. जिनमें 22 पुरुष और 18 महिलाएं हैं. इस आश्रम में सभी का ख्याल रखा जाता है. उन्हें घर जैसा वातावरण देने का प्रयास किया जाता है. उनके लिए डॉक्टर और अन्य सुविधाओं की बराबर व्यवस्था की जाती है.
हरीश कुमार
पुंछ, जम्मू
(चरखा फीचर)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें