- मणिपुर में हिंसा और अनकही मानवीय पीड़ा की अंतहीन गाथा के लिए केंद्र और मणिपुर की सरकार जिम्मेदार, मणिपुर की इंफाल घाटी के कांगपोकपी और चुराचांदपुर जिलों के गांवों व राहत शिविरों का भी लिया जायजा
- राहत शिविरों की स्थिति भयावह, बुनियादी सुविधाओं का अभाव, बीमारियां फैला रहीं अपना पैर, किसी भी संभव सियासी समाधान के लिए श्री बीरेन सिंह का इस्तीफा इस दिशा में होगा पहला कदम
जांच दल के निष्कर्ष
1. भारत की आज़ादी की 76 वीं वर्षगांठ पर मणिपुर की घाटी और पहाड़ियों में मैतेई और कुकी जातीय समुदायों को अभूतपूर्व ढंग से अलग करना भाजपा द्वारा दिया गया ‘उपहार’ है. देश के इतिहास में पहले कभी किसी सरकार ने समाज के सामाजिक ताने-बाने को इस तरह समग्रता में नष्ट नहीं किया, जिसके परिणामस्वरूप एक राज्य के भीतर समग्र समुदाय को जातीय रूप से विभिन्न हिस्सों में जुदा-जुदा कर दिया गया है. डबल इंजन वाली भाजपा सरकार ने इस अलगाव को एक ऐसे राज्य में निर्मित किया है, जो पिछले विवादों के बावजूद सामंजस्य स्थापित करने और एक साथ रहने में सक्षम था.
2. यह कहने की जरूरत नहीं है कि पिछले 3 महीने के अधिक समय से चल रहे जातीय अलगाव और हिंसा भाजपा सरकार के कामों का नतीजा है. भले ही मुख्यमंत्री बीरेन सिंह हिंसा को समाप्त करने में पूरी तरह से नकारा और ना-रजामंद साबित हुए हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मणिपुर के बजाय फ्रांस और अमेरिका की अपनी यात्राओं को प्राथमिकता दी. हकीकत में संसद में प्रधान मंत्री और गृह मंत्री का अफसोसजनक जवाब इस संकट के हर पहलुओं पर विचार करने वाला सर्वग्राही सियासी समाधान पेश करने में उनके दिवालियापन को उजागर करती है.
3. राहत शिविरों में स्थिति भयावह है. घाटी और पहाड़ियों के पार आंतरिक रूप से विस्थापित हजारों लोग विकट परिस्थितियों में रह रहे हैं. बुनियादी सुविधाओं का अभाव है और अपर्याप्त व्यवस्था इस बात को जाहिर करती है कि सरकार ने पीड़ितों से अपना पल्ला छुड़ा लिया है.
4. विस्थापित मेइतियों के लिए घाटी में राहत शिविर खराब स्थिति में हैं. यह पता चला कि राज्य सरकार द्वारा इंफाल के मध्य में स्थित श्यामसाखी हाई स्कूल के राहत शिविर में प्रति व्यक्ति 80/- रुपये के अलावा कुछ चावल और दाल दी जाती है, जो बेहद ही अपर्याप्त है. जांच-दल ने यह भी पाया कि मोइरांग बाजार के राहत शिविर में कोई माकूल सुविधाएं प्रदान नहीं की जा रही हैं, सिर्फ 500 रुपया प्रति व्यक्ति अब तक वितरित किये गये हैं. अकम्पट के स्कूल परिसर में संचालित राहत शिविर में भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. चुराचांदपुर में स्वयंसेवकों द्वारा संचालित युवा छात्रावास के राहत शिविर में कमरे अत्यधिक भीड़भाड़ वाले हैं, और संक्रामक बीमारियाँ तेजी से फैलने लगी हैं. शिविर में खसरा, चिकन पॉक्स, वायरल बुखार से ग्रसित होना लोगों के लिए रोजमर्रा की हकीकत है. जांच दल ने आंतरिक रूप से विस्थापित 500 तक के लोगों वाले राहत शिविरों में स्वच्छता का काफी अभाव पाया. अधिकांश राहत शिविर निवासियों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं और उन्हें दिन में केवल दो बार चावल और दाल दी जाती है. कांगपोकपी राहत शिविर में भी ऐसे ही हालात हैं, जहां उचित पोषण और स्वच्छता नहीं है. जिले में केवल एक अपग्रेड पीएचसी है जिसे जिला अस्पताल नामित किया गया है, लेकिन पर्याप्त डॉक्टर, स्टाफ और दवाइयां नहीं हैं.
5. घाटी और पहाड़ियों के बीच की सीमा और अघोषित नाकेबंदी ने बुनियादी राहत खाद्य पदार्थों, दवाओं सहित आवश्यक वस्तुओं के परिवहन को बुरी तरह से प्रभावित किया है, जिससे पहाड़ी जिलों के राहत शिविरों में हजारों आंतरिक रूप से विस्थापित कुकी प्रभावित हुए हैं. इससे घाटी के बाहर मैतियों की गतिशीलता पर भी असर पड़ा है.
6. हिंसा और प्रभावित लोगों की जान-माल की हानि के लिए पूरी तरह सरकार दोषी है. यह बेहद शर्म की बात है कि सुप्रीम कोर्ट को यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा कि इन गंभीर और अमानवीय अपराधों की जांच के लिए बुनियादी कदम उठाए जाएं.
इस मानवीय त्रासदी के किसी भी संभव सियासी समाधान के लिए मुख्यमंत्री के बतौर श्री बीरेन सिंह का इस्तीफा इस दिशा में पहला कदम होगा. हम पीड़ित समुदायों से आपसी सभी दुश्मनी खत्म करने की अपील करते हैं ताकि राहत शिविरों में लोगों की उचित देखभाल को सुनिश्चित की जा सके. यह वर्तमान गतिरोध को खत्म कर समाधान की दिशा में बढ़ने का कदम है.
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