- गांधी ने जिसको सत्य माना हमेशा उसके साथ अडिग रहे : डॉ. मिथिलेश
- परसाई एक ऐसा आईना हैं जिसके भीतर हम अपने अंदर की विद्रूपताओं को देख सकते हैं: डॉ. बसंत त्रिपाठी
- ‘ज्ञान पर्व’ में याद किया गया हरिशंकर परसाई के जीवन और व्यक्तित्व की
प्रयागराज; 22 अगस्त, 2023 : मेजर ध्यानचंद छात्र गतिविधि केन्द्र, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज में राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा आयोजित ‘ज्ञान पर्व’ के दूसरे दिन की शुरुआत 'अच्छी हिन्दी कैसे लिखें?' विषय पर आयोजित कार्यशाला से हुई। इस सत्र में बतौर विशेषज्ञ डॉ. लक्ष्मण प्रसाद गुप्त जी ने बच्चों को अच्छी हिन्दी लिखने और बोलने के गुर सिखाए। इस सत्र में अस्सी से अधिक छात्रों ने हिस्सा लिया। लगभग दो घंटे चले इस बेहद रोचक सत्र में स्नातक प्रथम वर्ष के छात्रों से लेकर शोधार्थियों तक ने बढ़ चढ़कर अपनी प्रस्तुति दर्ज कराई। विशेषज्ञ डॉ. लक्ष्मण प्रसाद गुप्त ने अच्छी हिन्दी हेतु कई महत्वपूर्ण किताबों की भी चर्चा की। अगला सत्र 'हिंदी व्यंग्य और हरिशंकर परसाई' पर परिचर्चा का आयोजन हुआ। इस सत्र में डॉ. बसंत त्रिपाठी, डॉ. दिनेश कुमार और डॉ. चित्तरंजन कुमार ने परसाई के जीवन और साहित्य पर बातचीत की। इस सत्र का संचालन शोधार्थी पुष्पेंद्र ने किया। इस सत्र में डॉ. चित्तरंजन कुमार ने कहा कि परसाई अपने समाज के सजग लेखक हैं। परसाई को पढ़ते हुए कबीर की याद अक्सर आती है। डॉ. दिनेश कुमार ने कहा कि जो स्थान कथा साहित्य में प्रेमचंद का है, कविता में मुक्तिबोध का है वही स्थान व्यंग्य में परसाई जी का है। डॉ. बसंत त्रिपाठी ने कहा कि परसाई एक ऐसा आईना हैं जिसके भीतर हम अपने अंदर की विद्रूपताओं को देख सकते हैं।
अगले सत्र में डॉ. विनम्र सेन सिंह की पुस्तक 'कलम आज उनकी जय बोल' ( हिन्दी की राष्ट्रवादी कविता) पर परिचर्चा हुई जिसमें अध्यक्ष की भूमिका में डॉ. बृजेश कुमार पाण्डेय, मुख्य अतिथि की भूमिका में डॉ. अमरेन्द्र त्रिपाठी, लेखक डॉ. विनम्र सेन सिंह व संचालन डॉ. सुजीत सिंह ने किया। डॉ. अमरेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि भारत वर्ष को राष्ट्र के रूप में बांधने का काम राजाओं या नेताओं ने नहीं बल्कि साहित्यकारों ने किया। ‘कलम आज उनकी जय बोल’ भारत वर्ष की विविधता में एकता की अवधारणा से युक्त ऐसी कविताओं का संग्रह है जो युवाओं को भारत और भारतीय स्वाधीनता के महत्व को सिखाने का काम करती है। इस अवसर पर डॉ. विनम्र सेन सिंह ने कहा कि बालकृष्ण शर्मा नवीन ने जितना समय अंग्रेजों की जेल में बिताया उतना दूसरा कोई बुद्धिजीवी जेल में नहीं रहा। सुभद्रा कुमारी चौहान झण्डा फहराने के जुर्म में गर्भवती होते हुए भी जेल भेज दी गयीं। ऐसे 14 महत्वपूर्ण कवियों जिनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को जानने की हम सभी राष्ट्र प्रेमियों को आवश्यकता है, इसी विचार से इस पुस्तक की योजना बनी। इसके प्रकाशन हेतु लोकभारती प्रकाशन का धन्यवाद भी किया। अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. बृजेश कुमार पाण्डेय ने राम प्रसाद बिस्मिल के पत्र के हवाले से कहा कि फांसी के फंदे को देखकर स्वाधीनता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर देने की शक्ति से ओत प्रोत रचनाकारों को याद करते हुए विनम्र जी कलम से प्रार्थना करते हैं कि ऐसे महामानवों की जय बोलें। आज के समय और समाज के लिए यह बेहद आवश्यक पुस्तक है। अगला सत्र 'गांधी और नैतिकता' विषय पर प्रो. वसुधा पाण्डेय व डॉ. मिथिलेश कुमार ने बातचीत की। इस सत्र का संचालन शोधार्थी शुभांकर सिंह ने किया। इस सत्र में वर्धा विश्वविद्यालय में सहायक आचार्य डॉ. मिथिलेश ने कहा कि गांधी ने जिसको सत्य माना हमेशा उसके साथ अडिग रहे। उन्होंने उनके सत्याग्रह को समझने का सूत्र बताते हुए कहा कि गांधी का सत्याग्रह आत्मबल, प्रेमबल और न्यायबल की बुनियाद पर अडिग है। इस अवसर पर प्रो. वसुधा पाण्डेय ने कहा कि जो लोग अंग्रेजों के खिलाफ घरों से बाहर निकलने से डरते थे गांधी ने उन्हें घरों से बाहर निकाला। उनके अंदर का भय मिटाया। आखिरी सत्र में डॉ. सुनील विक्रम सिंह ने अपनी कहानी 'तेरी कुड़माई हो गई क्या?' का पाठ किया और डॉ. गणेशन मिश्र, सोनम राय और डॉ. सौरभ सिंह ने कहानी पर अपनी राय श्रोताओं से साझा की।
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