पटना, शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक की सख्ती से शिक्षक 'हांफ' रहे हैं। कल तक जो मास्टर साहब 'शिक्षक की नौकरी' को मजे की नौकरी समझते थे, वो आज इस नौकरी से परेशान नजर आ रहे हैं। दरअसल, शिक्षकों को स्कूलों में इतनी सख्ती के साथ काम करने की नौबत नहीं आई थी और ना ही विभाग के स्तर से ही इतनी सख्ती की गई थी। शिक्षा विभाग की कमान संभालते ही केके पाठक की सख्ती इस कदर है कि शिक्षकों को शिक्षक की नौकरी एक तरह से बोझ लगने लगा है। हर दो-चार दिनों पर विभाग से जारी आदेशों/निर्देशों का पालन करने में शिक्षक कुछ अधिक परेशान हैं। ताजा खबर यह है कि अब स्कूल के शिक्षकों को बोरा ही नहीं, बल्कि स्कूल में वर्षों से जमा कबाड़ भी बेचना है।
बोरा के बाद कबाड़ बेचने का जिम्मा
ध्यान रहे कि प्राथमिक, मिडिल और मदरसा समेत अन्य स्कूलों में एमडीएम बनता है। इसके लिए हर स्कूल को प्रतिमाह थोक में चावल मिलता है। चावल का बोरा स्कूलों में जमा रहता है। अधिक बोरा होने पर प्रधान शिक्षक उसे बेचते हैं। पहले प्रति बोरा का दर 10 रुपये था। अब विभाग ने प्रति बोरा का रेट 20 रुपये निर्धारित कर दिया है। बोरा को 20 रुपये की दर से बेचने वाले आदेश पर शिक्षक सोंच ही रहे थे कि विभाग ने स्कूलों में पड़े कबाड़ को बेचने का फरमान जारी कर दिया। इस ताजा फरमान से शिक्षक अपने को कुछ असहज महसूस करने लगे हैं।
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