- 3 दर्जन पार्थिवशिवलिंग बनाकर सहस्त्रार्चन एवं रुद्राभिषेक द्वारा की गई उपासना
सीहोर। रुद्राभिषेक करना शिव आराधनाओ में सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। रुद्राभिषेक के रुद्राष्टक अध्यायी पाठ के मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में आया है। रुद्र का मतलब होता है कि जो संसार के जीवों के कष्टो को देखकर जिसका हृदय द्रवित हो जावे, उसे रूद्र कहते हैं। संसार में भगवान शिव इतने भोले भंडारी हैं कि वह अपने भक्तों का दुख कष्ट देख नहीं सकते इसीलिए शास्त्रों में उनका नाम रूद्र रखा है ऐसे रुद्र का अभिषेक पूजन मनुष्य के लिए अत्यंत कल्याण कारी होता है रुद्राभिषेक का मतलब है? भगवान रुद्र के ऊपर जल की धारा लगाकर रुद्राष्टक अध्यायी के मंत्रों से किसी भी वस्तु में भगवान शिव को अभीषिक्त करना जिससे वह कल्याण करने के लिए भक्तों के सामने प्रकट हो जावें और उन्हें अभी अविचल भक्ति प्रदान कर उनके कष्टों का निवारण करें। रुद्राष्टाध्यायी के मित्रों द्वारा भगवान शिव के ऊपर जो धारा गिरती है। उक्त बातें शहर के चाणक्यपुरी स्थित गोंदन सरकार मंदिर में सावन के अंतिम सोमवार पर आयोजित पार्थिव रुद्राभिषेक महोत्सव के अंतर्गत आयोजित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए आचार्य व्रजेन्द्र व्यास महाराज काशी ने कही। उन्होंने कहा कि उसे प्रसन्न होकर भगवान भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं इसीलिए मां गंगा भी भगवान की जटाओं में रहकर सदा शिव का रुद्राभिषेक करती रहती है। जिस प्रकार भक्त भगवान का अभिषेक करते हैं उसी प्रकार भगवान भी उसके ऊपर अपनी करुणा भक्ति का अभिषेक करते है। शिव का अर्थ होता है? शं करोति कल्याणम् इति शिव जो जगत का कल्याण करने के लिए प्रसस्त है उद्यत हैं बस उसकी शरण आने की डर है भगवान का अवतार ही जीवो पर कल्याण के लिए होता है। अत: मनुष्य को भगवान शिव की भक्ति में सर्वश्रेष्ठ रुद्राभिषेक रूपी उपासना अवश्य करना चाहिए। इस अभिषेक महोत्सव में 31 से अधिक जोडों ने आचार्य श्री व्यासजी के मार्गदर्शन में पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण कर रुद्राभिषेक किया और उसके पश्चात महाआरती और प्रसादी का वितरण किया गया। आचार्य श्री व्यास ने बताया कि रुद्राभिषेक में शंकर भगवान के रुद्र अवतार की पूजा की जाती है। रुद्र का अर्थ सब अत्यंत क्रोधी समझते हैं परंतु रुद्र का अर्थ क्रोध नहीं बल्कि भक्तों की पीड़ा को देखकर द्रवित हो जाना ही रुद्र है। जिनका पूजन समस्त ग्रह बाधाओं और समस्याओं को समाप्त करता है। आचार्य श्री व्यास ने बताया कि रुद्राभिषेक में शिवलिंग को अनेक वस्तुओं से जैसे दूध, दही, शहद, शक्कर, घी, फल का रस,भांग मिश्रित जल, भस्म मिश्रित जल , तथा औषधीय के मिश्रण से बने जल से पवित्र स्नान कराकर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। कथा दूध और जल के मिश्रण से धारा लगाकर रुद्राभिषेक किया जाता है। शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है। तथा रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं। भगवान श्री राम ने लंका पर कूच करने से पहले भगवान शिव की पार्थिव पूजा की थी। कलयुग में भगवान शिव का पार्थिव पूजन कूष्माण्ड ऋषि के पुत्र मंडप ने किया था। शनिदेव ने अपने पिता सूर्यदेव से शक्ति पाने के लिए काशी में पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजन किया था। माता पार्वती ने भी भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए पार्थिव शिवलिंग बनाकर ही पूजन किया था। भगवान चंद्रमा ने अपने ससुर दक्ष प्रजापति के द्वारा दिए गए श्राप को मिटाने के लिए पार्थिव शिवलिंग का ही निर्माण पूजन किया था। इस पार्थिव शिवलिंग से सौराष्ट्र में सोमनाथ शिवलिंग ज्योतिर्लिंग के रूप में विख्यात है घुष्मा नाम की ब्राह्मण पत्नी ने पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजन किया था उसी से घुश्मेश्वर महादेव प्रकट हुए जो की ज्योतिर्लिंग के रूप में विख्यात है। नर नारायण ने भारतीय शिवलिंग बनाकर पूजन किया इस पारसी से केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। अत: रुद्राभिषेक परमात्मा को सन्मुख प्रकट कर उनकी भक्ति प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है
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