सुधांशु ने बताया कि जो जॉब वे कर रहे थे, उससे संतुष्ट नहीं थे. ऊपर से घर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी. ऐसे में काफी परेशानी हो रही थी. इसलिए सोशल मीडिया और उन सभी दोस्तों से दूर होकर वह सिर्फ पढ़ाई में लग गए. सफल चंद्रयान- 3 के होने पर वैज्ञानिक सुधांशु कुमार के पिता महेंद्र प्रसाद बताते हैं कि सुधांशु ने काफी मेहनत की है. आज भले ही उसने अपने परिवार और पूरे गांव का नाम रोशन किया है, लेकिन एक स्थिति ऐसी भी आई थी कि दूसरे से पैसे मांग कर अपने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया. वहीं सुधांशु की मां बिंदु देवी भावुक हो कर कहती हैं कि मेरा बेटा वैज्ञानिक है. इसके लिए उसने बहुत मेहनत की है. हमने भी उसकी हर जरूरत पूरी करने की कोशिश की है. अब वह देश का नाम रोशन कर रहा है. इसरो के श्रीहरिकोटा सेंटर में वैज्ञानिक सुधांशु कुमार चंद्रयान-3 के लॉन्च व्हीकल बनाने की टीम में शामिल रहे हैं. उन्होंने बताया कि इसे बनाने के लिए कुल 30 लोगों की टीम थी, जिसमें 3 वैज्ञानिक रहे हैं. उनमें एक वह भी वैज्ञानिक के रूप में शामिल रहे हैं.उन्होंने कहा कि सैटेलाइट को ऑर्बिट तक पहुंचाने का काम लॉन्च व्हीकल की मदद से किया जाता है. अभी तक सब कुछ सही चल रहा है. पूरी टीम को विश्वास है, हम लोग शत प्रतिशत सफल रहेंगे. सभी की निगाहें कंप्यूटर स्क्रीन पर रात दिन टिकी हुई है। हम दोनों ने 140 करोड़ देशवासियों की तरह हाथ जोड़कर देवी-देवताओं के समक्ष सफलतापूर्वक चांद पर लैंडिंग हो जाने के लिए गिड़गिड़ाये.इसरो (ISRO) के कई वैज्ञानिक इस पूरे कार्य में लगे हैं.उनके द्वारा भारत के मून मिशन चंद्रयान 3 के शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के साउथ पोलर हिस्से में लैंडिंग हो गया.चंद्रयान - 3 की टीम में बिहार के गया जिले के खरखुरा मोहल्ले के रहने वाले इसरो वैज्ञानिक सुधांशु कुमार के मोहल्ले के लोग गर्व महसूस कर रहे हैं.
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