चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के साउथ पोल पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग करते हुए अंतरिक्ष की दुनिया में भारत ने इतिहास रच दिया है. इसके साथ भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया. बता दें, भारत अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ के बाद चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया. चंद्रमा की सतह पर अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ और चीन ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कर चुके हैं, हालांकि इनमें से कोई भी देश ऐसा नहीं है जिसकी ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में हुई है. चंद्रयान-3 के लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग में 15 से 17 मिनट लगे. चंद्रयान 3 को 14 जुलाई को दोपहर 2.30 बजे लॉन्च किया गया था. चांद पर तिरंगा देख पूरी दुनिया कायल हो गयी है। हर तरफ से हिंदुस्तान को बधाई मिल रही है। फिरहाल, ये चंद्रमा की सतह से डेटा इकठ्ठा करेगा और इसके रहस्यों से पर्दा उठाएगा. इसके साथ ही ये चंद्रमा पर भारत के राष्ट्रीय चिह्न के निशान भी छोड़ेगा. ये चांद की सतह पर मौजूद पानी और खनिजों का पता लगाएंगे. सिर्फ यही नहीं, इनका काम ये भी पता करना है कि चांद पर भूकंप आते हैं या नहींभारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष क्षेत्र में एक नया अध्याय रचते हुए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर ’विक्रम’ और रोवर ’प्रज्ञान’ से लैस एलएम की साफ्ट लैंडिग कराने में सफलता हासिल की. इस सफलता के साथ सोशल मीडिया पर देश-विदेश में भारत का जयकारा गूंज रहा है। भला क्यों नहीं, ये क्षण विकसित भारत के शंखनाद का जो है. यह क्षण नए भारत के जयघोष क है. यह क्षण मुश्किलों के महासागर को पार करने का है. यह क्षण जीत के चंद्रपथ पर चलने का है. यह 7ण 140 करोड़ धड़कनों के सामर्थ्य का है. यह क्षण भारत में नई ऊर्जा के विश्वास का है. यह क्षण भारत के उदीयमान भाग्य के आह्वान का है. भारत के इतिहास में 23 अगस्त का दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा. ये हर भारतीयों के लिए गर्व का क्षण है. हम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जाने वाले पहले देश बन गए हैं. जबकि दुनिया चंद्रमा के बारे में कल्पना करती है, हमने वास्तव में चंद्रमा को महसूस किया है. दुनिया चंद्रमा के सपने देखती है, और हमने सपने को हकीकत में बदलते देखा है. आकाश की कोई सीमा नहीं है. यह सब इसरो के वैज्ञानिकों के कौशल, साहस और प्रतिभा के कारण संभव हो पाया है। चंद्रयान-3 की सफल सॉफ्ट लैंडिंग नए भारत की क्षमताओं और शक्ति का सशक्त प्रदर्शन है. प्रधानमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व और मार्गदर्शन में इसरो के वैज्ञानिकों ने जो किया, कोई नहीं कर सका. चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव अब तक दुनिया के लिए असंभव था, लेकिन हमारे दूरदर्शी वैज्ञानिकों ने इसे संभव बना दिया है.
चंद्रयान3 मिशन के साथ ही दो शब्द बार-बार सुने और पढ़े जाते रहे हैं-लैंडर और रोवर. चंद्रयान-3 के लैंडर का नाम विक्रम रखा गया है और रोवर को प्रज्ञान नाम दिया गया है. बता दें कि चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर का नाम भी यही था. इसमें इस बार कोई बदलाव नहीं किया गया है. भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक और भौतिक विज्ञानी विक्रम साराभाई के बेटे कार्तिकेय साराभाई और पुत्री मल्लिका साराभाई ने कहा कि चंद्रयान-3 परियोजना ’नये भारत’ को प्रतिबिंबित करती है और प्रत्येक नागरिक को इस पर गर्व है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने विक्रम साराभाई को श्रद्धांजलि स्वरूप चंद्रयान-3 के लैंडर का नाम ’विक्रम’ रखा है. बता दें, आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से 14 जुलाई को चंद्रयान-3 ने उड़ान भरा था. पूरे 40 दिनों की लंबी यात्रा के बाद आज 23 अगस्त यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सुरक्षित पहुंचा. चंद्रयान-3 चांद के साउथ पोल पर उतरने वाला पहला अंतरिक्ष यान है. ये चांद का वो हिस्सा है जहां अभी तक कोई नहीं पहुंच पाया. इससे पहले भी भारत के साथ-साथ कई देश इस हिस्से पर पहुंचने की कोशिश कर चुके हैं.सफल लैंडिंग के बाद चंद्रयान मिशन का अगला काम अब रोवर करेगा. रोवर चांद की सतह पर घूमेगा और वहां मौजूद रसायन और खनिज का डेटा भारत को भेजेगा. इससे चांद की गतिशीलता को समझने में मदद मिलेगी. इसरो के मुताबिक, चंद्रयान को जब धरती से अंतरिक्ष में भेजा गया तब लैंडर और रोवर सहित उसका कुल वजन 3,900 किलोग्राम था. जबकि लैंडर का वजन 1,500 किलोग्राम, रोवर का वजन 26 किलोग्राम है. भारत ने इससे पहले 22 अक्टुबर 2008 को चंद्रयान1 और 22 अगस्त 2019 को चंद्रयान-2 मिशन लांच किया था. हालांकि ये मिशन सफल नहीं हो सका. खास यह है कि जिस वक्त लैंडर विक्रम उतरा, उसके ऊपर चंद्रमा की धूल का बड़ा-सा बादल छा गया था. चंद्रमा के बेहद कमज़ोर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण धूल जल्द ही नीचे नहीं बैठेगी, बल्कि अपनी ही गति से बिखर जाएगी. देखा जाएं तो चंद्रयान, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो द्वारा निर्मित और प्रबंधित की जाने वाली एक मानव चुम्बकीय चंद्रयान मिशन है। यह भारत की अंतरिक्ष मिशन की एक महत्वपूर्ण पहल है और इसका उद्देश्य चंद्रमा के नए अन्वेषण और वैज्ञानिक अध्ययन के माध्यम से ज्ञान को बढ़ाना है। इसके तहत चंद्रमा की उपग्रहीय और मानवीय नजरियों से जांच की जाती है। चांद पर रहस्यों के घूंघट को हटाने के भारत के प्रयास के तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपना नया उपग्रह चंद्रयान-3 धरती के उस कक्षा में पहुंचाने की बड़ी सफलता हासिल कर ली, जहां से इस यान ने खोजी उपकरणों के साथ चंद्रमा की ओर अपनी यात्रा शुरू की है। यह अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति करने की देश की अडिग प्रतिबद्धता को दर्शाता है। या यूं कहे चंद्रयान-3 ने भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक नया अध्याय जोड़ा है। यह सफलता हर भारतवासी के सपनों और आकांक्षाओं को नयी ऊंचाइयों पर ले जाने वाली है। यह ऐतिहासिक उपलब्धि हमारे वैज्ञानिकों के अनथक समर्पण की कथा है। इस मिशन का पहला टारगेट चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग है। दूसरा टारगेट रोवर का चंद्रमा की सतह पर चहलकदमी करना और तीसरा रोवर से जुटाई जानकारी के आधार पर चंद्रमा के रहस्यों से पर्दा उठाना है।
चंद्रयान-3 का भी चंद्रयान-2 जैसा ही उद्देश्य है। वह है चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना। इसरो के तीसरे चंद्र मिशन की लागत लगभग 615 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-3 के तीन उद्देश्य हैं। पहला- विक्रम लैंडर की चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग. दूसरा- चंद्रमा की सतह पर प्रज्ञान रोवर को दौड़ते हुए दिखाना. और तीसरा दृ वैज्ञानिक परीक्षण करना। विक्रम लैंडर के साथ तीन और प्रज्ञान रोवर के साथ दो पेलोड होंगे। पेलोड को हम सरल भाषा में मशीन भी कह सकते हैं। रोवर लैंडर से बाहर आ सकता है, लेकिन दोनों एक-दूसरे से जुड़े रहेंगे। रोवर को जो भी जानकारी मिलेगी, वह उसे लैंडर को भेजेगा, जो उसे इसरो को भेजेगा। लैंडर और रोवर पेलोड चंद्रमा की सतह का अध्ययन करेंगे। वे चंद्रमा की सतह पर मौजूद पानी और खनिजों का पता लगाएंगे। इतना ही नहीं इनका काम यह पता लगाना भी है कि चंद्रमा पर भूकंप आते हैं या नहीं। वैज्ञानिक दुनिया को बताना चाहते हैं कि भारत दूसरे ग्रह पर सॉफ्ट लैंडिंग करा सकता है. वहां अपना रोवर चला सकता है. चांद की सतह, वायुमंडल और जमीन के भीतर होने वाली हलचलों का पता करना. चंद्रयान-3 के लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल में कुल मिलाकर छह पेलोड्स जा रहे हैं. पेलोड्स यानी ऐसे यंत्र जो किसी भी तरह की जांच करते हैं. लैंडर में रंभा-एलपी, चास्टे और इल्सा लगा है. रोवर में एपीएक्सएस और लिब्स लगा है. प्रोपल्शन मॉड्यूल में एक पेलोड्स शेप लगा है. इसरो वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि लैंडर-रोवर चंद्रमा पर एक दिन तक काम करेंगे. यानी पृथ्वी का 14 दिन. जहां तक प्रोपल्शन मॉड्यूल की बात है तो यह तीन से छह महीने तक काम कर सकता है. संभव है कि ये तीनों इससे ज्यादा भी काम करें. क्योंकि इसरो के ज्यादातर सैटेलाइट्स उम्मीद से ज्यादा चले हैं. इससे पहले दुनिया के चार देश चांद पर चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास कर चुके है. कुल मिलाकर 38 बार सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास किया गया है. लेकिन सारे सफल नहीं हुए. चार देशों द्वारा किए गए प्रयास में सॉफ्ट लैंडिंग की सफलता दर सिर्फ 52 फीसदी है. यानी सफलता की उम्मीद 50 फीसदी ही करनी चाहिए.
चंद्रयान -1
भारत का पहला चंद्रयान मिशन, चंद्रयान-1, था जिसने अक्टूबर 2008 में प्रक्षेपण किया गया था। इस मिशन के तहत, चंद्रयान-1 उपग्रह ने चंद्रमा के प्रकाश से परिचित कराने के लिए छोटे और स्वचालित प्रयोगों को संचालित किया। यह भारत के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह भारत की पहली अंतरिक्ष मिशन थी जो स्वतंत्र रूप से चंद्रमा के पास पहुँची थी। चंद्रयान-1 उपग्रह ने चंद्रमा के बारे में महत्वपूर्ण डेटा और तस्वीरें प्राप्त की, जिसने वैज्ञानिकों को अधिक जानकारी प्रदान की और इसरो को आगे के मिशन की योजना बनाने में मदद की।
चंद्रयान -2
चंद्रयान -2, जिसे 22 जुलाई 2019 को प्रक्षेपण किया गया था, भारत का दूसरा चंद्रयान मिशन था। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा के पोलार इलाकों की खोज और उसमें पानी की मौजूदगी की पुष्टि करना था। इस मिशन का मुख्य उपग्रह, चंद्रयान-2 लैंडर विक्रम और रोवर प्रग्यान चंद्रयान-2 के साथ भेजे गए। यह मिशन आंतरिक्ष में विज्ञान के क्षेत्र में भारत की मुद्रणी को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण था। दुर्भाग्यवश, चंद्रयान-2 उपग्रह का लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक नहीं उतर सका, लेकिन मिशन को एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में माना जाता है और इसने भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निष्ठा और क्षमता को दिखाया।रहस्मय दुनिया है दक्षिणी ध्रुव का
जैसे पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव है, वैसे ही चंद्रमा का भी दक्षिणी ध्रुव है। पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका में है। पृथ्वी पर सबसे ठंडा स्थान चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव भी ऐसा ही है। सबसे ठंडा। यदि कोई अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर खड़ा हो तो उसे क्षितिज रेखा पर सूर्य दिखाई देगा। यह चंद्रमा की सतह पर चमकता नजर आएगा. इस क्षेत्र का अधिकांश भाग छाया में रहता है। क्योंकि सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं। जिसके कारण यहां का तापमान कम रहता है। पहले चंद्रयान-2 और अब चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। अनुमान है कि लगातार छाया और कम तापमान के कारण यहां पानी और खनिज पदार्थ हो सकते हैं। पिछले चंद्र अभियानों में भी इसकी पुष्टि हो चुकी है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक रिपोर्ट में कहा कि ऑर्बिटर के परीक्षणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ है और अन्य प्राकृतिक संसाधन भी हो सकते हैं. इस भाग के बारे में अभी भी बहुत कुछ जानना बाकी है। 1998 में, नासा के चंद्र मिशन ने दक्षिणी ध्रुव पर हाइड्रोजन की उपस्थिति की खोज की। नासा का कहना है कि हाइड्रोजन की मौजूदगी बर्फ का सबूत है। नासा के मुताबिक, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बड़े-बड़े पहाड़ और कई गड्ढे हैं। यहां सूरज की रोशनी बहुत कम है.
यहां सूरज कभी नहीं चमकता
धूप वाले भागों में तापमान 54 डिग्री सेल्सियस तक होता है। लेकिन जिन हिस्सों में सूरज की रोशनी नहीं होती, वहां तापमान शून्य से 248 डिग्री सेल्सियस नीचे तक पहुंच जाता है। नासा का दावा है कि ऐसे कई क्रेटर हैं जो अरबों सालों से अंधेरे में डूबे हुए हैं। यहां सूरज कभी नहीं चमकता। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पूरा दक्षिणी ध्रुव अंधेरे में रहता है. दक्षिणी ध्रुव के कई क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ सूर्य का प्रकाश प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए, शेकलटन क्रेटर के पास कई स्थान हैं जहां साल में 200 दिन सूरज की रोशनी मिलती है। चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव काफी रहस्यमय है। दुनिया अभी भी इससे अंजान है. नासा के एक वैज्ञानिक का कहना है कि हम जानते हैं कि दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ है और अन्य प्राकृतिक संसाधन भी हो सकते हैं। हालाँकि, यह अभी भी एक अज्ञात दुनिया है। नासा का कहना है कि दक्षिणी ध्रुव के कई क्रेटरों पर कभी रोशनी नहीं पड़ी है और उनमें से ज्यादातर छाया में रहते हैं, इसलिए वहां बर्फ पड़ने की संभावना ज्यादा है। यह भी अनुमान लगाया गया है कि यहां जमा पानी अरबों साल पुराना हो सकता है। इससे सौरमंडल के बारे में बेहद अहम जानकारी हासिल करने में मदद मिलेगी. नासा के मुताबिक, अगर पानी या बर्फ मिलती है तो इससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि सौर मंडल में पानी और अन्य वस्तुएं कैसे घूम रही हैं। उदाहरण के लिए, पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों की बर्फ से पता चला है कि हमारे ग्रह की जलवायु और वातावरण हजारों वर्षों में कैसे विकसित हुए हैं। यदि पानी या बर्फ मिल जाए तो इसका उपयोग पीने, उपकरण ठंडा करने, रॉकेट ईंधन बनाने और शोध कार्य में किया जा सकता है चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव एक अजीब जगह है। यहां सबसे बड़ी चुनौती अंधेरा है. यहां लैंडर उतारना हो या जगह, बहुत मुश्किल है। क्योंकि चंद्रमा पर पृथ्वी जैसा वातावरण नहीं है। नासा का यह भी कहना है कि हम चाहे कितनी भी उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करें और लैंडर कितना भी उन्नत क्यों न हो, यह बताना मुश्किल है कि दक्षिणी ध्रुव पर जमीन कैसी दिखती है। और तापमान बढ़ने और घटने से कुछ सिस्टम ख़राब भी हो सकते हैं। हालाँकि, दुनिया इस हिस्से को पकड़ने की कोशिश कर रही है। नासा अगले साल अंतरिक्ष यात्रियों को दक्षिणी ध्रुव पर भेजने की तैयारी कर रहा है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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