मधुबनी, श्रीकृष्ण जन्मोत्सव खत्म होने के साथ ही मिथिला के लोग चौरचन पर्व की तैयारी में जुट गए हैं। चौरचन को चौठचंद्र के नाम से भी जाना जाता है। भादव महीने में अमावस्या के बाद चतुर्थी तिथि को यह पर्व प्रतिवर्ष मनाया जाता है। इस वर्ष 18 सितंबर की शाम यह पर्व मनाया जाएगा। प्रकृति पूजा का पर्व चौरचन में मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया जाता है। फल, फूल, कंद मूल, दही, मिष्ठान और विभिन्न तरह के मीठे पकवान मिट्टी के बर्तनों में एवं केला के पत्तों पर चढ़ाया जाता है। इसलिए चौरचन पर्व से पहले ही हाट बाजारों में मिट्टी के बर्तनों की दूकानें सजने लगती है। लोग आवश्यकतानुसार बर्तनों की खरीदारी करने में जुट गए हैं। मिट्टी के बर्तनों में मटकुरी और छाछी की खरीददारी सर्वाधिक की जाती है। मिथिलांचल का यह एक ऐसा त्यौहार है, जिसमें चांद की पूजा धूमधाम से की जाती है। मिथिला की संस्कृति में सदियों से प्रकृति संरक्षण और उसके मान सम्मान को बढ़ावा देने की परंपरा रही है। यहां के अधिकांश पर्व त्यौहार मुख्य तौर पर प्रकृति से जुड़े होते हैं। चाहे वह छठ में सूर्य की उपासना हो या चौरचन में चांद की पूजा का विधान। मिथिला के लोगों का जीवन प्राकृतिक संसाधनों से भरा पुरा है। चौरचन के दिन घर की महिलाएं दिन भर निर्जला उपवास रखती है। सूर्यास्त होने पर आंगन में पहले अरिपन बनाया जाता है। उस पर पूजा की सारी सामग्री रखने के बाद श्रद्धापूर्वक भगवान गणेश जी और चंद्रमा की पूजा की जाती है। पूजा समाप्ति के बाद परिवार के बड़े बुजुर्ग पुरुष सदस्य वहीं बैठ कर सर्वप्रथम प्रसाद ग्रहण करते हैं। उसके बाद परिवार के अन्य सदस्य प्रसाद ग्रहण करते हैं।
रविवार, 17 सितंबर 2023
मधुबनी : मिथिला के प्रकृति पर्व चौरचन के लिए सजने लगा है बाजार
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