कनाडा में गैंगवार में खालिस्तानी निज्जर ढेर हो गया तो ट्रूडो ने सियासी फायदे के लिए भारत पर निशाना साधा. लेकिन हालात साफ बता रहे हैं कि इस खेल के पीछे असली खिलाड़ी चीन है जो जी 20 की कामयाबी से बौखला गया और भारत में अस्थिरता चाहता है. पाकिस्तान भी इस साजिश में शामिल है. ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है जिनपिंग के साथ जी-20 बाली में ट्रूडो की दिखी थी तल्खी, आज चीन के इशारे पर क्यों खेल रहे कनाडाई? क्या चीनी इशारों पर चल रहे कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो? क्या चीन के पास है ट्रूडो का रिमोट? क्या कनाडा को मिल रहा है चीन और पाकिस्तान का समर्थन? मतलब साफ है ट्रूडो के पीछे चीन-पाकिस्तान है आतंक के 3 यार! ट्रूडो तो सिर्फ मोहरा है, असली खेल चीन का है। क्या जस्टिस ट्रूडो चीन के लिए बैटिंग कर रहे हैं? क्या सियासी फायदे के नाम पर ड्रैगन की चाल में फंसे ट्रूडो? क्या पाकिस्तान इस विवाद की आग में घी डालने का काम कर रहा है? देखा जाएं तो चीन से जस्टिन ट्रूडो का करीबी रिश्ता है। जस्टिस ट्रूडो की जीत दिलाने में चीन ने मदद की थी। 2019 के चुनाव में चीन ने न सिर्फ 21 उम्मीदवारों का समर्थन किया था, बल्कि एक मामले में ट्रूडो को ढाई लाख डॉलर भी दिए थेदरअसल, निज्जर की 18 जून 2023 को कनाडा में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उसे कनाडा में ब्रिटिश कोलंबिया के सरी स्थित गुरुनानक सिख गुरुद्वारा के पास दो अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मार दी। निज्जर खालिस्तान टाइगर फोर्स का प्रमुख था और भारत में एक घोषित आतंकवादी था। इसी सोमवार यानी 18 सितंबर को निज्जर की हत्या को लेकर कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने वहां की संसद में भारत पर आरोप लगा दिए। ट्रूडो ने कहा कि कनाडाई सुरक्षा एजेंसियों के पास यह मानने के कारण है कि भारत सरकार के एजेंटों ने ही निज्जर की हत्या की। कनाडाई एजेंसियां निज्जर की हत्या में भारत की साजिश की संभावनाओं की जांच कर रही हैं। ट्रूडो ने कहा कि कनाडा की धरती पर कनाडाई नागरिक की हत्या में किसी भी प्रकार की संलिप्तता अस्वीकार्य है। फिरहाल, भारत के खिलाफ आरोप लगाकर जस्टिन ट्रूडो दुनिया के कई नेताओं सहित अपने देश के लोगों के भी निशाने पर आ गए हैं।
कनाडा को होगा हर साल 3 लाख करोड़ का नुकसान!
भारत और कनाडा के बीच कूटनीतिक विवाद बढ़ चुका है. ऐसे में दोनों देशों के व्यापार को नुकसान उठाना पड़ रहा है. खासकर इसका सबसे ज्यादा असर कनाडा को होने वाला है, क्योंकि वहां के कई सेक्टर और कारोबार में भारतीयों का बड़ा योगदान है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय हर साल कनाडा की अर्थव्यवस्था में 3 लाख करोड़ रुपये का योगदान देते हैं. ऐसे में कनाडा की इकोनॉमी को बड़ा झटका लग सकता है. यहां 20 लाख भारतीयों का इकोनॉमी के हर सेक्टर में दबदबा है. सिर्फ भारत से कनाडा पढ़ने के लिए जाने वाले 2 लाख छात्रों की फीस से 75 हजार करोड़ रुपये का योगदान मिलता है. भारत के रहने वाले लोग कनाडा के प्रॉपर्टी, आईटी और रिसर्च, ट्रैवेल और स्मॉल बिजनेस में सेक्टर में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं. कनाडा में प्रॉपर्टी के मामले में सबसे ज्यादा भारतीय निवेश करते हैं. दूसरे नंबर पर चीन है. भारत के मूल निवासी यहां हर साल वैंकूवर, ग्रेटर टोरंटो, ब्रैम्पटन, मिसिसागा और ब्रिटीश कोलंबिया, ओंटारिया में 50 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश है. सीआईआई की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय कंपनियां कनाडा में साल 2023 तक 41 हजार करोड़ का निवेश कर चुकी हैं और 17 हजार नौकरी दे चुकी हैं. ट्रैवेल के मामले में यहां हर साल बड़ी संख्या में भारतीय जाते हैं. साल 2022 के दौरान यहां 1.10 लाख भारतीयों ने स्वेदेश की यात्रा की. इसके अलावा, स्माल बिजनेस जैसे ग्रॉसरी और रेस्तरां में 70 हजार करोड़ रुपये लगा हुआ है.कनाडा में सबसे ज्यादा भारतीय छात्र
कनाडा में सबसे ज्यादा भारतीय छात्र हैं, जो वहां पर हर साल पढ़ने के लिए जाते हैं. हालांकि इस बार विवाद के कारण वीजा और अन्य कामों में देरी के कारण ये संख्या घट सकती है. वहीं दूसरी ओर कनाडा को फीस के रूप में मिलने वाली रकम का नुकसान उठाना पड़ सकता है. कहा जा रहा है कि दोनों देशों के बीच जारी तनाव का फायदा चीन को मिल सकता है।
खालिस्तानी आतंकवादियों की आईएसआई कर रही फंडिंग
कनाडा और भारत के रिश्तों में यह तनाव अचानक नहीं आया है। कनाडा लंबे अरसे से खालिस्तान की मांग करने वालों को पनाह देता रहा है। कनाडा दरअसल करीब चार दशकों से खालिस्तानी आतंकवादियों की पनाहगाह बना हुआ है। कनाडा हो या भारत, सालों से खालिस्तान आंदोलन को पाकिस्तान का सीधा सपोर्ट हासिल रहा है, वहीं चीन भी कनाडा के आंतरिक मामलों में लगातार दिलचस्पी ले रहा है। बीते कुछ सालों में कनाडा, आईएसआई और चीन के हाथों का खिलौना बन गया है। यदि कनाडाई पीएम को मादक पदार्थों की तस्करी, पाकिस्तान की आईएसआई और खालिस्तान समर्थक तत्वों के बीच संबंधों की जानकारी नहीं है, तो उन्हें इसकी भारी राजनीतिक और आर्थिक कीमत चुकानी तय है. “दिसंबर 2019 में, पंजाब पुलिस ने कनाडा, पंजाब और सिडनी से संचालित ड्रग तस्करों के एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह का भंडाफोड़ किया. पुलिस ने कहा था कि ग्रेटर टोरंटो क्षेत्र में गिरफ्तारियां रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (आरसीएमपी), पील क्षेत्रीय पुलिस और यूएस ड्रग एन्फोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के समन्वय में कनाडा की यॉर्क क्षेत्रीय पुलिस द्वारा की गई एक साल की लंबी जांच के बाद हुईं. पुलिस के अनुसार, कनाडाई मादक पदार्थों की तस्करी का नेटवर्क अमेरिका और भारत तक फैला हुआ है. जब्त की गई दवाओं की स्ट्रीट वैल्यू 61 मिलियन डॉलर से अधिक आंकी गई थी और इसे उनके इतिहास में सबसे बड़ी अंतर्राष्ट्रीय दवा जब्ती कहा गया था.भारत को सतर्क रहने की जरूरत है
पंजाब पुलिस, राज्य की मादक द्रव्य विरोधी विंग, केंद्र सरकार और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को सतर्कता बढ़ानी होगी क्योंकि खालिस्तान समर्थक संगठन और ड्रग कार्टेल 2024 के लोकसभा चुनाव के करीब माहौल खराब करने की कोशिश करेंगे. नई दिल्ली को पश्चिमी दुनिया की कुछ राजधानियों, विशेष रूप से अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया की कुछ राजधानियों और उन लोगों को भी सूचित करना होगा, जिनसे ट्रूडो ने भारत के बारे में अपने आरोपों के समर्थन के लिए संपर्क किया है, उन्हें समर्थन देने और राजनीतिक लाभ के लिए आतंकवादी संगठनों और मादक पदार्थों की तस्करी करने वाले गिरोहों की धमकियों के प्रति विनम्रतापूर्वक समर्पण करने के खतरों के बारे में सूचित करना होगा.
तोड़नी होगी खालिस्तानी आतंक की कमर
1947 से भारत को आजादी मिलने के बाद पंजाब और यहां की ज्यादातर सिख किसानों ने खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाने में मदद की। जबकि खालीस्तानी समर्थकों का कहना है कि भारत को आजादी मिलने के साथ ही उनकी मातृभूमि मिल जानी चाहिए थी। खालिस्तानियों का आंदोलन 1980 और 90 के दशक में अपने चरम पर पहुंच गया था। इसके लिए फैले हिंसा में हजारों लोगों की मौत हो गयी। स्वर्ण मंदिर परिसर में सैन्य ऑपरेशन और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों द्वारा हत्या दोनों इसी के हिस्से थे। दंगों में बड़ी संख्या में सिखों के मारे जाने के बाद कुछ सिख यूके, यूएसए व कनाडा चले गए। कनाडा ऐसा देश है जहां भारत के बाद सिखों की सबसे बड़ी आबादी है। खास यह है कि जो सिख यहां से गए अपनी पीड़ा व व्यथा को न सिर्फ साथ ले गए, बल्कि अपने आने वाली नस्लों में जहर बो दिए, जो आज खालिस्तानी समर्थक बने बैठे है। हालांकि भारत में खालिस्तान के रूप में अलग राष्ट्र की संभावना दूर की कौड़ी है, लेकिन उनकी आतंकी गतिविधियों से अलर्ट रहना ही होगा। 1985 में एयर इंडिया के विमान को उड़ाने की घटना को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, जिसमें 329 लोग मारे गए थे।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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