आठ दिन हरी सब्ज़ियाँ त्यागेंगे
पर्युषण महापर्व के दौरान जैन धर्मावलम्बि हरी सब्जियों का उपयोग नहीं करते है। इसका मुख्य कारण यह है कि स्वाद आसक्ति का त्याग जैन धर्म में प्रमुख तौर पर बताया गया है उसी के अनुरूप जैन अनुयायी इसका पालन करते है। सूर्यास्त होने के बाद भोजन भी नहीं करेंगे। अधिक से अधिक सादगी - त्याग पूर्वक जीवन यापन करेगें।
क्या महत्व है पर्युषण का - श्रमण डॉ. पुष्पेन्द्र ने बताया कि
श्वेतांबर जैन समुदाय के अंतर्गत मंदिर मार्गी, स्थानकवासी व तेरापंथ तीनों ही पर्युषण में तप आराधना करते हैं। उल्लेखनीय है कि श्वेतांबर जैन समुदाय में पर्युषण पर्व का आरंभ भादौ के कृष्ण पक्ष से ही होता है जो भादौ के शुक्ल पक्ष पर संवत्सरी से पूर्ण होता है। यह इस बात का संकेत है कि कृष्ण पक्ष यानी अंधेरे को दूर करते हुए शुक्ल पक्ष यानी उजाले को प्राप्त कर लो। हमारी आत्मा में भी कषायों अर्थात क्रोध - मान - माया - लोभ का अंधेरा छाया हुआ है। इसे पर्युषण के पवित्र प्रकाश से दूर किया जा सकता है। यह पवित्र प्रकाश प्राप्त होगा तप आराधना के साथ आहार-व्यवहार अहिंसा यानी आचरण की शुद्धता से । पर्युषण में जैन धर्म के अनुयायियों में तप का सर्वाधिक महत्व रहता है। इसकी आराधना भी काफी विस्तृत होती है। जैन धर्म में ऐसी धारणा है कि तपस्श्रया निर्विकार जीवन की आधारशिला है। पूर्व में उपार्जित जो दुष्कर्म हैं, उनको तपश्रया के द्वारा समाप्त किया जा सकता है। जैन धर्म में निर्जरा कहते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से इसकी उपयोगिता विज्ञान ने साबित कर दिया है कि तप के द्वारा शारीरिक व्याधियों का निराकरण हो जाता है। लाखों व्यक्ति एक साथ उपवास व तप करते हैं तो अन्न की बचत राष्ट्रीय स्तर पर होती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें