संस्मरण : क्षेत्र विश्वविद्यालय से जुड़ा एक संस्मरण - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

गुरुवार, 21 सितंबर 2023

संस्मरण : क्षेत्र विश्वविद्यालय से जुड़ा एक संस्मरण

Sansmaran-kukukshetra-university
बात 1963-64 की होनी चाहिए।तब मैं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यलय से यू०जी० सी० की फ़ेलोशिप पर पी-एच डी० कर रहा था।हिंदी विभाग के अध्यक्ष आचार्य विनयमोहन शर्मा हुआ करते थे।उन्होंने जाने क्या सोचकर मुझे हिंदी विभाग की “अनुसन्धान परिषद” का सचिव मनोनीत किया था। परिषद का उद्घाटन आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी जी से करवाना निश्चित हुआ।आचार्यजी उस ज़माने में पंजाब विश्विद्यालय,चंडीगढ़ के हिंदी-विभागाध्यक्ष हुआ करते थे।परिषद का उद्घाटन हो जाने के बाद कुछ समय के अनंतर यह तय किया गया कि दिल्ली से अज्ञेयजी को भाषण देने के लिए बुलाया जाय। तब शायद अज्ञेय ‘दिनमान’ के सम्पादक हुआ करते थे।“अनुसन्धान परिषद” के लैटर-हेड पर उनको मैं ने भाषण देने के लिए बाकायदा आमन्त्रण-पत्र भेजा।उनका उत्तर भी तुरंत आगया। पत्र में उन्होंने आने की स्वीकृति तो दे दी मगर अपने नाम के शब्द ‘वात्स्यायन’ की गलत टाइपिंग पर नाराज़गी जताई। आचार्यजी (विनयमोहनजी) को जब इस बात का पता चला तो वे मुझपर तनिक नाराज़ हुए।खैर,कार्यक्रम हो गया।चायपान के दौरान अज्ञेयजी मेरे निकट आगये और मेरा मनोबल यह कहकर बढ़ाया: “तुम कोई अपवाद नहीं हो, मेरे नाम का अधूरा और गलत उच्चारण बड़े-बड़े विद्वान करते हैं।तुम तो अभी महज़ एक शोधछात्र हो।” उनके ये शब्द आज तक मुझे याद हैं। 


यह उस समय की बात है जब कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में आचार्य विनयमोहनजी के अतिरिक्त सर्वश्री पद्मसिंह शर्मा कमलेश,जयनाथ नलिन,छविनाथ त्रिपाठी,शशिभूषण सिंहल,हरिश्चंद्र वर्मा,जयभगवान गोयल,मनमोहन सहगल,ब्रह्मांदजी आदि कार्यरत थे।हुकुमचंद राजपाल,बैजनाथ सिंहल,राजकुमार शर्मा,सुधींद्र कुमार,जवाहरलाल हांडू,ललिता हांडू,ब्रजमोहन शर्मा,कृष्णा शर्मा,कांता सूद आदि शोधछात्र/आनर्स के विद्यार्थी हुआ करते  थे। एक दुर्लभ चित्र  साझा कर रहा हूँ:  लगभग साठ वर्ष हो चुके हैं. कह नहीं सकता कि इस समय कौन कहाँ  पर है?चित्र में बाएं से (कुर्सी पर) डाक्टर हरिश्चंद्र वर्मा,डाक्टर ब्रह्मानंद, डाक्टर छविनाथ त्रिपाठी, आचार्य विनयमोहन शर्मा (विभाग अध्यक्ष),  डाक्टर शशिभूषण  सिंघल, डाक्टर  मनमोहन सहगल, डाक्टर मनमोहन सिंह। नीचे बैठे हैं (शोधछात्र  तथा आनर्स हिंदी के विद्यार्थी): बैजनाथ सिंहल(खडे) हुकुमचंद राजपाल, लालचंद,कांता सूद,----और मैं (एकदम दाएँ कोने पर बैठे हुए) ।




डा० शिबन कृष्ण रैणा

कोई टिप्पणी नहीं: