दरभंगा : सम्पूर्ण विश्व को दिशा दिखलाने वाली भाषा है संस्कृत : कुलपति, प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 4 सितंबर 2023

दरभंगा : सम्पूर्ण विश्व को दिशा दिखलाने वाली भाषा है संस्कृत : कुलपति, प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह

  • धर्म, जाति या संप्रदाय की नहीं अपितु ज्ञान एवं विज्ञान की भाषा है संस्कृत:- प्रधानाचार्य, प्रो. मुश्ताक अहमद
  • भाषा एवं संस्कृति से ही राष्ट्र रहता है सुरक्षित:- प्रो. देवनारायण झा

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लनामिवि दरभंगा:- आज दिनांक 4 सितंबर 2023 को स्थानीय चंद्रधारी मिथिला महाविद्यालय, दरभंगा के सभागार में संस्कृत विभाग, चंद्रधारी मिथिला महाविद्यालय दरभंगा, अनौपचारिक संस्कृत शिक्षण केन्द्र तथा संस्कृत भारती बिहार प्रान्त के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित दस दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर का भव्य उद्घाटन हुआ। उद्घाटनकर्ता सह मुख्य अतिथि, मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति की आधारस्वरूप संस्कृत भाषा में लिखित दर्शन, साहित्य, वेद, पुराण आदि वे निधि हैं, जो सम्पूर्ण विश्व को दिशा दिखला सकती है। ज्ञान, विज्ञान एवं संस्कार की भाषा के रूप में अनादि काल से प्रवाहित हो रही संस्कृत रुपी गंगा में जिसने अवगाहन किया वह निश्चय ही एक संस्कारित मानव के रूप में सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करेगा। गीता दुनिया का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है, जो हमें कर्म करने के लिये प्रेरित करती है। बतौर चंद्रधारी मिथिला महाविद्यालय, दरभंगा के प्रधानाचार्य सह मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव प्रो. मुश्ताक अहमद ने अपने स्वागत भाषण में अतिथियों का स्वागत करने के साथ ही संस्कृत भाषा के वर्तमानकालिक महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह भाषा किसी धर्म, जाति या संप्रदाय की भाषा नहीं अपितु ज्ञान एवं विज्ञान की भाषा है। इसी भाषा में विश्व के सारे प्राचीन ज्ञान निहित हैं। उन्होंने सभी विषयों के छात्रों से संस्कृत सीखने का आह्वान करते हुए कहा कि यह हमारी बहुत बड़ी चूक है कि हमने संस्कृत भाषा को पढ़ना छोड़ दिया। आज आवश्यकता है कि संस्कृत को जन-जन तक पहुँचाया जाए।

           

बतौर मुख्य वक्ता कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के  पूर्व कुलपति प्रो. देवनारायण झा ने अपने उद्बोधन में कहा कि अपने संस्कृत के विविध आयामों का निदर्शन कराया। उन्होंने कहा यह वही मिथिला है जहाँ तोते भी संस्कृत में ही बात करते थे। आज के युग में भी मानव को मानवता प्रदान करने का सामर्थ्य यदि किसी भी भाषा में है तो वह संस्कृत में ही है। यही वह संस्कृति है जो केवल वृत्ति हेतु विद्याध्ययन का उपदेश नहीं करती अपितु आध्यात्मिक चेतना से युक्त करते हुए वृत्ति हेतु प्रवृत्त करती है। बतौर सारस्वत अतिथि, महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह महाविद्यालय, सरिसवपाही, मधुबनी के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकान्त झा ने संस्कृत को जीवनशक्ति के रूप में धारण करने पर बल देते हुए कहा कि जो इस भाषा का अध्ययन करेगा उसका जीवन निश्चित रूप से सुसंस्कृत होगा। बतौर विशिष्ट अतिथि, संस्कृत भारती, बिहार प्रान्त के प्रान्त संगठन मन्त्री डॉ. श्रवण कुमार ने घर-घर में संस्कृत की ज्योति जगाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा यह एक अमृत तुल्य भाषा है जिसमें सभी विषयों एवं भाषाओं को अनुप्राणित करने की शक्ति है। संस्कृत भारती संस्कृत सीखाने हेतु एक महत्वपूर्ण संस्था है जो पूरे विश्व में संस्कृत का प्रचार कर रही है। प्रधानाचार्य की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम का संचालन संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. संजीत कुमार झा, स्वागतगान छात्र अभिजीत कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन शिविर संचालक अमित कुमार झा ने किया। छात्रों से खचाखच भरे सभागार में डॉ. सुरेंद्र भारद्वाज, डॉ. विजयसेन पाण्डेय, डॉ. रागिनी रंजन, डॉ. आलोक रंजन तिवारी, डॉ. शशांक शुक्ला, डॉ. सुब्रत दास, कुलपति के निजी सचिव अशरफ जमाल व महाविद्यालय के लेखापाल सृष्टि नारायण चौधरी आदि उपस्थित थे।

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