देश में सनातन पर संग्राम जारी है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि के डेंगू-मलेरिया से सनातन की तुलना से शुरू हुई ये जंग जुबान और आंखें निकाल लेने की धमकी से होता हुआ अब 2024 में मोक्ष प्रदान करने वाला साबित होगा, तक पहुंच गई है. देखा जाएं तो ये पूरा मामला सियासी है, लेकिन बात हकीकत की जाएं तो ’’हर काल खंड में सनातन को झुठा-ढोंग साबित करने का असफल और कुत्सित प्रयास किया गया है और आज भी कुछ उसी अंदाज में झुठलाने का प्रयास हो रहा है। वर्तमान में योग गुरु बाबा रामदेव ने सनातन धर्म पर उंगली उठाने वालों को 2024 में मोक्ष प्राप्ति का आर्शीवाद दे दिया है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या सनातन धर्म को मिथ्या बताने वाला का भी हस्र रावण और कंस जैसा ही होने वाला है?सनातन धर्म को हिन्दू धर्म या वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है. इसे दुनिया के सबसे प्राचीनतम धर्म के रूप के तौर पर सभी जानते हैं. भारत की सिंधु घाटी सभ्यता में सनातन धर्म के कई चिह्न मिलते हैं. अब अगर उस उंगली उठाएं जाएं। सनातन को ढोंग कहा जाएं तो एक बड़ तबके का आक्रोशित होना स्वभाविक है। शायद यही वजह भी है कि योग गुरु बाबा रामदेव से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित पूरा संत समाज सनातन धर्म के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणी करने वालों पर हमलावर है। दरअसल, ये पूरा सियासी बवाल तमिलनाडु सरकार के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के बयान से शुरू हुआ. उदयनिधि पिछले दिनों सनातन उन्मूलन सम्मेलन शामिल होने पहुंचे थे. यहां उन्होंने कहा था, सनातन धर्म ढोंग और पाखंड है। उनके बयान पर विवाद चल ही रहा था कि ए राजा ने भी सनातन की तुलना एचआईवी जैसे वायरस से कर दी. एक तरह से इन नेताओं ने सनातनियों के ईश्वरीय सत्ता को चुनौती दी है, ठीक उसी तरह जैसे रावण ने सनातन को झुठलाने का प्रयास किया था। हिरण्यकश्यप ने भी ईश्वर की और सनातन धर्म की अवमानना करने का प्रयास किया था? कंस ने भी ईश्वरीय सत्ता को चुनौती दी थी। फिरहाल, सनातन धर्म को लेकर जो टिपपणी की गयी है, उससे हर तरफ बवाल मचा हुआ है। बीजेपी नेताओं ने इसका जमकर विरोध किया है. लेकिन बयानबीरों के शब्दभेदी बाण आम जनमानस को हिला कर रख दिया है। इसका आगामी लोकसभा चुनाव पर क्या असर होने वाला है या यह चुनावी मुद्दा बनेगा या नहीं, ये तो वक्त बतायेगा लेकिन जवाब हर कोई अपने-अपने तरीके से दे रहा है। कुल मिलाकर सनातन धर्म को लेकर बहस खत्म होने का नाम नहीं ले रही है, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सवाल खड़ा किया कि क्या रावण ने ईश्वरीय सत्ता को चुनौती नहीं दी थी?, क्या हिरण्यकश्यप ने भी ईश्वर को झुठलाने का प्रयास नहीं किया था? और इन सबका हस्र यह हुआ कि सब मिट गएं। ईश्वरीय सत्ता को चुनौती देने वाले आज क्या कर रहे हैं, उनकी स्थिति क्या है? सब कुछ मिट गया. कुछ नहीं बचा. 500 साल पहले सनातन का अपमान हुआ.
जब तुर्क और ईरानी भारत आए तो उन्होंने सिंधु घाटी से प्रवेश किया. सिंधु एक संस्कृत नाम है. उनकी भाषा में ’स’ शब्द न होने के कारण वो सिंधू का उच्चारण नहीं कर पाए, इसलिए उन्होंने सिंधु शब्द को हिंदू कहना शुरू किया. इस तरह से सिंधु का नाम हिंदू हो गया. उन्होंने यहां रहने वाले लोगों को हिंदू कहना शुरू किया और इसी तरह हिंदुओं के देश को हिंदुस्तान का नाम मिला. सनातन धर्म उस समय से है जब कोई संगठित धर्म अस्तित्व में नहीं था और क्योंकि जीवन जीने का कोई दूसरा तरीका नहीं था, इसलिए इसे किसी नाम की जरुरत नहीं थी. इसके बाद धीरे-धीरे संगठित धर्मों का निर्माण हुआ. सत्य को ही सनातन का नाम दिया गया. सनातन शब्द सत् और तत् से मिलकर बना हुआ है. जिनका अर्थ यह और वह होता है. सनातन वो है, जिसका आदि है न अंत है... सनातन धर्म को मानने वालों को ही हिंदू कहा जाता है. 19वीं सदी में और इसके बाद से सनातन धर्म का इस्तेमाल हिंदू धर्म को बाकी धर्मों से अलग एक धर्म के रूप में दर्शाने के लिए किया गया. सनातन धर्म के लिए यह सही समय है. यही एकमात्र संस्कृति है जिसने मानवीय प्रणाली पर इतनी गहाराई से गौर किया है कि अगर आप इसे दुनिया के सामने ठीक से प्रस्तुत करें, तो ये दुनिया का भविष्य होगी. सिर्फ यही चीज है जो एक विकसित बुद्धि को आकर्षित करेगी, क्योंकि ये कोई विश्वास प्रणाली नहीं है. यह खुशहाली का,जीने का और खुद को आजाद करने का एक विज्ञान और टेक्नालॉजी है. तो सनातन धर्म कोई अतीत की चीज नहीं है. यह हमारी परंपरा नहीं है. यह हमारा भविष्य है!
‘सत्यं धर्म सनातनं’ है। सनातन धर्म का मूल सत्य है। नसा कर्मणा वाचा के सिद्धांत के अनुसार मनुष्य के मन, वाणी तथा शरीर द्वारा एक जैसे कर्म होने चाहिए। ऐसा हमारे धर्म शास्त्र कहते हैं। मन में कुछ हो, वाणी कुछ कहे और कर्म सर्वथा इनसे भिन्न हों, इसे ही मिथ्या आचरण कहा गया है। ‘‘कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्। इन्द्रियार्थान्विमूढ़ात्मा मिथ्याचारः स उच्यते।। श्री गीता जी में लिखा है कि मूढ़ बुद्धि मनुष्य समस्त इंद्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोक कर उन इंद्रियों के विषयों का चिंतन करता है, वह मिथ्याचारी अर्थात दम्भी कहा जाता है। कैकेयी ने दशरथ से भगवान श्री राम के वनवास जाने का वर मांगा। वचन से बंध जाने के कारण, भगवान श्री राम ने अपने पिता के वचन धर्म की रक्षा हेतु वन गमन स्वीकार किया। दशानन ने इस शिवलिंग की पूजा कर प्राप्त की थी सोने की लंका। ‘‘रघुकुल रीति सदा चली आई। प्राण जाए पर वचन न जाई।’ हमारे धर्म शास्त्रों में वचन धर्म को अत्याधिक महत्व दिया गया है। इसी में धर्म का मर्म एवं शास्त्र मर्यादा के पालन का रहस्य छुपा हुआ है जब स्वयंवर में अर्जुन ने द्रौपदी को प्राप्त किया और वे सब भाइयों सहित जब अपनी माता कुंती के समक्ष पहुंचे तब भूलवश कुंती के मुख से यह निकल गया कि तुम उपहार स्वरूप जो कुछ भी लाए हो उसे आपस में बांट लो। अपनी माता के वचनों को असत्य न प्रमाणित करने के उद्देश्य से पांचों पांडवों ने द्रौपदी को अपनाया।
वास्तव में यह पूर्व जन्म में भगवान शिव द्वारा द्रौपदी को दिए वर का परिणाम था कि उसने भगवान शिव से सर्वगुण सम्पन्न पति के लिए पांच बार प्रार्थना की। तब भगवान शिव के वरदान के प्रभाव से उसे पांच पति प्राप्त हुए। पांडव सदैव कर्तव्य धर्म का पालन करते थे। उन्होंने अपनी माता के वचन धर्म की रक्षा की। मनुष्य का यह स्वभाव रहा है कि वह परिस्थितियों को अपने प्रतिकूल देख कर अपने ही वचनों से मुंह फेर लेता है लेकिन जो धर्म परायण मनुष्य होते हैं वे मन, वाणी और शरीर द्वारा एक जैसे होते हैं। सत्यवादी राजा हरीश चंद्र को केवल एक स्वप्न आया कि उन्होंने अपना राजपाठ महर्षि दुर्वासा को दान दे दिया है। प्रातः काल होते ही सत्य में ही उन्होंने अपना सम्पूर्ण राज्य महर्षि दुर्वासा को दे दिया। अपने वचनों से मुंह मोड़ लेने पर न केवल मनुष्य की गरिमा एवं प्रतिष्ठा कम होती है बल्कि उसकी विश्वसनीयता पर भी प्रश्र चिन्ह लग जाता है। उपरोक्त प्रसंगों पर उतर पाना आधुनिक समय में किसी के लिए भी संभव नहीं है परंतु मनुष्य को इतना प्रयास अवश्य करना चाहिए कि वह अपने वचनों की मर्यादा का मान रखे। भीष्म पितामह ने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत रखा और वह अपने इस व्रत पर अटल रहे। वचन धर्म पालन और उसकी रक्षा के अनेकानेक वृतांत हमारे धर्म ग्रंथों में हैं। शरणागत की रक्षा हेतु वचन इत्यादि दृष्टांत प्राप्त होते हैं। भगवान श्री कृष्ण द्वारा महाभारत के युद्ध में शस्त्र न उठाने का वचन, समाज हित के प्रति संवेदनशीलता तथा जगत हितार्थ कर्तव्यनिष्ठा को प्रतिपादित करते हैं। ऐसा व्रत, जिसमें समस्त प्राणी मात्र का कल्याण निहित हो, ऐसा वचन जिसमें किसी का अहित न हो, निश्चित रूप से शाश्वत धर्म बन जाता है। ‘सत्यं धर्म सनातनं’ सनातन धर्म का मूल ही सत्य है। हम जो कुछ भी मन के द्वारा जन कल्याण के विषय में सोचते हैं वाणी के द्वारा उसकी अभिव्यक्ति करते हैं और कर्म के द्वारा क्रियान्वित करते हैं। इसके द्वारा शास्त्र का सिद्धांत ‘मनसा कर्मणा वाचा’ अवश्य ही चरितार्थ होता है। अगर हम सुशोभित वाणी के द्वारा दिखावे के तौर पर समाज में स्वार्थ भाव से कर्म करते हैं तो वे केवल नश्वर फल प्रदान करते हैं और जीव ‘मनसा कर्मणा वाचा’ के शाश्वत फल से वंचित रह जाता है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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