- अविभक्त महाज्ञान ही ही शैवागम है : दीपा दुरैस्वामी
- श्री श्री रवि शंकर जी महराज ऑनलाइन वीडियों कांफ्रेसिंग के जरिए शैवागम के बारे में विस्तार से चर्चा की
शैव आगम (पाशुपत, वीरशैव सिद्धांत, त्रिक आदि) द्वैत, शक्तिविशिष्टद्वैत तथा अद्वैत की दृष्टि से भी इनमें तीन भेद माने जाते हैं। आगमिक पूजा विशुद्ध तथा पवित्र भारतीय है। 28 शैवागम ’सिद्धांत के रूप में विख्यात हैं। ’भैरव आगम’ संख्या में चौंसठ सभी मूलतः शैवागम हैं। इनमें द्वैत भाव से लेकर परम अद्वैत भाव तक की चर्चा है। किरणागम, में लिखा है कि, विश्वसृष्टि के अनंतर परमेश्वर ने सबसे पहले महाज्ञान का संचार करने के लिये दस शैवो का प्रकट करके उनमें से प्रत्येक को उनके अविभक्त महाज्ञान का एक एक अंश प्रदान किया। इस अविभक्त महाज्ञान को ही शैवागम कहा जाता है। वेद जैसे वास्तव में एक है और अखंड महाज्ञान स्वरूप है, परंतु विभक्त होकर तीन अथवा चार रूपों में प्रकट हुआ है, उसी प्रकार मूल शिवागम भी वस्तुतः एक होने पर भी विभक्त होकर 28 आगमों के रूप में प्रसिद्व हुआ है। इन समस्त आगमधाराओं में प्रत्येक की परंपरा है। शैवागम शिव -पार्वती संवाद 10 (शिवगाम) $ रूद्र -स्कन्द संवाद 18 (रुद्रगाम ) 28 शैवागम प्रसिद्द है, उपागम भैरव - बृहस्पति संवाद 64 भैरवगाम है। 28 शैवागम इस प्रकार शिव (ब्रह्म) में जगत् का कारणत्व दिखलाने से उसकी सर्वज्ञता सूचित हुयी, अब उसी को दृढ़ करते हुये कहते हैं- अनेक विद्यास्थानों से उपकृत, दीपक के समान सब अर्थों के प्रकाशन में समर्थ और सर्वज्ञकल्प महान् कमिकादि आगम शास्त्र का योनि अर्थात् कारण (शिव) है। कमिकादि आगम रूप सर्वज्ञगुणसंपन्न शास्त्र कि उत्पत्ति सर्वज्ञ को छोड़ कर अन्य से संभव ही नहीं है। यह तो लोकप्रसिद्ध है जब कोई शास्त्र किसी व्यक्ति विशेष से रचा जाता है तो वह व्यक्ति उस शास्त्र से ज्यादा ज्ञानवान् होता है क्योंकि शास्त्र तो उस व्यक्ति के कुछ भाग को ही निरूपित कर रहा है।
शब्द शास्त्र के अनुसार तन्त्र शब्द ‘तन’ धातु से बना है जिसका अर्थ है ’विस्तार’। शैव सिद्धान्त के ‘कायिक आगम’ में इसका अर्थ किया गया है, ‘वह शास्त्र जिसके द्वारा ज्ञान का विस्तार किया जाता है- -तन्यते विस्तार्यते ज्ञानम् अनेन्, इति तन्त्रम्।’’ तन्त्र की निरुक्ति ‘तन्’ (विस्तार करना) और ‘त्रै’ (रक्षा करना), इन दोनों धातुओं के योग से सिद्ध होती है। इसका तात्पर्य यह है कि तन्त्र अपने समग्र अर्थ में ज्ञान का विस्तार करने के साथ उस पर आचरण करने वालों का त्राण भी करता है। अथवा, पूर्वोक्त कामिक आदि आगम शास्त्र शिव के यथार्थ स्वरूप के ज्ञान मे योनि- कारण अर्थात् प्रमाण हैं, इसलिए शिव केवल आगम से ही जाना जाता है। शास्त्र प्रमाण से ही यह समझा जाता है कि शिव जगत् आदि का कारण है, यह अभिप्राय है। तन्त्र-शास्त्र का एक ही नाम ’आगम शास्त्र’ भी है। इसके विषय में कहा गया है- आगमात् शिववक्त्रात् गतं च गिरिजा मुखम्। सम्मतं वासुदेवेन आगमः इति कथ्यते।। शैवागम बोध ग्रंथो के अनुसार शिव जी पंचवक्त्र हैं, अर्थात इन के पाँच मस्तक हैं, ईशान, तत्पुरुष, सद्योजात, वामदेव व अघोर। शिव जी के प्रत्येक मस्तक से शक्ति, नंदी, वीरभद्र, स्कन्द, और दुर्वास जी को पांच शैव सिद्धांत का प्रतिपादन शैवागम द्वारा किये है। पाशुपत, वीरशैव, त्रिक दर्शन, सिद्धांत शैव और कापालिक ये पांच प्रमुख शैव दर्शन है। भगवान शिव मुख्यतः तीन अवतारों में अपने आप को प्रकट करते हैं शिव शंकर, रुद्र तथा भैरव, इन्हीं के अनुसार वे 3 श्रेणिओ के आगमों को प्रस्तुत करते हैं। पहला शैवागम दुसरा रुद्रागम व तीसरा भैरवागम। प्रत्येक आगम की श्रेणी स्वरूप तथा गुण के अनुसार हैं। इस अवसर पर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य के वेंकटरमण घनपाठी, कांची मठ के प्रबंधक वीएस सुब्रमण्यम मणि, अल्केश पांडेय आदि मौजूद थे।
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