इस साल 19 सितंबर को गणेश चतुर्थी है. पुराणों के मुताबिक गणेश जी का जन्म भादौ की चतुर्थी को दिन के दूसरे प्रहर में हुआ था। उस दिन स्वाति नक्षत्र और अभिजीत मुहूर्त था। ऐसा ही संयोग 19 सितंबर को है। इस दिन ब्रह्म योग और शुक्ल योग जैसे शुभ योग बन रहे हैं. अद्भुत संयोग लगभग 300 साल बाद बना है. कहते है इन्हीं तिथि, वार और नक्षत्र के संयोग में मध्याह्न यानी दोपहर में जब सूर्य ठीक सिर के ऊपर होता है, तब देवी पार्वती ने गणपति की मूर्ति बनाई और उसमें शिवजी ने प्राण डाले थे। खास यह है कि इस बार गणेश स्थापना पर मंगलवार का संयोग है। इस योग में गणपति के विघ्नेश्वर रूप की पूजा करने से इच्छित फल मिलता है। गणेश स्थापना पर शश, गजकेसरी, अमला और पराक्रम नाम के राजयोग मिलकर चतुर्महायोग बना रहे हैं। इस दिन स्थापना के साथ ही पूजा के लिए दिनभर में सिर्फ दो मुहूर्त रहेंगे। वैसे तो दोपहर में ही गणेश जी की स्थापना और पूजा करनी चाहिए। समय नहीं मिल पाए तो किसी भी शुभ लग्न या चौघड़िया मुहूर्त में भी गणपति स्थापना की जा सकती है‘घर में जब हो गणपति का वास तो हर मुश्किल हो जाती है आसान। अगर दिन हो गणेश चतुर्थी का, उत्सव हो गणपति की आराधना का तो बाप्पा की कृपा पाने का इससे अच्छा मौका भला और क्या हो सकता है।‘ ऐसा शास्त्रों में भी कहा गया है। गणेश चतुर्थी बुद्धि और ज्ञान के देवता भगवान श्रीगणेश की पूजा का सबसे बड़ा दिन है। अगर इस दिन की पूजा सही समय और मुहूर्त पर विधि विधान से की जाए तो हर मनोकामना की पूर्ति होती है। धन संपदा, कामयाबी और खुशियां, छप्पर फाड़ कर बरसने लगती हैं। विद्या, बुद्धि की तथा ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है, विघ्न-बाधाओं का भी समूल नाश होता है। ऐसा माना जाता है कि गणपति जी का जन्म मध्यकाल में हुआ था इसलिए उनकी स्थापना इसी काल में होनी चाहिए। पौराणिक मान्यताओं में किसी भी देवी-देवता में सबसे पहले गणपति की पूजा होती है। क्योंकि यह वरदान और ऐसी व्यवस्था उनके पिता भगवान शंकर ने ही की, जिसके बाद से वह सबसे पहले पूजे जाते हैं। श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं जो आपके जीवन के दुखों को हर लेते हैं। भगवान गणेश का स्वरूप मनोहर एवं मंगलदायक है। वे अपने उपासकों पर जल्दी ही प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल की चतुर्थी से देशभर में गणेश चतुर्थी पर्व का शुभारंभ हो जाता है. यह पर्व मुख्य रूप से 10 दिनों तक चलता है. इस दौरान भक्त बप्पा को अपने घर लाते हैं और अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा को विदा कर देते हैं. माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए, इससे श्राप लगता है. वहीं गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की मूर्ति स्थापना शुभ मुहूर्त में ही करनी चाहिए. इस वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 18 सितंबर को दोपहर 02ः09 मिनट पर होगी. वहीं 19 सितंबर को दोपहर 03ः13 मिनट पर चतुर्थी तिथि समाप्त हो जाएगी. ऐसे में उदय तिथि के आधार पर गणेश चतुर्थी और 10 दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव की शुरुआत 19 सितंबर को रहेगी. मान्यताओं के अनुसार गणेश चतुर्थी तिथि पर शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित करने पर जीवन में सुख-समृद्धि सहित सभी तरह के शुभ फलों की प्राप्ति होती है. 19 सितंबर को प्रातः काल सूर्योदय से लेकर के दोपहर 12ः53 बजे तक कन्या, तुला, वृश्चिक लग्न में भगवान गणेश की स्थापना करने का योग है. इस बीच मध्याह्न 11ः36 से 12ः24 बजे तक अभिजीत मुहूर्त में मूर्ति की स्थापना बहुत ही शुभ है. इसके बाद दोपहर 13ः45 बजे से 15ः00 बजे तक भी शुभ मुहूर्त रहेगा. शास्त्रों के अनुसार गणेश चतुर्थी पर्व का समापन अनंत चतुर्दशी के दिन किया जाता है. साथ ही इसी दिन बप्पा को श्रद्धापूर्वक विदा किया जाता है. पंचांग के अनुसार गणेश विसर्जन गुरुवार 28 सितंबर को किया जाएगा. गण का अर्थ है वर्ग, समूह, समुदाय और ईश का अर्थ है स्वामी। अतः गणेश शब्द का अर्थ है, ‘जो समस्त जीव-जगत के ‘ईश‘ अर्थात मालिक हैं वही गणेश हैं। ‘गणानां जीवजातां यः ईशः स्वामी स गणेशः।‘ आठ वसु, ग्यारह रुद्र और बारह आदित्य गणदेवता कहे गए हैं। ज्योतिष शास्त्र में अश्विनी आदि जन्म नक्षत्रों के अनुसार देव मानव एवं राक्षसगण हैं। इन सबके ईश श्रीगणेश हैं यानी ज्ञानार्थवाचको गश्चणश्च निर्वाणवाचकः। तयोरिषं परब्रह्मं गणेशम् प्राणाम्यहम्।। अर्थात ‘ग‘ ‘ज्ञानार्थवाचक‘ और ‘ण‘ ‘निर्वाणवाचक‘ है। ज्ञान-निर्वाणवाचक गण के ईश परब्रह्म हैं, मैं उनको प्रणाम करता हूं। श्री गणेश, ज्ञान, बुद्धि, विवेक के प्रतीक है।
उमा-महेश्वर के पुत्र है श्रीगणेश
एक रूप में भगवान श्रीगणेश उमा-महेश्वर के पुत्र हैं। वे अग्रपूज्य, गणों के ईश, स्वस्तिक रूप तथा प्रणव स्वरूप हैं। ऐसी मान्यता है कि हरित वर्ण का दूर्वा जिसमें अमृत तत्व का वास होता है, उसको भगवान श्री गणेश पर चढाने से समस्त विघ्नों का नाश हो जाता है तथा अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। गणेश ज्ञान-विज्ञान के देवता भी माने जाते हैं। विनायक के बारह नामों से की गई स्तुति सभी संकटों का निवारण करने वाली है। गणेश चतुर्थी के दिन विनायक की प्रतिमा की परिक्रमा बहुत ही फलदायक मानी जाती है जो आपके जीवन में शुभता को लाती है। वैसे भी मानव जीवन का परम लक्ष्य सद्गुणों में वृद्धि के साथ देवत्व की प्राप्ति है। परन्तु काम, क्रोध, मद और लोभ जैसे आसुरी भाव उसमें सबसे बड़ा विघ्न पैदा करते हैं। ऐसे में भगवान श्रीगणेश की साधना, उपासना करके सभी कार्यो में निर्विघ्नता पाई जा सकती है। समस्त मांगलिक कार्यो के आरंभ में श्रीगणेश का पूजन, स्तवन, स्मरण, नमन आदि का विधान भी है। विद्यारंभ या व्यावसायिक बही-खातों के प्रथम पृष्ठ पर ‘श्रीगणेशाय नमः‘ मांगलिक वाक्य अवश्य लिखा जाता है। श्रीरामचरित मानस में तो संत तुलसीदास सर्वांग्र-पूज्य, आदिपूज्य, पार्वती तनय श्रीगणेश की गरिमा में कहते हैं, ‘महिमा जासु जान गनराऊ, प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ‘।समाज के प्रेरणास्रोत है श्रीगणेश
हाथी सी काया यानी बुद्धि, धैर्य एवं गांभीर्य की प्रधानता। बड़े कान इस बात का द्योतक हैं कि सबकी सुनने के बाद धीरता एवं गंभीरतापूर्वक विचार करने वाला व्यक्ति ही अपने कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। श्रीगणेश जी का विशाल व्यक्तित्व यह प्रकट करता है कि जिस महापुरुष में सुबुद्धि जितनी विशाल होती है, उसकी कुबुद्धि उतनी ही छोटी होती है। श्रीगणेश का बौना स्वरुप इस बात का द्योतक हैं कि व्यक्ति सरलता, नम्रता आदि सद्गुणों के साथ स्वयं को छोटा मानता हुआ अपने प्रत्येक कार्य को प्रभु को अर्पण करता हुआ चले ताकि उसमें अहंकार के भाव उत्पंनद न हो। श्री गणपति लंबोदर हैं। उनका मोटा उदर इस बात का द्योतक है कि व्यक्ति को सबका भला-बुरा सुनकर उसे अनावश्यक प्रकाशित नहीं करना चाहिए। महर्षि व्यास के आग्रह पर श्रीगणेश द्वारा महाभारत जैसे महाकाव्य का निरंतर लेखन इस बात की प्रेरणा देता है कि कार्य चाहे कितना ही दुष्कर हो, निरंतर, अनवरत, एकाग्रचित्ता से, दुढ़ इच्छाशक्ति से, मन लगाकर किया जाय तो दुष्कर कार्य भी साध्य हो जाते हैं। गणेश जी के चार आयुध पाश, अंकुश, वरदहस्त और अभयहस्त हैं। श्रीगणेश पाश द्वारा भक्तों के पाप समूहों तथा संपूर्ण प्रारब्ध का आकर्षण करके अंकुश से उसका नाश करते हैं व भक्तों की कामनापूर्ति करते हैं।बुद्धि-विवेक के अधिष्ठाता है श्रीगणेश
जीवन में इहलोक-परलोक को सुधारने के लिए ज्ञान-विवेक की आवश्यकता होती हैं। इसके अधिष्ठाता देवता श्रीगणेश हैं। गीता में दो बुद्धियां बताई गयी है। जो बुद्धि संसार के द्वैतभाव को नष्टकर अद्वैतभाव स्वरुप सच्चिदानंद परब्रह्म में अवस्थान करा दें, वह सुबुद्धि और परमात्मा को विषय न करती हुई अद्वैतमय परमत्व में संसार के प्रचंड का विस्तार करें वह कुबुद्धि होती है। सुबुद्धि में सांसारिक प्रपंच क्षीण होकर अद्वैतभाव में लीन होने के भाव को सूचित करने के लिए श्रीगणेश गजवंदन हैं। चित्त की पांच वृत्तियां मानी गई है- क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, एकाग्र और निरुद्ध। जहां-जहां चित्त जाता है उसमें वह तदाकार हो जाया करता है। जो अपनी चित्त वित्तियों का निरोध करते हुए ध्योय के साथ तदाकार हो जाता है उसे अखंड और अनुपम आनंद का अनुभव होने लगता हैं। चित्त वित्तियों का निरोध मूलाधार चक्र के विकसित होने से होता है और शरीर के मूलाधार चक्र पर श्रीगणेश का स्थान माना जाता है। ‘गणपत्यथर्वशीर्ष‘ में श्रीगणेश का श्रेष्ठ मंत्र निरुपित किया गया है। ‘ऊं गं गणपतये नमः‘ इस मंत्र में गकार पूर्वरुप, मध्यम आकार और अन्त्यरुप अनुस्वार हैं। बिन्दु उत्तररुप है। इस मंत्र में ‘गं‘ बीज है और ‘ओंकार‘ शक्ति है। इसके संबंध में एकाक्षर- ‘गणपतिकवच‘ में कहा गया है- ‘ग बींज शक्तिरोंकारः सर्वकामार्थसिद्धये।‘ अतः सर्व कार्यो की निर्विघ्न सिद्धि के लिए श्रीगणेश की अग्रपूज्यता एवं आराधना का माहात्मय है। गणेशजी का वाहन चूहा है। ऋद्धि व सिद्धि गणेशजी की दो पत्नियां हैं। इनका सर्वप्रिय भोग लड्डू हैं। प्राचीन काल में बालकों का विद्या-अध्ययन आज के दिन से ही प्रारम्भ होता था। आज बालक छोटे-छोटे डण्डों को बजाकर खेलते हैं। यही कारण है कि लोकभाषा में इसे डण्डा चौथ भी कहा जाता है।
माता-पिता का परिक्रमा कर गणेश हुए अग्रणी
कहा जाता है कि एक बार सभी देवों में यह प्रश्न उठा कि पृथ्वी पर सर्वप्रथम किस देव की पूजा होनी चाहिए। सभी देव अपने को महान बताने लगे। अंत में इस समस्या को सुलझाने के लिए देवर्षि नारद ने शिव को निणार्यक बनाने की सलाह दी। शिव ने सोच-विचारकर एक प्रतियोगिता आयोजित की- जो अपने वाहन पर सवार हो पृथ्वी की परिक्रमा करके प्रथम लौटेंगे, वे ही पृथ्वी पर प्रथम पूजा के अधिकारी होंगे। सभी देव अपने वाहनों पर सवार हो चल पड़े। गणेश जी ने अपने पिता शिव और माता पार्वती की सात बार परिक्रमा की और शांत भाव से उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े रहे। कार्तिकेय अपने मयूर वाहन पर आरूढ़ हो पृथ्वी का चक्कर लगाकर लौटे और गर्व से बोले, मैं इस स्पर्धा में विजयी हुआ, इसलिए पृथ्वी पर प्रथम पूजा पाने का अधिकारी मैं हूं। शिव अपने चरणों के पास भक्ति-भाव से खड़े विनायक की ओर प्रसन्न मुद्रा में देख बोले, पुत्र गणेश तुमसे भी पहले ब्रह्मांड की परिक्रमा कर चुका है, वही प्रथम पूजा का अधिकारी होगा। कार्तिकेय खिन्न होकर बोले, पिताजी, यह कैसे संभव है? गणेश अपने मूषक वाहन पर बैठकर कई वर्षो में ब्रह्मांड की परिक्रमा कर सकते हैं। आप कहीं तो परिहास नहीं कर रहे हैं? नहीं बेटे! गणेश अपने माता-पिता की परिक्रमा करके यह प्रमाणित कर चुका है कि माता-पिता ब्रह्मांड से बढ़कर कुछ और हैं। गणेश ने जगत् को इस बात का ज्ञान कराया है। इतने में बाकी सब देव आ पहुंचे और सबने एक स्वर में स्वीकार कर लिया कि गणेश जी ही पृथ्वी पर प्रथम पूजन के अधिकारी हैं।
इस मंत्र से मिलता है कर्जमुक्ति
‘ऊं गं (गम) गणपतये नमः सिद्धि विनायक नमो नमः, अष्ट विनायक नमो नमः गणपति बप्पा मोरया, ऊं गणेशाय नमः एवं श्री गणेशाय नमः।। इन मंत्रों का 11 या 108 बार जाप करने मात्र से मिल जाती है कर्ज से मुक्ति। वैसे भी ये ऐसे मंत्र है जिनका उच्चारण सदियों से होता आया है। किसी भी कार्य के शुभारंभ से पहले हम इन मंत्रों का उपयोग करते हैं। ऊंकारमाघं प्रवदंति संतो वाचः श्रुतीनामपि यं गृणन्ति। गजाननं देवगणानताङ्फघ्निं भजेअहम धर्मेन्दुकृतावंत समः।। अर्थात संत-महात्मा जिन्हें आदि ऊंकार बताते हैं, श्रुतियों की वाणियां भी जिनका स्तवन करती है, समस्त देव समुदाय जिनके चरणारविंदों में प्रणत होता है तथा अर्धचंद्र जिनके भालदेश का आभूषण है, उस भगवान गजानन का मैं भजन करता हूं।
मोदक और भगवान गणेश
भगवान गणेश की मूर्तियों एवं चित्रों में उनके साथ उनका वाहन और उनका प्रिय भोजन मोदक जरूर होता है। शास्त्रों के मुताबिक भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए सबसे आसान तरीका है मोदक का भोग। गणेश जी का मोदक प्रिय होना भी उनकी बुद्धिमानी का परिचय है। भगवान गणेश को मोदक इसलिए भी पसंद हो सकता है क्योंकि मोदक प्रसन्नता प्रदान करने वाला मिष्ठान है। मोदक के शब्दों पर गौर करें तो मोदक का अर्थ होता है हर्ष यानी खुशी। भगवान गणेश को शास्त्रों में मंगलकारी एवं सदैव प्रसन्न रहने वाला देवता कहा गया है। अर्थात् वह कभी किसी चिंता में नहीं पड़ते। गणपत्यथर्वशीर्ष में लिखा है, यो मोदकसहस्त्रेण यजति स वांछितफलमवाप्नोति। इसका अर्थ है जो व्यक्ति गणेश जी को मोदक अर्पित करके प्रसन्न करता है उसे गणपति मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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