वाराणसी : रखा निर्जला व्रत, किया सोलह श्रृंगार, मांगा ‘अखंड सौभाग्य‘ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 18 सितंबर 2023

वाराणसी : रखा निर्जला व्रत, किया सोलह श्रृंगार, मांगा ‘अखंड सौभाग्य‘

  • सुयोग्य, सुन्दर, मनोवांछित, सुशील और स्वस्थ्य जीवन साथी की चाहत में कुंवारी युवतियों ने भी रखा व्रत

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वाराणसी (सुरेश गांधी) शहर हो या देहात हर जगह सजना की लंबी उम्र के लिए पत्नियों ने सोमवार को निर्जला व्रत रखकर मां गौरी व शिव से कामना की। पूरे दिन भूखे-प्यासे रहकर कुछ ने घर में तो कुछ मंदिरों में पहुंचकर मां पार्वती व बाबा भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजन-अर्चन कर कथा सुनी। बदलें में सुहाग, बच्चों समेत पूरे परिवार के सुख-समृद्धि, संपन्नता और पुत्र रत्न प्राप्ति का मां गौरी व शिव से वरदान मांगा। सुयोग्य, सुन्दर, मनोवांछित, सुशील और स्वस्थ्य जीवन साथी की चाहत में कुंवारी युवतियां ने भी व्रत रखकर मां-गौरी से आर्शीवाद मांगा। मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, उन्हें मनचाहा पति मिलता है। आज सुबह से ही महिलाएं व युवतियां स्नान-ध्यान कर व्रत का शुभारंभ कर दी थी। इसके बाद संजने व संवरने के साथ ही पूजन-अर्चन की तैयारी में जुटी रही। दोपहर में व्रतियों ने नियम व निष्ठा से प्रसाद तैयार की। इस दौरान बाजारों में भी मिठाई, फल-फूल व पूजन सामाग्रियों के दुकानों में काफी भी़-भाड़ देखी गयी। मेंहदी लगाने का सिलसिला सुबह से ही शुरु था। कईयों ने रविवार को ही मेहदी रचा ली थी। सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में महिलाओं ने पूरे सोलह श्रृंगार में सज-धजकर कुछ ने तो अपने घर में ही तो कुछ ने मंदिरों में जाकर शंकर-पार्वती की पूजा में हिस्सा लिया। महिलाएं व कन्याएं केले के पत्तों का मंडप बनाकर उसमें शिव परिवार की परिवार सहित प्रतिष्ठा की। उसके बाद पूजन में माता गौरी के चरणों में चूड़ी, बिन्दी, आलता व अन्य श्रृंगार सामाग्री अर्पण की। मौसमी फल व पूड़ी-पकवान, गंगाजल, दही, दूध, शहद आदि से स्नान कराकर उन्हें समर्पित किया। रात्रि के समय अपने घरों में सुंदर वस्त्रों, फूल पत्रों से सजाकर फुलहरा बनाकर भगवान शिव और पार्वती का विधि-विधान से पूजन-अर्चन की। मंदिरों में पंडित जी ने भगवान शंकर-पार्वती के विवाह की कहानी विस्तार से बताई। पूजा समाप्ति के बाद सुहागिनों ने सोलहो श्रृंगार से सजी थाली के सामाग्री, फल-फूल व दक्षिणा पंडित जी को समर्पित कर आर्शीवाद अखंड सौभाग्यती का वरदान मांगा। इसके अलावा घर हरि चर्चा व भजन, कीर्तन आरती की।


‘हर’ कृपा का दिन है ‘हरतालिका तीज’

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यह व्रत सौभाग्य की कामना और संतान सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य का वरदान होता है और उन्हें संतान का सुख देना वाला होता है। इस दिन महादेव शिव और मां पार्वती की पूजा का विधान है। सुहाग के इस पर्व के दिन पत्नियां अपने पति के लिए अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत को करने से विवाहित स्त्रियों के सौभाग्य में वृद्धि होती है। दांपत्य दोष, विवाह न होने या देर होना या मंगली दोष को दूर करने वाला होता है। सौभाग्य से जुड़े होने के कारण इस व्रत को विवाहित महिलाएं और नवविवाहित महिलाएं करती है। इसी दिन माता सती ने अपनी कठोर साधना और तपस्या से भगवान शिव को पाने का संकल्प किया। जिसके बाद भगवान शिव उन्हें पति रूप में मिले। इसी प्रकार अपने पुर्नजन्म पार्वती रूप में भी उन्होंने फिर से शिव को पति रूप में पाने के लिए कठिन साधना की। कठिन परीक्षा को सफलता से पूर्ण कर लेने पर ही प्रभु ने उन्हें पुनः वरण किया और शिव-पार्वती का विवाह संपन्न हुआ इसलिए मां पार्वती की भांति स्वयं के लिए उत्तम वर के लिए इस व्रत की पौराणिक महत्ता है। व्रत का उद्धेश्य पति और संतान के लंबे और सुखी जीवन की कामना करना है। जिन महिलाओं की कुण्डली में वैवाहिक सुख में कमी या विवाह के बाद अलगाव जैसे अशुभ योग बन रहे हों, उन महिलाओं को भी यह व्रत विशेष रुप से करना चाहिए। इस व्रत के विषय में यह मान्यता है, कि यह उपवास नियम अनुसार किया जाएं तो वैवाहिक सुख को बढ़ाता है और दांम्पत्य जीवन को सुखमय बनाये रखने में सहयोग करता है। इस व्रत के सुअवसर पर सौभाग्यवती स्त्रियां नए लाल वस्त्र पहनकर, मेंहदी लगाकर, सोलह श्रृंगार करती है। शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और मां पार्वती जी की पूजा करती है। इस पूजा में शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिवत पूजन किया जाता है। हरितालिका तीज की कथा को सुना जाता है। माता पार्वती पर सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। भक्तों में मान्यता है कि जो सभी पापों और सांसारिक तापों को हरने वाले हरितालिका व्रत को विधि पूर्वक करता है, उसके सौभाग्य की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं। ऐसा माना जाता है कि “तीज” नाम उस छोटे लाल कीड़े को दर्शाता है जो मानसून के मौसम में जमीन से बाहर आता है। हिन्दू कथाओं के अनुसार इसी दिन देवी पार्वती भगवान शिव के घर गयी थीं। यह पुरुष और स्त्री के रूप में उनके बंधन को दर्शाता है।

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