पिछले दिनों चन्द्रयान 3 की चाँद पर सफल लैंडिंग की बड़ी धूम और चर्चा रही। इसी बहाने इसरो का नाम भी खूब चर्चा में रहा।चाहे कोई भी क्षेत्र क्यों न हो, आज भारत देश पूरी दुनिया में हर क्षेत्र के अंदर अपनी अलग पहचान बना रहा है। इसी के साथ अंतरिक्ष की दुनिया में भी भारत लगातार आगे बढ़ रहा है और नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। भारत की अंतरिक्ष में बढ़ती उपलब्धियां देख आज दूसरे देश भी स्तब्ध हैं। ये सब संभव हो रहा है इसरो (ISRO) की वजह से। इसरो भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन है, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत के लिए अंतरिक्ष से संबंधित तकनीक उपलब्ध करवाना है। इसरो ने चंद्रमा तक जो चन्द्रयान 3 भेजा है, उसका मुख्य उद्देश्य चाँद से उन सभी जानकारियों को हासिल करना है जिनसे दुनिया अभी बेखबर है। मैं अभी बैंगलोर में हूँ और ‘इसरो’ का मुख्यालय भी बैंगलोर में ही है।आज एक सुखद संयोग बना।इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिक और ग्रुप-निदेशक डा०कमलजीतसिंह जी से मुलाक़ात हुयी।वे अलवर में उस कॉलेज के विद्यार्थी रहे हैं जिसमें मैं ने वर्षों तक पढ़ाया है।कॉलेज के दिनों की यादों को हम दोनों ने खूब साझा किया।उनसे चर्चा के दौरान ज्ञात हुआ कि वे हिंदी भाषा के परमानुरागी हैं। कविता-कहानियां भी लिखते हैं।हिंदी-दिवस निकट आ रहा है। अवसर की नज़ाकत और उनके हिंदी-प्रेम को देखकर मैं ने उन्हें अपनी नव-प्रकाशित पुस्तक “कुछ यादें:कुछ विचार” की एक प्रति सस्नेह भेंट की। सरल-सहज प्रकृति के डा० कमलजीतसिंह इतने विह्वल हुए कि बरबस मेरे और मेरी श्रीमतीजी के चरण छू लिए। चाँद को छूने वाले हमारे वैज्ञानिकों का शीश कैसे अपने गुरुओं के लिए श्रद्धावनत रहता है, यह भारतीय संस्कृति की अनुपम देन है। हमारी युवा-पीढ़ी के लिए ऐसे होनहार और यशस्वी वैज्ञानिक प्रेरणा के स्रोत सिद्ध हो सकते हैं।
(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें