दूसरे सत्र में राजकमल प्रकाशन से हाल ही में प्रकाशित कुँवर नारायण के साथ संवादों की किताब 'जिए हुए से ज्यादा' पर परिचर्चा हुई। इस किताब में अनेक पत्रकारों-साहित्यकारों द्वारा लिए गए कुँवर नारायण के साक्षात्कार संकलित है। यह उनकी भेंट वार्ता की तीसरी किताब है। परिचर्चा के इस सत्र में प्रयाग शुक्ल, मृणाल पाण्डे, हरीश त्रिवेदी, अनामिका से रेखा सेठी ने बातचीत की। इस दौरान मृणाल पाण्डे ने कहा, "कुँवर नारायण की रचनाओं में पात्र एक काल से दूसरे काल में आते जाते रहते हैं। जैसे समय की कोई सीमा न हो। उन्होंने अपनी रचनाओं में सीमाओं का स्पष्ट उल्लंघन किया है।" आगे उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि कुँवर जी के गद्य की उपेक्षा हुई है। उसे कविताओं के मुताबिक उतनी जगह नहीं मिली है। क्योंकि कविताएँ सघन होती है, पढ़ने में आसान होती हैं। उनका गद्य बहुत भीगा हुआ है और बहुत देर तक उसका स्वाद लिया जा सकता है।" इसके बाद उन्होंने कुँवर नारायण के कहानी संग्रह 'बेचैन पत्तों का कोरस' से कुछ कहानियों का अंशपाठ भी किया। कुँवर नारायण के लेखन की विशेषताओं पर दृष्टि डालते हुए हरीश त्रिवेदी ने कहा, "उनकी कविताओं का कथ्य और शिल्प जितना सुविचारित लगते हैं, उतना किसी और कवि में नहीं दिखता। वे अपने चिंतन-मनन और स्वभाव से जहाँ पहुँच गए, वो हमारे लिए बहुत प्रेरणीय है।" कुँवर जी द्वारा अनूदित विश्व साहित्य पर बात करते हुए उन्होंने कहा, "विश्व साहित्य के बारे में हमारी जो धारणाएँ हैं, वो बहुत ही राष्ट्रीयतावादी और स्वार्थवादी है। विश्व साहित्य की चेतना को हिन्दी साहित्य में लाने वाले कुँवर जी से बड़ा कोई दूसरा नहीं है।"
कुँवर नारायण के दर्शन पर बात करते हुए अनामिका ने कहा कि अगर हम पेंडुलम की तरह देखें तो सुख-दुख हमेशा आते-जाते रहेंगे। वह स्थिर तभी होगा जब हम डोलना छोड़ देंगे। उन्होंने कहा, "संस्कृतियाँ जब लड़-लड़कर थक जाती है तो एक समय आता है जब वे गले मिलकर एक हो जाती है।" कुँवर जी ने पाश्चात्य और पूर्वी संस्कृतियों के साथ जोड़कर हमारी संस्कृति को देखा। वहीं बातचीत के दौरान रेखा सेठी ने कहा कि कुँवर जी की यही खूबी है कि जब वे सभ्यताओं पर बात करते हैं तो कभी बिना प्रमाण के बात नहीं करते। वे उसके साथ पूरे प्रमाण भी देते हैं। बातचीत को आगे बढ़ाते हुए प्रयाग शुक्ल ने कहा, "कुँवर जी को आप हमेशा एक ही जगह से देख ही नहीं सकते हैं। उनकी दुनिया बहुत बड़ी है। हम उसे छू भी नहीं पाते हैं। वे एक साथ कितनी ही दिशाओं में चले जाते हैं।" आगे उन्होंने कहा, "कविता के साथ-साथ कलाओं से भी उनको गहरा लगाव रहा है। कलाओं से उनका संबन्ध कितना गहरा था वह उनकी रचनाओं में झलकता है।" इसके बाद उन्होंने कुँवर जी के साथ अपने संस्मरण सुनाते हुए उनकी कही बातों को याद किया। गौरतलब है कि कुँवर नारायण की याद में उनके परिवार की ओर से तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया गया था। जिसमें दो दिन का कार्यक्रम ऑनलाइन हुआ। तीसरे दिन का कार्यक्रम राजकमल प्रकाशन समूह और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सहयोग से आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में भारी संख्या में कुँवर नारायण की कविताओं और उनके लेखन के प्रशंसकों ने शिरकत की। कार्यक्रम के आखिर में कुँवर नारायण के पुत्र अपूर्व नारायण ने सबका आभार व्यक्त किया।
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