कश्मीरी की आदि संत-कवयित्री ललद्यद - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

कश्मीरी की आदि संत-कवयित्री ललद्यद

Kashmiri-poet-laldadh
23 सितंबर,23 को कश्मीरी की आदि संत- कवयित्री ललद्यद (१४ वीं शताब्दी) की जयंती है। बहुत दिनों से इच्छा थी कि इस महान कवयित्री के जीवन और कृतित्व पर एक सुंदर पेपरबैक संस्करण प्रकाशित हो। कुछ देवी ललद्यद का पुण्य-प्रताप,कुछ मेरा जतन और कुछ प्रकाशक की सदाशयता। तीनों ने मिलकर इस पुनीत कार्य को गति प्रदान की और पुस्तक ने साकार रूप ले लिया। यों, ललद्यद के पदों(वाखों) की संख्या एक सौ अस्सी के करीब बतायी जाती है,पर इस पेपरबैक संस्करण में ललद्यद के मात्र एक सौ चुने हुए पद(वाख) अनुवाद सहित दिए गए हैं। धर्म-दर्शन-सदाचार से आपूरित इन पदों का चयन उनकी लोकप्रियता,बहुप्रचलन और सरलता-सुगमता के आधार पर किया गया है।बातें इस कवयित्री ने वहीं की हैं जो कबीर ने या अन्य निर्गुणवादी कवियों ने की हैं। पुस्तक के प्रारंभ में  कवयित्री के जीवन और कृतित्व पर अत्यंत खोजपूर्ण और सारगर्भित प्रस्तावना भी दी गई है जो ललद्यद  के व्यक्तित्व और कृतित्व के विविधायामी स्वरूप पर प्रकाश डालती है। ललद्यद पर प्रस्तुत पेपरबैक पुस्तक पाठकों के लिए ज्ञानवर्धन का कार्य तो करेगी ही,साथ ही कश्मीर की सुदीर्घ और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी समझने का अवसर प्रदान करेगी। ललद्यद संसार की महानतम विभूतियों में से एक है। उसके पद सामान्य पद नहीं हैं अपितु ऐसी मुक्ता-मणियाँ हैं जिनका कोई मोल नहीं है। कवयित्री की काव्य-सलिला कश्मीरी साहित्य की ही नहीं,समूचे भारतीय साहित्य की बहुमूल्य निधि है। कश्मीर की ऐसी जगप्रसिद्ध आदि संत-कवयित्री को पाठकों तक पहुंचाने में अपार सुख,आनंद और असीम संतोष की अनुभूति हो रही है। देवी ललद्यद को नमन (पुण्य-स्मरण!) और पुस्तक के प्रकाशक वनिका, बिजनौर  पुब्लिकेशन्स को साधुवाद!




डा० शिबन कृष्ण रैणा

कोई टिप्पणी नहीं: