आलेख : कॉरीडोर से मजबूत होगी डिजिटल कनेक्टिविटी व कारोबार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 12 सितंबर 2023

आलेख : कॉरीडोर से मजबूत होगी डिजिटल कनेक्टिविटी व कारोबार

जी-20 समिट में इकोनॉमिक कॉरिडोर पर बनी सहमति से न केवल दोनों देश आपस में जुड़ेंगे बल्कि एशिया, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक सहयोग, ऊर्जा के विकास और डिजिटल कनेक्टिविटी को बल मिलेगा। वहीं चीन के ’बीआरआई’ को भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर यानी ’आईएमईसी’ से करारा झटका लगेगा। इस प्रोजेक्ट में भारत सहित कई मिडिल ईस्ट के देश और यूरोपीयन यूनियन के देशों को फायदा मिलेगा। इस कॉरिडोर के बनने के बाद भारत से मिडिल ईस्ट होते हुए यूरोप तक सामान के आयात निर्यात में काफी सुगमता देखने को मिलेगी। भारत से यूरोप तक यदि सामान भेजा जाएगा तो आने जाने में 40 फीसदी समय की बचत होगी। अभी भारत से किसी भी कार्गो को शिपिंग से जर्मनी यदि सामान पहुंचाना हो तो एक महीने से ज्यादा यानी करीब 36 दिन का समय लगता है। लेकिन इस इकोनॉमिक कॉरिडोर के बनने के बाद इस रूट से 14 दिन का समय कम हो जाएगा। यानी 22 दिन में ही सामान पहुंच जाएगा

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फिरहाल, इस इकोनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट में भारत, यूएई, सउदी अरब, अमरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीयन यूनियन सहित कुल 8 देशों को लाभ होगा। इसका फायदा इन 8 देशों के अलावा इजरायल और जॉर्डन को भी मिलेगा। यह कॉरिडोर 6 हजार किमी लंबा होगा। इसमें करीब 3 हजार 500 किलोमीटर का हिस्सा समुद्री मार्ग होगा। इस इकोनॉमिक कॉरिडोर के बनने के बाद से ही भारत, मिडिल ईस्ट और यूरोप के बीच एक नया कारोबार सिस्टम बनेगा। जिसका फायदा भारत को निश्चित रूप से होगा। इस इकोनॉमिक कॉरिडोर में न सिर्फ भारत और मिडिल ईस्ट व यूरोप, बल्कि अमेरिका भी साझेदार है। यह पहली बार होगा जब अमेरिका और भारत मिडिल ईस्ट में भी साझेदार बने हैं। इससे पहले भारत और अमेरिका इंडोपैसिफिक क्षेत्र में साथ काम कर रहे थे। भारत की मध्य एशिया से जमीनी रूप से कनेक्टिविटी पाकिस्तान की वजह से नहीं हो पाती है। इस कनेक्टिविटी में पाकिस्तान सबसे बड़ी बाधा रहा है। इस इकोनॉमिक कॉरिडोर से पाकिस्तानी बाधा का बड़ा तोड़ मिल गया है। पाकिस्तान 1991 से ही इस  कोशिश को रोकने में लगा हुआ था। निश्चित रूप से अरब देशों के साथ भारत की भागीदारी हाल के समय में बढ़ी है। ओपेक देशों खासकर सउदी अरब से द्विपक्षीय कारोबार और रणनीतिक पार्टनरशिप भी बढ़ी है। ऐसे में यूएई व अरब गवर्नमेंट भी भारत के साथ स्थाई कनेक्टिविटी बनाने की कोशिश कर रहे हैं।


भारत और ईरान के संबंध हाल के समय में सुधरे हैं। चीन और पाकिस्तान के चाबहार पोर्ट की काट में भारत ईरान के ग्वादर पोर्ट को डेवलप करके मध्य एशिया तक कारोबार की कोशिश में रहा है। लेकिन अमेरिका के ईरान पर प्रतिबंधों का असर भारत के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर पड़ा। लिहाजा इस वजह से भारत ने ग्वादर प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डालकर भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर पर फोकस किया। अमेरिका के भी इस कॉरिडोर से जुड़ने के बाद उसे उम्मीद है कि इस मेगा कनेक्टिविटी वाले प्रोजेक्ट से अरब प्रायद्वीप में पॉलिटिकल स्टेबिलिटी आएगी। साथ ही अमेरिका और मिडिल ईस्ट के देशों के बीच रणनीतिक भागीदारी और ताकतवर होगी। वहीं भारत को भी अमेरिका और अरब व यूएई की सक्रियता का रणनीतिक लाभ मिलेगा। क्योंकि वैसे भी जब बिजनेस रिलेशन अच्छे होते हैं तो छोटे मोटे विवाद भी नजरअंदाज कर दिए जाते हैं। भारत को इस कॉरिडोर से अन्य फायदों के साथ यह फायदा भी होगा कि यह कॉरिडोर मुंबई से शुरू होगा और चीन के बीआरआई का बेहतर विकल्प होगा। यूरोप तक सीधी पहुंच से भारत के लिए सामान का आयात निर्यात करना यानी कारोबार करना और आसान हो जाएगा।


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बता दें, चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के बहाने कारोबार करते करते छोटे देशों को कर्ज के जाल में फंसाने की कई वर्षों से जुगत में लगा हुआ है। ऐसे में नया कॉरिडोर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का बेहतर विकल्प बनकर उभरेगा। कई देशों को चीन के कर्ज के जाल से मुक्ति मिलेगी। जी20 में अफ्रीकी संगठन के 21वें सदस्य बनने के बाद बीआरआई के माध्यम से चीन की अफ्रीकी देशों पर कर्ज का दबाव बनाने की कोशिश को रोकने में मदद मिलेगी। भले ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी20 समिट के लिए भारत नहीं आ सके। उन्होंने पीएम ली कियांग को भारत भेज दिया, लेकिन चीन की पूरी नजर इस समिट पर गड़ी रही। जब चीन को पता चला कि उसकी महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के विकल्प के रूप में भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाए जाने पर सहमति हुई है तो वह बौखला गया। चीन का आरोप है कि ’दिल्ली में आयोजित जी20 समिट में एकबार फिर अमेरिका ने अपनी पुरानी योजना को ही आगे बढ़ाया है। ’अमेरिका ने पहले भी इस योजना के विस्तार का खाका पेश किया है। इस इकोनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट का उद्देश्य चीन को दुनिया में आइसोलेट करना है।’ चीन ने इस कॉरिडोर के बहाने अमेरिका पर अपनी भड़ास निकाली है।


जी-20 में मिली सनातन संस्कृति को जगह 

इस समिट की सबसे खास बात यह है कि इसके जरिए सनातन धर्म की जबरदस्त ब्रांडिंग की गयी है। नटराज की विशाल मूर्ति, कोणार्क और ननालंदा का झलक, कंट्री प्लेट पर ’इंडिया’ नाम की बजाय भारत और साबरमती आश्रम की बैकग्राउंड में लगी तस्वीरे इस बात का संकेत है कि आने वाला दिन सनातन धर्म की ही है। नटराज की विशाल मूर्ति, कोणार्क और नालंदा का झलक, कंट्री प्लेट पर ’इंडिया’ नाम की बजाय भारत और साबरमती आश्रम. जी हां, ये भारत के सनातन धर्म को प्रदर्शित कर रहे है। भारत मंडपम में कन्वेंशन हॉल के प्रवेश द्वार पर 28 फुट ऊंची नटराज की प्रतिमा लगाई गई थी. यह प्रतिमा भगवान शिव को ’नृत्य के देवता’ और सृजन और विनाश के रूप में परिभाषित करती है. भारत मंडपम में नटराज की प्रतिमा का लगाने के पीछे धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों कारण थे. नटराज का ये स्वरूप शिव के आनंद तांडव का प्रतीक है. नटराज की प्रतिमा में आपको भगवान शिव की नृत्य मुद्रा नजर आएगी. साथ ही वो एक पांव से दानव को दबाए हैं. ऐसे में शिव का ये स्वरूप बुराई के नाश करने और नृत्य के जरिए सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने का संदेश देता है. प्रधानमंत्री मोदी सुबह जब महात्मा गांधी के समाधिस्थल पर मेहमानों का स्वागत कर रहे थे तो उसके बैकग्राउंड में साबरमती आश्रम की कुटी के चित्र लगाएं थे। यह वहीं आश्रम है, जहां से भारत को आजाद कराने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी ने की थी. साबरमती आश्रम उस आदर्श का घर बन गया जिसने भारत को स्वतंत्र बना दिया. साबरमती आश्रम आज प्रेरणा और मार्गदर्शन स्त्रोत के रूप में सेवा करता है. इससे पहले पीएम मोदी शनिवार को जब जी20 शिखर सम्मेलन में विदेशी नेताओं का स्वागत कर रहे थे तो उनके बैकग्राउंड में ओडिशा के मशहूर कोणार्क मंदिर का सूर्य चक्र बना हुआ था. पीएम मोदी ने मेहमानों को कोणार्क सूर्य मंदिर और चक्र के बारे में भी जानकारी दी थी. वहीं, भारत मंडपम में राष्ट्रपति की ओर से डिनर का आयोजन किया गया. इस दौरान वेलकम स्टेज के बैकग्राउंड में नालंदा विश्वविद्यालय की झलक दिखाई दी. प्रधानमंत्री मोदी जी20 के कुछ नेताओं को विश्वविद्यालय का महत्व बताते हुए भी दिखे. वहीं, राष्ट्रपति मुर्मू ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक सहित जी20 के नेताओ को नालंदा यूनिवर्सिटी के महत्व के बारे में समझाया. बता दें कि नालंदा विश्वविद्यालय  प्राचीन भारत की प्रगति को दर्शाता है. 


दो अलग-अलग गलियारे बनाए जाएंगे     

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एमओयू के अनुसार, दो अलग-अलग गलियारे शामिल होंगे. पूर्वी गलियारा भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ेगा और उत्तरी गलियारा अरब की खाड़ी को यूरोप से जोड़ेगा. इसमें एक रेलवे नेटवर्क की सुविधा होगी जोमौजूदा समुद्री और सड़क परिवहन मार्गों के रूप में विश्वसनीय और लागत प्रभावी क्रॉस बॉर्डर शिप टू रेल ट्रांजिट सुविधा देने के लिए डिजाइन किया गया है. मुखमुख्य रूप से मिडिल ईस्ट से होकर गुजरने वाले इस रेलवे मार्ग में बिजली के केबल और क्लीन हाइड्रोजन पाइपलाइन बिछाने की योजनाएं शामिल हैं. व्हाइट हाउस की रिपोर्ट में कहा गया है कि रेल सौदा भारत से यूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन और इजराइल के माध्यम से यूरोपतक शिपिंग और रेल लाइनों को जोड़ेगा. अब प्रोजेक्ट में शामिल देश अगले 60 दिन में कॉरिडोर को लेकर एक कार्य योजना तैयार करेंगे. इसमें ट्रांजिट रूट्स, कोऑर्डिनेशन बॉडी और टेक्निकल पहलुओं पर ज्यादा जानकारी के लिए चर्चा की जाएगी. भारत सरकार के सूत्रों के मुताबिक, इसमें शामिल सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हुए परामर्शात्मक, पारदर्शी और भागीदारीपूर्ण कनेक्टिविटी पहल की महत्व पर जोर दिया गया है.


पूरी दुनिया की कनेक्टविटी मिलेगी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ’मानवीय प्रयास और महाद्वीपों में एकता का एक प्रमाण’ बताया है. उन्होंने कहा, राष्ट्रपति बाइडेन, मोहम्मद बिन सलमान, शेख मोहम्मद बिन जायद, मैक्रो समेत सभी देशों के प्रमुखों को इस इनिशिएटिव के लिए बहुत बधाई देता हूं. मजबूत कनेक्टिविटी और इन्फ्रस्ट्रक्चर मानव सभ्यता के विकास का मूल आधार है. आने वाले समय में भारत पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच यह आर्थिक एकीकरण का प्रभावी माध्यम बनेगा. यह पूरी दुनिया की कनेक्टिविटी और सतत विकास को नई दिशा देगा. जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसे ’वाकई में एक बड़ी उपलब्धि’ माना. बाइडेन ने कहा, दुनिया इतिहास के एक मोड़ पर खड़ी है. एक ऐसा पॉइंट, जहां हम आज जो निर्णय लेते हैं वह हमारे भविष्य की दिशा को प्रभावित करने वाले हैं. नए भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारे  में इजराइल और जॉर्डन भी शामिल हैं.


रूस को संदेश

बैठक के दौरान यूक्रेन युद्ध के मामले में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और महासभा में अपनाए गए प्रस्तावों को दोहराया गया और कहा गया कि सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप ही काम करना चाहिए. इस घोषणा पत्र के जरिए रूस को संदेश दिया गया कि किसी भी देश की अखंडता, संप्रुभता का उल्लंघन और इसके लिए धमकी या बल के प्रयोग से बचना चाहिए. परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी देना अस्वीकार्य है. बीते साल रूस द्वारा पश्चिमी देशों को परमाणु हमले की धमकी के संदर्भ में भी इस बयान को देखा जा रहा है. नई दिल्ली घोषणापत्र को इसलिए भी भारत की बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है कि राजधानी में आयोजित जी20 समिट में शुरुआत में यूक्रेन युद्ध और जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों को शामिल किए जाने पर रूस और चीन ने आपत्ति जताई थी. यही वजह है कि समिट में मीटिंग के दौरान इस पर सहमति नहीं बनने के बाद य्रूकेन युद्ध से जुड़े पैराग्राफ को खाली छोड़ दिया गया था. लेकिन दुसरे दिन की मीटिंग में यूक्रेन युद्ध, जलवायु परिवर्तन, लैंगिक असमानता, आर्थिक चुनौतियां, आतंकवाद समेत कई मुद्दों पर सदस्य देशों के बीच आम सहमति बनाने में कामयाब हो गया।


स्वास्थ्य को लेकर गंभीरता

आज वैश्विक स्तर पर सतत आर्थिक विकास सुनिश्चित करने की दृष्टि से महिलाओं बच्चों और किशोर के स्वास्थ्य में निवेश बेहद महत्वपूर्ण है। इसलिए जी-20 को अब महिलाओं, बच्चों व किशारों के स्वास्थ्य में सुधार लाने और इसे रोकी जा सकने वाली जीवन की सुविधाओं के लिए पहल करनी होगी। आंकड़ों के मुताबिक हर वर्ष सभी जी-20 देशों में लगभग 20 लाख माताएं, नवजात शिशुओं और किशोरों की मौतें होती है। इनमें मृत बच्चों का जन्म भी शामिल है। इन सभी मौतों को रोका जा सकता है। लेकिन इसके प्रमुख नकारात्मक कारकों पर ध्यान देना होगा। जलवायु परिवर्तन और जीवन यापन में बदलाव लाना होगा और इसके कॉस्ट ऑफ लिविंग क्राइसिस को खत्म करना होगा। खाद्य सुरक्षा व गरीबी में वृद्धि दर को कम करना होगा। वर्ष 2000 में जलवायु संबंधी आपातकालों से दुनिया भर में डेढ़ लाख से अधिक मौतें हुई और बेसिक स्तर पर बीमारी के बढ़ते बोझ की वजह से से 88 फीसदी हिस्सा बच्चों पर ही पड़ा था। एक अनुमान के अनुसार जलवायु आपातकाल से विस्थापित होने वाले लोगों में से 80 फीसदी महिलाएं हैं। और इसका मुख्य कारण लैंगिक आधार पर होने वाली आर्थिक सामाजिक असमानताएं हैं। ऐसे में इस अहम मसले कसे भी जी-20 में शामिल करना चाहिए। उदाहरण के लिए 2021 में शुरू की गई डिजिटल रणनीति के हिस्से के रूप में भारत ने डिजिटल स्वास्थ्य समाधान से संबंधित कई पहलों का प्रस्ताव दिया है। भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य और महामारी संबंधी बेहतर तैयारी एवं उपाय से जुड़े प्रयासों पर जलवायु संकट के प्रभाव को देखते हुए जलवायु स्वास्थ्य संबंध से जुड़ी पहलो का प्रस्ताव भी दिया है। यह सुनिश्चित करना बेहद अहम है कि यह सभी पहल लैंगिक और उम्र की दृष्टि से संवेदनशील हो।





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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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