- अपनी भाषा में देशज प्रज्ञा बोलती है : प्रो कौल
दिल्ली। अपनी भाषा में अपनी प्रकृति और पर्यावरण को जानना -समझना अधिक आसान है। इसमें हमारे सदियों के लोक संस्कार और देशज प्रज्ञा बोलती है। हिन्दू महाविद्यालय में वनस्पति को हिन्दी में जानो कार्यक्रम में वनस्पति विज्ञान के आचार्य प्रो कुलदीप कुमार कौल ने कहा कि लगभग पचास एकड़ में फैले हिन्दू महाविद्यालय परिसर में वनस्पतियों का भण्डार है जहां मोटे तौर पर लगभग पच्चीस मुख्य वनस्पति प्रजातियों के अनेक किस्म के पेड़ पौधे उपलब्ध हैं। प्रो कौल ने विद्यार्थियों को भारत भर में आम तौर पर पाए जाने वाले पेड़ों आम, बबूल, नीम, पीपल और वट के बारे में बताया। उन्होंने अनेक अल्प परिचित पेड़ पौधों के वनस्पति वैज्ञानिक नामों और साथ साथ उनकी हिंदी तथा लोक में प्रचलित संज्ञाओं की जानकारी दी। प्रो कौल ने कहा कि वनस्पतियों को ठीक से जानना और पहचानना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि इनसे कभी हम आपात स्थिति में अपनी प्राण रक्षा भी कर सकते हैं। कार्यक्रम में हिन्दी विभाग के वरिष्ठ शिक्षक प्रो विमलेन्दु तीर्थंकर ने हिंदी साहित्य में वर्णित फूल देने वाले पौधों-वृक्षों यथा कचनार, चम्पा, कनेर, हरसिंगार और अमलतास का उल्लेख करते हुए बताया कि समूचे भारतीय वांग्मय में वनस्पतियों का हृदयस्पर्शी वर्णन हुआ है। महाकवि कालिदास के नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम का उदाहरण देते हुए डॉ तीर्थंकर ने कहा कि शकुंतला की विदाई पर पशु पक्षी तो क्या वनस्पतियां भी उदास और ग़मगीन थीं। इससे पहले महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो अंजू श्रीवास्तव ने महाविद्यालय में वनस्पति को हिन्दी में जानो कार्यक्रम के शुभारम्भ की घोषणा करते हुए विद्यार्थियों के दल को रवाना किया। प्रो श्रीवास्तव ने कहा कि अपनी भाषा से अपने संस्कारों को बल मिलता है और हम अपनी संस्कृति को ठीक तरह से जान-समझ पाते हैं। आयोजन में हिंदी विभाग के आचार्य डॉ रामेश्वर राय, महाविद्यालय के कोषाध्यक्ष वरुणेन्द्र रावत, डॉ तालीम अख्तर, डॉ अरविन्द कुमार सम्बल सहित अनेक शिक्षक उपस्थित थे। दल में हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, राजनीति विज्ञान, रसायन विज्ञान वनस्पति विज्ञान सहित अन्य विषयों के विद्यार्थी भी उपस्थित थे। अंत में संयोजक हिंदी विभाग के प्रभारी डॉ पल्लव ने सभी का आभार प्रदर्शन किया।
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