- गैरसवर्णों के लिए आत्मघाती है वन नेशन, वन इलेक्शन
कोविंद समिति काफी तेज गति से काम करेगी। क्योंकि उसे सिर्फ भाजपा नेतृत्व द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट पर मुहर लगाना है। जिस तरीके से सवर्णों को आरक्षण देने के लिए सरकार का पूरा तंत्र सक्रिय हो गया था, उससे भी तेज गति से कोविंद समिति वन नेशन, वन इलेक्शन की सिफारिश करेगी। इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कोई बिल संसद में पेश किया जाएगा तो उसे बहुमत भी गैरसवर्ण सदस्यों के समर्थन से मिलेगा। और इसका नुकसान भी गैरसवर्णों को ही होना है। भाजपा का एक अपना राजनीतिक चरित्र है। मुसलमान में वह ऐसे नेता को बड़ी जिम्मेवारी सौंपती है, जिसकी पत्नी हिंदू हो। ठीक उसी तरह अनुसूचित जाति के ऐसे लोगों को भरोसेवाला पद सौंपती है, जिसकी पत्नी ब्राह्मण हो।
बिहार में भाजपा के साथ और पास रहने वाले सभी बड़े नेता गैरसवर्ण हैं। सांसद सुशील मोदी, प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी, विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष हरी सहनी, सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा या चिराग पासवान सभी गैरसवर्ण हैं। वे सभी वन नेशन, वन इलेक्शन के गुनगान में जुटे हैं। ये लोग लोकतंत्र और वोट के अधिकार के कारण ही बड़े पदों पर पहुंचे हैं। लोकतंत्र में वोट एक शक्ति है, एक ताकत है। जितना ज्यादा वोट देने का मौका आपके हाथ में आएगा, उतनी आपकी ताकत बढ़ेगी। वन नेशन, वन इलेक्शन के फार्मूले से सुशील मोदी, सम्राट चौधरी, हरी सहनी, उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान जैसे करोड़ों गैरसवर्णों का वोट देने का अधिकार छीना जा रहा है। ये गैरसवर्णों की वोट की दुकानदारी करने वाले नेता जश्न मना रहे हैं। वोट के अधिकार छीनने के फायदे गिना रहे हैं। यही स्थिति रही तो सुशील मोदी, सम्राट चौधरी, हरी सहनी, उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान जैसे नेता गंगा में दहा दिये जाएंगे और इनके घरों पर राष्ट्रवाद का पुतला गाड़कर इनके राजनीतिक परिजनों को बेघर कर दिया जाएगा।
--- वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ संसदीय पत्रकार ---
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें