हमास ने जो किया..उसे किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता. आतंकवाद का कोई जस्टिफिकेशन नहीं हो सकता। हमास आईएसआईएस, तालिबानियों व अलकायदा से भी बदतर है. यह अलग बात है कि ’कांग्रेस सहित पूरा मोदी विरोधी खेमा हमास की तरफदारी में जुटी है। मोदी विरोधियों का मुस्लिम परस्ती तो समझ में आता है, लेकिन सच तो यह है कि हमास के खात्मा में ही छिपी है दुनि की भलाई का राज। हालांकि इजरायल तो पहले ही एलान कर चुका है कि हमास को खत्म करने तक वो रुकेगा नहीं. बड़ी बात ये है कि दुनिया के तमाम बड़े मुल्क इजरायल के साथ हैं, जो साहसिक कदम है। क्योंकि अगर हमास का खात्मा नहीं हुआ तो दुनिया पर मंडरा रहा महायुद्ध का खतरा!, से इनकार नहीं किया जा सकता। बता दें, हमास फिलिस्तीनी आतंकी संगठन है. 1987 में हमास संगठन अस्तित्व में आया. 1993-2005 तक इजरायल पर कई आत्मघाती हमले किए. 2006 में हमास ने गाजा में तख्तापलट किया. 2007 से गाजा में संभाल रहा है शासन. हमास को ईरान से पैसा और हथियार मिलता है. वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी का प्रमुख राजनीतिक दल। इसके राजनीतिक विचारों में उग्रता और हिंसा हैइजराइल पर हमास के हमले ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया है. आसमान, पानी और जमीन के रास्ते हमास के लड़ाके इजराइल की सीमा में दाखिल हुए और कई लोगों को निशाना बनाया. हालांकि हमले के बाद से सवाल ये उठ रहे हैं कि कैसे आयरन डोम और मोसाद जैसी खुफिया एजेंसी वाले देश को इस आतंकी हमले की भनक तक नहीं लगी. यह अलग बात है कि इजरायल ने भी जोरदार जवाबी कार्रवाई की. गाजापट्टी में लड़ाकू विमानों ने बरसाए बम, हमास के 500 से ज्यादा ठिकानों पर टारगेट किया. गाजा पट्टी में इजरायल के हमले में हमास के कई कमांड सेंटर भी तबाह, इस्लामिक जिहाद कमांड सेंटर भी उड़ाया. इजराइल ने ऐलान किया है कि ’हमास को जड़ से मिटाएं बगैर चैन से नहीं बैठेंगे। साथ ही ये भी सुनिश्चित करेंगे कि जंग के बाद हमास के पास कोई मिलिट्री केपेबिलिटी और गाजा को गवर्न करने की क्षमता न रहे’. इजरायल ने हमास से लड़ने के लिए गाजा के पास एक लाख अतिरिक्त सैनिकों को भेजा है. इधर, अमेरिका भी इजरायल की मदद के लिए आगे आया है और मिलिट्री सपोर्ट देने की बात कही है. देखा जाएं तो इजरायल में हुए धमाके ने 50 साल पुरानी दर्दनाक यादें ताजा कर दीं. योम किप्पुर के युद्ध में भी कुछ इसी तरह हुआ था. ठीक योम किप्पुर युद्ध के 50 साल 1 दिन बाद ये हमला उसी तर्ज पर किया गया. 1973 में भी इजाराइल को अरब अटैक ने सरप्राइज किया था. इस बार फिलिस्तीन के हमले में इज़रायल के 1700 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, 2 हज़ार से ज़्यादा लोग घायल हैं. हमास के आतंकियों ने इज़रायली, नागरिकों, सैनिकों और विदेशी नागरिकों का अपहरण कर लिया है, उन्हें बंधक बनाकर सुरंग में रखा गया है. उसके इस क्रूरता पर इजरायल, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और यूरोपियन यूनियन के देशों ने हमास को वर्षों पहले ‘आतंकी संगठन’ करार दिया है, लेकिन यह जोर देकर कहना होगा कि पूरी दुनिया ऐसा नहीं मानती है. चीन, भारत, रूस, ब्राजील और तुर्की उन देशों में हैं, जिन्होंने हमास को ‘आतंकी संगठन’ करार दिए जाने का विरोध किया है. दरअसल, 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2018 के दिसंबर में हमास को ‘आतंकी संगठन’ करार देने का प्रस्ताव पारित नहीं हो सका, क्योंकि केवल 87 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया था. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब घोषणा की है कि भारत इजरायल के साथ है, लेकिन उनकी सरकार ने 2018 के इस प्रस्ताव के दौरान एब्स्टेन यानी अनुपस्थित रहने का फैसला किया था. ऐसा करना इसबार इसलिए जरुरी हो गया, क्योंकि इसके परिणाम निस्संदेह कई वर्षों तक पश्चिम एशिया और दुनिया में गूंजेंगे। इसलिए हमास के खात्मा में ही दुनिया की भलाई है।
हमास का सबसे बड़ा मददगार ईरान
हमास के सबसे बड़े मददगारों में से एक है ईरान। हमास को धन, हथियार और प्रशिक्षण में योगदान दे रहा है. हालांकि सीरिया के गृहयुद्ध में विरोधी पक्षों का समर्थन करने के बाद ईरान और हमास थोड़े वक्त के लिए अलग हो गए थे. लेकिन मौजूदा वक्त में ईरान हमास, पीआईजे (च्ंसमेजपदपंद प्ेसंउपब श्रपींक) और अमेरिका द्वारा आतंकवादी संगठनों के रूप में नामित अन्य फिलिस्तीनी समूहों को सालाना लगभग 100 मिलियन डॉलर की सहायता देता है. साल 2018 में अमेरिका ने ईरान परमाणु समझौते से हटने के बाद लगाए गए प्रतिबंधों के साथ तेहरान की अपने विदेशी भागीदारों को वित्त पोषित करने की क्षमता को बाधित कर दिया है. साल 2002 में रेसेप तैयप एर्दोगन के सत्ता में आने के बाद तुर्की हमास का एक और कट्टर समर्थक और इजरायल का आलोचक रहा है. हालांकि अंकारा इस बात पर जोर देता है कि वह केवल राजनीतिक रूप से हमास का समर्थन करता है. तुर्की पर भी हमास को वित्त पोषित करने का आरोप लगाया गया है. गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक दोनों फिलिस्तीनी के इलाके हैं, जो मैंडेट फिलिस्तीन का हिस्सा थे. 1967 में छह दिन की जंग के दौरान इजरायल ने इस पर कब्जा कर लिया था. दोनों इलाकों में मिलाकर देखें तो इसमें 5 मिलियन से ज्यादा फिलिस्तीनी रहते हैं. गाजा पट्टी 140 वर्ग मील जमीन है, जो भूमध्य सागर के किनारे के साथ इजरायल के दक्षिण-पश्चिम कोने में स्थित है. इसकी सरहद दक्षिण दिशा में मिस्र से भी लगती है. वेस्ट बैंक मौजूदा वक्त में इजरायल के अंदर स्थित एक इलाका है, लेकिन यह 2,173 वर्ग मील की गाजा पट्टी से बहुत बड़ा है. वेस्ट बैंक, इजरायल की पूर्वी सीमा पर जॉर्डन नदी के पश्चिमी किनारे और ज्यादातर मृत सागर तक फैला हुआ है. इस वजह से ही इसका नाम वेस्ट बैंक पड़ा.
दिव्यांग है हमास का मास्टरमाइंड
हमास की मिलिट्री विंग के मुखिया मोहम्मद दीफ ने कहा कि ‘ऑपरेशन अल-अक्सा स्टॉर्म’ गाजा की 16 साल की नाकाबंदी, इजरायली कब्जा और हाल की घटनाओं के जवाब में शुरू किया गया था. लेकिन खास यह है कि हमास के हमलों की साजिश रचने वाला ये शख्स अपने पैरों पर खड़ा तक नहीं हो पाता है. मोहम्मद दीफ को चलने-फिरने के लिए व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ता है. बता दें कि इजरायल और फिलिस्तीन में मोहम्मद दीफ को एक ‘साये’ के तौर पर पहचाना जाता है. मोहम्मद दीफ को खत्म करने की इजरायल की अब तक की सभी कोशिशें नाकाम रही हैं. मो. दीफ इजरायल के वांछितों की सूची में सबसे ऊपर है. 2002 से हमास की मिलिट्री विंग का मुखिया है. मो. दीफ का जन्म 1960 के दशक में गाजा में खान यूनिस शरणार्थी शिविर में मोहम्मद दीब इब्राहिम अल-मसरी के तौर पर हुआ था. उस समय गाजा मिस्र के नियंत्रण में था. बता दें कि 1948 से 1967 तक गाजा मिस्र, 1967 से 2005 के बीच इजरायल और 2005 से 2007 तक फिलिस्तीनी प्राधिकरण के कब्जे में रहा है. साल 2007 में हमास ने तख्तापलट कर गाजा पर नियंत्रण हासिल कर लिया. रिपोर्ट में कहा गया है कि दीफ के चाचा या पिता ने 1950 के दशक में सशस्त्र फिलिस्तीनियों की उसी क्षेत्र में की गई छापेमारी में हिस्सा लिया था, जहां हमास के लड़ाकों ने शनिवार को इजरायल में घुसपैठ की थी.
हमास में क्या है दीफ की भूमिका?
हमास की स्थापना 1980 के दशक के अंत में वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर इजरायल के कब्जे के खिलाफ पहले फिलिस्तीनी विद्रोह की शुरुआत के बाद हुई थी. दोनों क्षेत्रों पर इजरायली कब्जा 1967 के इजरायल-अरब युद्ध के दौरान हुआ. पहले विद्रोह के समय दीफ की उम्र 20 साल थी. बाद में उन्हें इजरायलियों ने जेल भेजा दिया. इजरायल ने दीफ को आत्मघाती बम धमाकों में दर्जनों लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया. इसमें एक हमला 1996 में किया गया था, जिसमें 50 से ज्यादा नागरिक मारे गए थे. ये बम धमाके ओस्लो शांति समझौते के जवाब में थे. इस समझौते पर 1990 के दशक की शुरुआत में इजरायल और अधिकांश फिलिस्तीनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ने हस्ताक्षर किए थे. समझौते का मकसद इजरायल के साथ एक फिलिस्तीनी राज्य के रूप में फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय लाना था. हालांकि, हमास इसके खिलाफ था. उसका कहना था कि 1948 के अरब-इजरायल युद्ध में इजरायल ने फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल कर लिया था. तर्क दिया गया कि समझौते का प्रभावी मतलब फिलिस्तीन के लिए क्षेत्र का नुकसान होगा. कहा जाता है कि दीफ ने याह्या अय्याश के अधीन अध्ययन किया था, जिसका उपनाम इंजीनियर था. वह बम बनाने में माहिर था. इजरायल ने 1996 में याह्या अय्याश की विस्फोटकों से भरे मोबाइल फोन के जरिये हत्या कर दी थी. दीफ आगे चलकर हमास की मिलिट्री विंग ‘कसम ब्रिगेड’ में शामिल हो गया.
’खुद रॉकेट बना रहा हमास’
गाजा को खत्म करने के लिए हमला होगा तो उनके सहयोगी ईरान और लेबनानी हिजबुल्लाह समूह उनका साथ देंगे. उन्होंने पहले भी हमास की मदद की है. लेकिन 2014 में गाज़ा युद्ध के बाद से हमास खुद ही अपने रॉकेट बना रहा है. वो अपने लड़ाकों को खुद ही ट्रेनिंग दे रहा है. हालांकि, इजरायल और हमास की सशस्त्र क्षमता की सीधी तौर पर तुलना नहीं की जा सकती है क्योंकि हमास एक घोषित आतंकी संगठन है और वह अपरंपरागत लड़ाई लड़ रहा है। लेकिन उसके दूर तक मारने की क्षमता वाले रॉकेट्स, ड्रोन और ग्लाइडर जैसी नई हथियार प्रणालियां उसके एडवांस वार सिस्टम की ओर इशारा कर रहे हैं।
1947 से सुलग रही है ये आग
1-1947 -संयुक्त राष्ट्र के फैसले से इजरायल स्थापित हुआ
- द्वितीय विश्वयुद्ध में नाजियों की हार हुई तब इजरायल की मांग उठी और इजरायल बनाया गया.
- स्वतंत्रता की लड़ाई- यह लड़ाई 1947 से 1949 तक चली, जिसमें इजरायल के खिलाफ 8 देश खड़े थे.
2. 1956- सिनाई का युद्ध
- यह युद्ध 1956 में हुआ था, जिसमें इजरायल की तरफ से ब्रिटेन और फ्रांस ने भी ये युद्ध लड़ा था. युद्ध मिस्त्र से खिलाफ लड़ा गया.
3. 1967- अरब-इजरायल वॉरः अरब देश बनाम इजरायल
- मिस्र, जॉर्डन, सीरिया ने एक साथ मिलकर किया इजरायल पर हमला .
- जून 05-जून 10 तक चला युद्ध.
- इजरायल ने मिस्र से गज़ा पट्टी का क्षेत्र जीता
- जॉर्डन से पूर्वी जेरूसलम, वेस्ट बैंक का क्षेत्र जीता.
- सीरिया से ळवसंद भ्मपहीजे का क्षेत्र जीता.
4. 1973ः योम किप्पुर युद्ध
- 1967 में हार के बाद बौखलाए सीरिया और मिस्र ने अचानक इजरायल पर हमला किया.
- करीब 3 हफ्तों तक चला युद्ध,
- कच्चे तेल का भाव $3 से बढ़कर $12 हुआ था.
5. 1987-1991-फिलिस्तीन और इजरायल के बीच तनाव बढ़ने लगा
- इजरायली शासन के खिलाफ कब्जे वाले क्षेत्रों में फिलिस्तीनी विरोध प्रदर्शन, हड़ताल और नागरिक अवज्ञा के कार्यों में जुट गए.
6. 1993 में समझौता हुआ
7. 2000-2005ः फिलिस्तीन की तरफ से हमला
- फिलिस्तीन की तरफ से हिंसा, सुसाइड बॉम्बिंग, मिलिट्री ऑपरेशंस बढे.
8. 2006ः गाज़ा पर कंट्रोल
हमास ने फिलिस्तीनी लेजिस्लेटिव काउंसिल का चुनाव जीतकर, गाज़ा को अपने कंट्रोल में लिया.
9. 2008-2009ः ऑपरेशन
- गाज़ा की तरफ से लगातार रॉकेट हमलों के चलते इजरायल ने मिलिट्री ऑपरेशन चालू किया.
- हमास गाज़ा के पास रह रहे इजरायलियों पर लगातार रॉकेट से हमला कर रहा था.
- जनवरी 2009 में दोनों की तरफ से सीजफायर का एलान हुआ.
10. 2012 गाज़ा की तरफ से लॉन्ग रेंज रॉकेट्स से हमला किया गया.
- नवंबर 2012 में दोनों की तरफ से सीजफायर हुआ.
- इजरायल ने हमास के मिलिट्री चीफ ऑफ स्टाफ को मार गिराया.
- इसके बाद अगले 8 दिनों तक दोनों के बीच तनाव चलता रहा.
11. 2014 में ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज व तीन इजरायली युवकों के अपहरण और हत्या से तनाव बढ़ा.
- हमास की तरफ से लगातार रॉकेटों से हमला हुआ.
- अगस्त अंत में दोनों पक्षों में सीजफायर हुआ.
12. 2021ः जेरूसलम में प्रोटेस्ट और तनाव
- जेरूसलम में प्रोटेस्ट और तनाव के बाद 11 दिनों तक इजरायल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध जैसी स्तिथि रही.
- यह लड़ाई 2021 में लड़ी गई, जिसमें इजरायल के खिलाफ फिलिस्तीन हमास ने हमला किया।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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