सुल्ताना के मंचन साथ रतनव नाट्य रंगोत्सव का भव्य समापन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 8 अक्टूबर 2023

सुल्ताना के मंचन साथ रतनव नाट्य रंगोत्सव का भव्य समापन

  • एक कलाकार के पास केवल दर्शकों का प्यार और तालियाँ होती हैं- रमा पाण्डेय
  • नाट्य उत्सव के  क्नेद्र में सामाजिक सुधार,महिला सशक्तिकरण,दमनकारी प्रथा और सामाजिक भेदभाव जैसे विषय रहे

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नई दिल्ली- दिल्ली का सांस्कृतिक केंद्र मंडी हाउस के श्री राम सेंटर में  रतनव द्वारा आयोजित किये  तीन दिन के नाट्य रंगोत्सव का  समापन  रमा पाण्डेय द्वारा लिखित- निर्देशित सुल्ताना के मंचन के साथ हुआ। इस नाट्य उत्सव का आयोजन रमा थियेटर नाट्य विद्या संस्था (रतनव) एवं साइडवे कंसल्टिंग के सहयोग से किया गया था। इसबार नाट्य उत्सव के  क्नेद्र में सामाजिक सुधार,महिला सशक्तिकरण,दमनकारी प्रथा और सामाजिक भेदभाव जैसे विषय रहे। अंतिम दिन सुल्ताना  नाटक का मंचन हुआ यह नाटक दमनकारी सामाजिक मानदंडों के सामने स्वतंत्रता और न्याय के लिए एक युवा महिला के संघर्ष का मार्मिक और शक्तिशाली कहानी है। एक युवा महिला है जिसे अपनी मृतक बहन के पति आरिफ से उसकी इच्छा के विरुद्ध शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है। सुल्ताना केवल पंद्रह वर्ष की है, और आरिफ उससे बहुत बड़ा है। वह फंसी हुई और अकेली महसूस करती है जब तक कि वह अपने स्कूल की शिक्षिका उमा की शरण नहीं लेती, जो अपने जीवन में सामाजिक दबाव से भी पीड़ित थी।नाट्य उत्सव के पहले दिन प्रसिद्ध लेखक विकास कुमार झा द्वारा लिखित नाटक 'यम पुत्र' का मंचन किया गया था । साथ ही पद्मश्री पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अशोक चक्रधर को रंगमंच  के प्रति उनके आजीवन समर्पण के लिए "आजीवन रंग सेवा पुरस्कार" से सम्मानित किया गया। दुसरे 'शाइस्ता'  नाटक का मंचन हुआ , यह हैदराबाद और शेखवाटी में युवा मुस्लिम लड़कियों को शादी के लिए बेचने की प्रथा के खिलाफ एक युवा लड़की की अवज्ञा की कहानी है। रतनव की संस्थापक रमा पांडे ने कहा  “बिना किसी सरकारी मदद  के आज हम यह आयोजन कर रहे हैं । केवल दर्शकों के प्रेम और रंगमंच के प्रति उनके उत्साह ही हमें इस तरह के आयोजन करने की हिम्मत देता है । हमारा मकसद गाँव-गाँव, गली-गली, शहर-शहर उन कलाकारों को बचाने का है जिनके पास कुछ नहीं होता है। एक कलाकार के पास केवल दर्शकों का प्यार और तालियाँ होती है। अगले वर्ष हम फिर समाज के उन अनछुहे  सामाजिक कुरीतियों,मुद्दों को रंगमंच के मंच पर लेके आयेंगे जो आज  भी समाज में कहीं न कहीं प्रचलन में हैं”।

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