- प्रत्येक साल खदानों की माता के आदर में ढोरी माता तीर्थस्थल, खदानों में गरीब मजदूरों के प्रति माता मरियम की चिंता और खासकर, मजदूरों के कल्याण के लिए उनकी शक्तिशाली मध्यस्थता का प्रतीक है...
कथारा. हजारीबाग धर्मप्रांत के जारंगडीह में संत अंथोनी चर्च है.कोयला खदानों की चमत्कारी ढोरी माता मरियम का वार्षिक समारोह शुक्रवार 20 अक्टूबर को झंडोत्तोलन एवं नोवेना के साथ शुरू की गई.हजारीबाग धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष आनन्द जोजो ने माता मरियम के सम्मान में झंडोत्तोलन किया तथा मिस्सा बलिदान के द्वारा नोवेना की शुरुआत की. भक्तिपूर्वक रोजरी प्रार्थना करते हुए विश्वासियों ने भारी संख्या में माता मरियम का झंडा लिए हुए नोवेना के पहले दिन में भाग लिया.शुक्रवार के बाद शनिवार को नोवेना में शामिल होने के बाद तीसरे तीन श्रद्धा के साथ श्रद्धालु रविवार को नोवेना में शामिल होंगे. जारंगडीह स्थित ढोरी माता तीर्थालय जारंगडीह में वार्षिक समारोह झंडोत्तोलन व नोवेना प्रार्थना के साथ शुक्रवार को प्रारंभ कर दिया गया. मुख्य अनुष्ठाता हजारीबाग धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष आनन्द जोजो ने आशीष व प्रार्थना कर झंडोत्तोलन किया. तीर्थालय के पल्ली पुरोहित फादर माइकल लकड़ा, फादर विनोद लकड़ा व फादर विनय किंडो मुख्य रूप से मौजूद थे. धर्माध्यक्ष आनंद जोजो ने इस अवसर पर अपने संदेश में कहा, “आज हम ढोरी माता पर्व 2023 का शुभारंभ कर रहे हैं और इसके तहत नोवेना प्रार्थना भी शुरू कर रहे हैं. ढोरी माता के नाम पर हम झंडोत्तोलन कर रहे हैं. हम प्रार्थना करें कि ढोरी माता की ख्याती और उनके द्वारा आशीर्वाद ...दूर-दूर तक पहुँचे. जो लोग माता मरियम के नाम पर यहाँ आयेंगे उन्हें उनके पुत्र येसु का आशीर्वाद मिले. उनके मन, दिल और हृदय का परिवर्तन हो.वे बेहतर मानव बन सकें. और साथ ही साथ, इस क्षेत्र में जितने भी लोग हैं, दीन, दुःखी और गरीब तबके के लोग, जो कई प्रकार के दुःखों और पीड़ा में हैं सबों को माता मरियम शरण दे. उनका दुःख सुने और सबों को आराम दे, उनके दुखों को हटा दे और उनका जीवन सुन्दर, पवित्र और समृद्ध बन जाए. हम पूरे देश के लिए भी प्रार्थना करते हैं कि हम सब के सब मित्र भाव से एक-दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की महानता को बरकरार रखते हुए इस देश को हम उन्नति के शिखर की ओर ले चलें.” इसके बाद पवित्र मिस्सा का अनुष्ठान धर्माध्यक्ष आनंद जोजो ने पूरा किया.नौ दिनों तक आयोजित इस धार्मिक अनुष्ठान में प्रतिदिन संध्या 4 बजे नोवेना प्रार्थना इसके बाद मिस्सा पूजा का आयोजन किया जायेगा. 28 अक्टूबर को देर दोपहर तीन बजे शोभायात्रा यात्रा इसके बाद मिस्सा पूजा अनुष्ठान फादर विशु बेंजामिन आइंद खूंटी धर्मप्रांत के वीजी के द्वारा किया जायेगा. वहीं 29 अक्टूबर को सुबह दस बजे समारोही मिस्सा पूजा का आयोजन होगा. जिसके मुख्य याजक हजारीबाग धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष आनन्द जोजो होंगे.
ढोरी माता को कोयला खनिकों की संरक्षिका माना जाता है
ढोरी माता का कोयला खनिकों की संरक्षिका माना जाता है.उनकी प्रतिमा बेरमो कोयलांचल के जारंगडीह के ढोरी माता तीर्थालय में स्थापित है, जो मसीही धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र है. यही कारण है कि ढोरी माता के प्रति अगाध श्रद्धा के कारण प्रतिवर्ष अक्टूबर माह के अंतिम शनिवार एवं रविवार को होने वाले वार्षिकोत्सव में देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु यहां मन्नत मांगने जुटते हैं. सीसीएल कामगारों के लिए भी ढोरी माता रक्षा कवच हैं. यहां ईसाइयों के अलावा दूसरे संप्रदाय के लोग भी माथा टेकते हैं.
ढोरी खदान से निकली थी प्रतिमा
विगत 12 जून 1956 को एक हिंदू खनिक रूपा सतनामी के ढोरी खदान से कोयला काटने के क्रम में एक मूर्ति मिली थी, जो बाद में ढोरी माता के नाम से प्रसिद्ध हुई. वर्ष 1957 के अक्टूबर माह में फादर अल्बर्ट भराकन की अगुवाई में ढोरी माता की मूर्ति जारंगडीह स्थित संत अंथोनी गिरजाघर में रखी गई. फादर बेतरम हेबर्ट लॉट के नेतृत्व में उक्त मूर्ति को गिरजाघर से बाहर लाकर वर्ष 1964 में तीर्थालय में स्थापित किया गया.
वर्ष 2006 में मनाई गई स्वर्ण जयंती
वर्ष 1956 में ढोरी माता की मूर्ति मिलने के 25 वर्ष पूरे होने पर रजत जयंती वर्ष 1981 में मनायी गई थी.ढोरी माता की मूर्ति मिलने के 50 वर्ष पूरे होने पर वर्ष 2006 में स्वर्ण जयंती समारोह आयोजित किया गया. ढोरी माता की मूर्ति के बारे में पुरातत्वविदों का मत है कि उसकी बनावट भारतीय शैली की नहीं है और यह पुर्तगाली या फ्रांसीसी शैली से बनी है. वर्तमान में ढोरी माता का वार्षिकोत्सव भव्य रूप ले चुका है.
ढोरी माता तीर्थालय का इतिहास
*वर्ष 1965 में रांची धर्मप्रांत के पीयूष केरकेट्टा ने पहली बार ढोरी माता के पास विनती की एवं नोवेना प्रार्थना की रचना की.
* वर्ष 1969 के अप्रैल माह में प्रशांत महासागर के पश्चिमी सीमा स्थित द्वीप के अजिया शहर से एक धन्यवाद पत्र आया, जिसमें फादर ए फिलिप तारसियुल की ओर से ढोरी माता के बारे में जानकारी दी गई.
* वर्ष 1971 में डालटनगंज धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष जौर्ज सोपेन ने अपना पहला धर्माध्यक्षीय पवित्र मिस्सा बलिदान ढोरी माता को अर्पित किया था.
* वर्ष 1983 में ढोरी माता का भव्य एवं आकर्षक तीर्थालय भवन बनकर तैयार हुआ.
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