विशेष : शाम ढलते ही आबाद हो जाता है छत्रपति शिवाजी के सौर्य, पराक्रम की अमरगाथा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 26 नवंबर 2023

विशेष : शाम ढलते ही आबाद हो जाता है छत्रपति शिवाजी के सौर्य, पराक्रम की अमरगाथा

आस्था एवं मोक्ष की नगरी काशी इन दिनों छत्रपति शिवाजी के सौर्य, पराक्रम की अमरगाथा जानने-सुनने में तल्लीन है। जहां हर रोज काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के एम्पी थिएटर ग्राउंड में ऐतिहासिक महानाट्य समारोह जाणताराजा का महामंचन में पूर्वांचल के युवा, छात्र व राष्ट्रभक्त छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन चरित्र से रु-ब-रु हो रहे है, वहीं महानाट्य जाणता राजा (बुद्धिमान राजा) का मंचन शुरु होते ही एमपी थियेटर खेल मैदान जगमगाती बेहद आकर्षक लाइटें, अद्भुत साज-सज्जा, अद्वितीय सजीव चित्रण, घोड़ों की टक-टकाहट, तलवारों की टकराहट, उम्दा संवाद और 300 से अधिक कलाकारों के अद्भुत अभिनय के आगोश में समा जाता है। महाराजा शिवाजी महाराज के जीवन पर आधारित महानाट्य ‘जाणता राजा’ लोगों में हिन्दुत्व जागृत कर रहा है। कार्यक्रम के दौरान जय भवानी और जय शिवाजी का उद्घोष सुनकर हर हृदय में जोश, उमंग और देशभक्ति की भावना उमड़ रही है

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जाणता राजा महानाट्य के जरिए महानायक के चरित्र का वर्णन हो रहा है। वीर शिवाजी की जरूरत तब भी थी, आज भी है और भारत को हमेशा रहेगी। वीर शिवाजी के व्यक्तित्व से निर्मित युवा चेतना भारत को विश्व गुरु बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगी। मैकाले की शिक्षा व्यवस्था के कारण आज की पीढ़ी मानसिक गुलामी की तरफ बढ़ रही है, ऐसे में शिवाजी महाराज जैसा व्यक्तित्व ही युवाओं को प्रेरणा देकर एक भारत श्रेष्ठ भारत का निर्माण करते हुए आदर्श समाज की स्थापना करने में सहायक होगा। आज के आधुनिक जमाने में शिवाजी युग को जीवंत करना एक चुनौती से कम नहीं है। परंतु भव्य मंच, बेहतर लाइट साउंड और उत्तम संवाद के साथ भारी भरकम स्टार कास्ट ने छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन चरित्र को आंखों के सामने जीवंत कर दिया। जिस दिन युवा हाथ उठाना सीख जाएगा, वह स्वयं शिवाजी के व्यक्तित्व को पा जाएगा। आने वाले नए भारत के निर्माण की दिशा शिवाजी का व्यक्तित्व तय करेगा। शिवाजी के माता की तरह घर-घर प्रत्येक मां को अपने बच्चों में वीर शिवाजी जैसा व्यक्तित्व निर्मित करना होगा, जिससे भारत विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर हो। वर्तमान समय में हिंदू समाज को विधर्मियों से सतर्क रहकर अपना कर्म करना होगा और हिंदू है तो हिंदू का आचरण अपनाना होगा। माथे पर टिका, हाथों में कलेवा आदि पूर्व के संस्कार अपने होंगे। अपने साथ परिवार एवं समाज में भी हिंदू संस्कार पर विशेष ध्यान देना होगा। महंत शंकर गिरी जी महाराज ने उपस्थित हजारों लोगों से अपील किया कि एक रोटी कम खाएं लेकिन संस्कारवान बनें। 


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पांचवे दिन मुख्य अतिथि राज्यपाल श्रीमती आनन्दी बेन पटेल नाटक के दृश्यों को देखकर द्रवित और भाव विभोर हो गयी। उन्होंने ने पत्रकारों से कहा कि यह नाटक अद्वितीय एवं रोमांचकारी है तथा भारतीय मूल्यों को अपने में समेटे हुए जीवंत कर रखा है। उन्होंने सेवा भारती के प्रांत अध्यक्ष राहुल सिंह एवं आयोजन सचिव एवं अध्यक्ष अभय सिंह व प्रान्त प्रचारक रमेश जी को अयोजन की सफलता के लिए बधाई दी। बृंदावन से पधारे सन्त ऋतेश्वर जी ने कहा कि भारत भूमि भाग्यशाली हैं, जहां शिवाजी जैसे धर्म भीरु पैदा हुआ। उन्होंने कहा कि शिवाजी के जीवन का हर क्षण मानवीय मूल्यों को समर्पित है। उनके जीवन को तराशने वाली पिता से ज्यादा मां जीजाबाई की दृढ़ इच्छाशक्ति एवं संकल्प ने उन्हें शिवाजी से छत्रपति बना दिया। उन्होंने कहा कि आज लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति को विदा करने का समय आ चुका है और इसके लिए भारत अब मन से तैयार हो चुका है। इसलिए शिवाजी की प्रासंगिकता पहले से हजार गुना बढ़ गयी है। महानाट्यमन्चन सैकड़ों की संख्या में लगे कार्यकर्ताओं का कुशल क्षेम एवं हौसलों को बढ़ाते हुए प्रान्त प्रचारक रमेश जी ने कहा कि यह मंचन युवाओं में देश भक्ति की अलख जगा रहा है।


वीर शिवाजी के हुंकार से कांपे दुश्मन के कलेजे

शिवाजी ने हुंकार भरी, तलवारों ने झंकार करी।

दुश्मन के कलेजे कांप उठे, हर दिशा ने जय जयकार करी।।


मां जीजाबाई के मुगल शासन के खिलाफ बगावत करने के आवाह्न पर तरुण शिवाजी तुलजा भवानी की कसम खाकर तलवार उठाकर एलान करते हैं कि अब जिएंगे तो स्वतंत्र शेर की तरह और भगवान, स्वधर्म, देश एवं स्वराज को सोने के सिंहासन पर विराजमान करना है। स्वराज की मोहर अब आसमान पर लगेगी। छापामार युद्ध कर तोरणगढ़ किले पर भगवा फहराकर स्वतंत्रता की ज्योति जलाते हुए हिंदवी स्वराज की स्थापना करते हैं और 22 किलो कब्जे में लेकर एलान करते हैं कि तंजावर से पेशावर तक हिंदवी स्वराज की स्थापना होगी। सिंधु नदी के उद्गम स्थल से कावेरी नदी के तट तक हिंदवी स्वराज होगा।


प्रसंगों पर दर्शकों की खूब मिल रही वावाही

वैसे तो पूरा महानाट्य ही विशेष है और दर्शकों से इसे जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है। दर्शकों के बीच जाणता राजा महानाट्य के दो प्रसंग विशेष रूप से खासा लोकप्रिय हो रहे हैं। एक जिसमें शिवाजी बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान को मरते हैं और दूसरा जिसमें मराठा राजा मुगल सेना के सर्वोच्च कमांडर और औरंगजेब के चाचा शाइस्ता खान पर पुणे में उसके शिविर पर हमला करते हैं और उसे भागने पर मजबूर कर देते हैं।


महानाट्य में आदर्श शासक की झलक

मंचन के दौरान यह भी दर्शाया गया है कि जाति, समुदाय, धर्म और पंथ से ऊपर उठकर एक आदर्श शासन को अपनी प्रजा के लिए कैसा होना चाहिए। महिला के साथ बच्चों की करने पर अपने राज्य के पाटिल को सजा देना और  मोहिते मामा को गिरफ्तार करना। अधिकार का दुरुपयोग करने पर अपने प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर देना। शिवाजी महाराज के द्वारा स्थापित आदर्श शासन के तौर पर अनुशासन व न्याय प्रियता युवा समाज के लिए प्रेरणा का काम करेगी।


मेरे जीते जी कौन छू सकता है मेरे राजा को

शिवाजी महाराज के स्वराज में गुलामी बंद ऐलान से आदिल शाह की सल्तनत में घबराहट मच गई और अपने सैनिकों को बुलाकर शिवाजी को रोकने की रणनीति बनाते हुए अफजल खां को आगे बढ़ने का फरमान सुनाता है। आदिल शाह की फौज के आगे कई मराठा शासक घुटने टेक देते हैं और शिवाजी के खिलाफ युद्ध में शामिल होने की घोषणा कर देते हैं। लेकिन तान्हा जी जेधे द्वारा घर परिवार त्याग कर भी शिवाजी महाराज के लिए जीने मरने की बात स्वराज स्थापना की मजबूती को दर्शाता है। तान्हा जी जेधे द्वारा यह कहना कि मेरे जीते जी कौन छू सकता है मेरे राजा को, दर्शाता है कि हिंदवी स्वराज की स्थापना हेतु शिवाजी महाराज की तलवार को ऐसे वीर योद्धाओं का किस कदर समर्थन प्राप्त था। तान्हा जी जेधे के समर्थन के साथ 12 मावल के जवान वीर शिवाजी के साथ लड़ने के लिए तैयार खड़े होते हैं। हर हर हर महादेव के जयकारे के साथ एलान करते हैं कि मावल कि हथियारबंद भवानी आपकी सुरक्षा के लिए तैयार है।


मुझे कुंती जैसा सम्मान दिलाइए : जीजाबाई

आदिल शाह की तरफ से अफजल खान शिवाजी को गिरफ्तार करने हेतु विशाल सेना लेकर चढ़ाई करता है। शिवाजी महाराज के साथ बारह मावल की हथियार बंद सेना के साथ रणनीति बनाने के दौरान मां जीजाबाई द्वारा यह कहना कि इसी अफजल खान ने तुम्हारी बड़ी भाभी को विधवा बनाया था। लड़िए और मुझे कुंती जैसा सम्मान दिलाइए, कहकर शिवाजी को विदा करती हैं। फिर शिवाजी अफजल खान के साथ भेंट के दौरान छल कपट की आशंका होने पर उसे शेर जैसे स्टील के पंजों से फाड़कर मार देते हैं।


इंसानों की संवेदनाएं मरती हैं तो बचती हैं सिर्फ जिंदा लाशें

बाजी घोरपड़े द्वारा शिवाजी को यह सलाह देना कि स्वराज स्थापना की बात छोड़कर सुल्तान के आगे घुटने टेक दो और सुल्तान का खाना उसी पर गुर्राना, ठीक नहीं है। शिवाजी द्वारा यह कहना कि अपने देश में स्वराज निर्माण करना क्या अपमान है। इंसानों की संवेदनाएं जब मर जाती हैं तो बच जाती है सिर्फ जिंदा लाशें।


स्वराज चाहिए या सुहाग

बाजी घोरपड़े द्वारा शिवाजी के पिता शाह जी महाराज को गिरफ्तार कर लिया जाता है और जीजाबाई को संदेश भेजा जाता है कि स्वराज चाहिए या सुहाग? तब शिवाजी महाराज स्वराज और पिता दोनों को बचाने हेतु चिंता में पड़ जाते हैं। इस समय उनकी पत्नी सलाह देती है कि स्वराज और पिता दोनों तीर्थ के समान है। दोनों को बचाइए। दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है। फिर शिवाजी छापामार युद्ध कर पिता और स्वराज दोनों को सुरक्षित कर लेते हैं और एक के बाद एक 22 किले कब्जे में करते हुए हिंदवी स्वराज को पूरे देश में स्थापित करने की बात करते हैं।


राज्याभिषेक से हर कोई रोमांचित

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वाराणसी के वेद मूर्ति विद्वान पंडित गागा भट्ट द्वारा छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक कराने के दृश्य की भव्यता एवं सौंदर्यता ने उपस्थित दर्शकों को भाव विभोर कर दिया। हर कोई जय भवानी जय शिवाजी हर हर महादेव के जयकारे लगाते हुए उसे पल को हमेशा के लिए अपनी आंखों में कैद कर लेना चाह रहा था। कई दशकों के तो आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे और बुजुर्ग, युवा, महिला, बालक हर कोई शिवाजी महाराज के छत्रपति छवि को अपने दिल में हमेशा के लिए बसाकर वीर शिवाजी जैसा व्यक्तित्व समाज में खड़ा करने के लिए प्रतिज्ञाशिल दिखे। हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के साथ ही शिवाजी महाराज लगातार 84 बंदरगाह और 25 जल दुर्ग जीतने के साथ ही अपने सिंधु नदी के उद्गम से लेकर कावेरी नदी के तट तक स्वराज्य की स्थापना की। अपनी प्रतिज्ञा को साकार करने हेतु अनगिनत विजय का परचम दर्ज करते हुए कोंकण दुर्ग को भी जीत लिया। कोंकण के सैनिकों को लेकर थल सेना का निर्माण  किया और छत्रपति शिवाजी महाराज ने “स्वराज्य में गुलामी बंद“, का ऐलान कर दिया। स्वराज्य में गुलामी बंद के ऐलान से शहंशाह आदिलशाह थरथरा उठा और अपने सिपाह सलारों को बुलाकर शिवाजी भोंसले को गिरफ्तार करने का आदेश देता है। अफजल खां खुद को आगे करते हुए कहता है कि शिवाजी को जिंदा या मुर्दा आपके दरबार में पेश करूंगा। अफजल खां की शिवाजी से भेंट के दौरान यह कहना कि सब कुछ छोड़कर शहंशाह के कदमों में झुक जाओ तो तुम्हारी जान बच जाएगी। महानाट्यमन्चन को एक मोड़ देता है। “डरो तो प्रभु रामचंद्र से डरो“, शिवाजी महाराज ने भेंट के दौरान अफजल खां की पीठ में छुरा भोकने की नापाक मंशा को भांपकर उसे ही हमेशा के लिए सुला दिया और अपने हिंदवी स्वराज्य के स्थापना के रथ को आगे बढ़ाया और उसे गति दी। हंसते खेलते मराठा लोगों पर अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने आक्रमण कर उनके जीवन को नर्क बना दिया और लूटपाट के साथ ही बहन बेटियों के साथ बदसलूकी करने लगे। जुल्मी सुल्तान के फरमान को सेना ने मानकर हिंदू बस्तियों में कोहराम मचा दिया और मारकाट शुरु कर दिया। यहां नाटक   में भयानक दृश्य दिखाई देता है। उसने मुल्क को श्मशान में तब्दील कर दिया। चारों तरफ अंधेरा छा गया और इस प्रकार कहर बरपाते हुए गुलामी की चादर ने हंसते खेलते मराठा लोगों के जीवन पर अमावस्या की रात की तरह डेरा डाल दिया।





Suresh-gandhi


सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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