“विविधता में एकता” की अनन्य समृद्ध संस्कृति भारत वर्ष को विरासत में मिली है। इस संस्कृति की जड़ें “वसुधैव कुटुम्बकम्” के अटूट सिद्धांत से जुडी हुई हैं। या यूं कहे संपूर्ण ब्रह्मांड एक परिवार है। 1947 में आजादी के समय यह भारत वर्ष जो 562 से अधिक रियासतों में विभाजित था उसे स्वतंत्र भारत के पहले उप प्रधान मंत्री एवं भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने दृढ़ निश्चय के साथ आज के एकीकृत भारत में तब्दील कर दिया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एवं स्वतंत्रता के बाद भी जिस दूरदर्शिता और राजकीय कौशल्य के साथ सरदार पटेल ने हमारा नेतृत्व किया उसके लिये सभी भारतीय उनके प्रति सदैव ऋणी रहेंगे। उनका समग्र जीवन वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का एक अनंत स्रोत है। सरदार पटेल का ऋण स्मरण करते हुए विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा के रूप में उनके स्मारक का निर्माण कर; उनकी 143वीं जन्मजयंती पर स्टैच्यू ओफ यूनिटी को राष्ट्र को समर्पित किया गया। तकरीबन 2989 करोड़ में विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा बनकर तैयार हुई जहां पर अब तक 1.53 करोड़ पर्यटक आ चुके हैं. इस प्रतिमा के बाद स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए साथ ही गुजरात और देश के पर्यटकों को एक नया पर्यटन स्थल भी मिलाराष्ट्रीय, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक एवं शैक्षणिक मूल्यों का प्रतीक है, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी। आदिवासी क्षेत्र में निर्माण किया गया यह स्टैच्यू संपूर्ण विस्तार को विकास की दिशा में ले कर जाएगा। यह एक ऐसा पर्यटन स्थल बन चुका है जो शिक्षा, अनुसंधान, सांस्कृतिक, पर्यावरण संवर्धन और स्वास्थ्य संवर्धन का बुनियादी ढाँचा मुहैया कराता है। एकता नगर में आने वालों को सिर्फ इस भव्य प्रतिमा के ही दर्शन नहीं होते, बल्कि उसे सरदार साहब के जीवन, त्याग और एक भारत के निर्माण में उनके योगदान की झलक भी मिलती है. इस प्रतिमा की निर्माण गाथा में ही ’एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की भावना का प्रतिबिंब है. आज एकता नगर की पहचान ग्लोबल ग्रीन सिटी के तौर पर हो रही है. यही वो शहर है जहां से दुनिया भर के देशों का ध्यान खींचने वाले मिशन लाइफ की शुरुआत हुई थी. यहां का एकता मॉल, एकता नर्सरी, आरोग्य वन, जंगल सफारी आदि पर्यटकों को बहुत आकर्षित कर रहे हैं. पिछले 6 महीने में ही यहां 1.50 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए गए हैं. बता दें, हर साल 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती मनायी जाती है। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने एकजुट भारत के दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए 550 से अधिक रियासतों को भारत संघ में मिलाया था. इस कारण से उनकी जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मनाया जाता है. पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार ने साल 2014 में सरदार वल्लभभाई पटेल को श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से उनकी जयंती पर राष्ट्रीय एकता दिवस की शुरुआत की थी. इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने भारत के लौह पुरुष सरदार पटेल की सबसे बड़ी प्रतिमा बनाने का सपना देखा था. गुजरात के सीएम रहते हुए साल 2013 में उन्होंने इसका शिलान्यास किया था और प्रधानमंत्री बनने के बाद साल 2018 में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का उद्घाटन किया था. स्टैच्यू ऑफ यूनिटी दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है, जिसकी ऊंचाई 182 मीटर है. तकरीबन 2989 करोड़ से तैयार हुए पीएम मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को आज 5 साल हो पूरे चुके हैं. केवड़िया में आज स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को बने हुए पांच साल पूरे हो गए हैं. पीएम मोदी ने सरदार पटेल को समर्पित स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का उद्घाटन 31 अक्टूबर, 2018 को किया था. यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है, जिसकी ऊंचाई 182 मीटर है. 1875 में गुजरात में जन्मे सरदार वल्लभभाई पटेल एक वकील थे. वे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक प्रमुख कांग्रेस नेता और महात्मा गांधी के सहयोगी के रूप में उभरे. वे स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री बने. उन्हें सैकड़ों रियासतों को सरकार में मिलाने का श्रेय दिया जाता है. इस बीच यहां लाखों पर्यटक घूमने के लिए आए. अब तक करोड़ों पर्यटकों को आकर्षित कर चुका है.
लाखों पर्यटक हर साल पहुंचते हैं
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी आज भारत में एक बेहतरीन पर्यटन स्थल बन चुका है. भारत से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग इसे देखने के लिए गुजरात में आते हैं. ये स्टैच्यू विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वतमाला के बीच स्थित है, जो गुजरात में प्रसिद्ध सरदार सरोवर बांध से लगभग 3.5 किमी नीचे की ओर, नर्मदा नदी में साधु-बेट द्वीप पर है. साल 2018 में इस पर्यटन स्थल को देखने के लिए 4.53 लाख पर्यटक गुजरात पहुंचे थे. वहीं साल 2019 मे 27.45 लाख, साल 2020 में 12.81 लाख, साल 2021 में 34.29 लाख, साल 2022 में 41.32 लाख और साल 2023 में 31.92 लाख पर्यटक इसे देखने के लिए पहुंचे.
कब कितने पर्यटक आए?
साल 2018 मे 4.53 लाख
साल 2019 मे 27.45 लाख
साल 2020 मे 12.81 लाख
साल 2021 मे 34.29 लाख
साल 2022 मे 41.32 लाख
साल 202 मे 12.81 लाख
साल 2021 मे 34.29 लाख
साल 2022 मे 41.32 लाख
साल 2023 मे 31.92 लाख
कैसे पहुंचे
अगर आप भी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को देखना चाहते हैं तो इसके लिए आपको पहले बड़ोदरा पहुंचना होगा, ये सबसे निकटतम जगह है. आप हवाई मार्ग, सड़क मार्ग या रेल मार्ग किसी से भी आसानी से बड़ोदरा पहुंच सकते हैं. यहां से आपको सड़क मार्ग से केवड़यि (अब एकता नगर) पहुंचना होगा. एकता नगर पहुंचने के बाद आपको साधु आइलैंड तक आना होगा. यहां से साधु आइलैंड तक 3.5 किमी तक लंबा राजमार्ग भी बनाया गया है. इसके बाद मेन रोड से स्टैच्यू तक 320 मीटर लंबा ब्रिज लिंक भी बना हुआ है. पर्यटन स्थल खुलने का समय सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक है. सोमवार के दिन ये बंद रहता है. इसके आसपास भी घूमने की तमाम जगहें हैं, जिनका आपभरपूर आनंद ले सकते हैं.
सरदार पटेल का जीवन सफर
31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 148वीं जयंती है। वे भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री थे। जब देश आजाद हुआ तब यहां छोटी-बड़ी कुल 565 से ज्यादा रियासतें थीं। सबसे बड़ी चुनौती इन्हें एक करना था। इसमें सरदार पटेल की सबसे बड़ी भूमिका थी। पटेल इन सभी रियासतों को जोड़कर भारत के अधीन ले आए। उन्होंने ऐसा तब किया जब इनमें से कई रियासतें भारतीय संघ में शामिल नहीं होना चाहती थीं। उनकी जयंती को हर साल एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। आखिर सरदार पटेल ने ऐसा कौन सा तरीका अपनाया जिससे वे ऐसा कर पाए। पूरे भारत को एकता के सूत्र में बांधने के लिए उन्होंने कौन सी बुद्धि और अनुभव का इस्तेमाल किया। पटेल की सूझबूझ से सभी रियासतें भारत में मिल गईं। सबसे खास बात ये रही कि इसमें कोई खून खराबा नहीं हुआ।बचपन में कठिनाईयों का करना पड़ा सामना
सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में एक किसान परिवार में हुआ था। वे पढ़ने में बचपन से ही तेज थे, लेकिन उन्हें पढ़ाई के दौरान अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। 18 साल की उम्र में झावेर बा से उनका विवाह हो गया। जुलाई 1910 में वे इंग्लैंड गए और वहां कानून की पढ़ाई करने लगे। लंदन में बैरिस्टर की पढ़ाई करने के बाद 1913 में अहमदाबाद आकर उन्होंने वकालत शुरू की। वे जल्द ही देश के बड़े वकील बन गए। वे गांधीजी के विचारों से बहुत प्रभावित थे। गांधीजी से उनकी मुलाकात अक्टूबर 1917 में हुई, जिसके बाद वे आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। पटेल ने रियासतों को तीन बातों (रक्षा, विदेश मामले और संचार) के लिए राजी कर लिया। रक्षा मामलों में जल, थल और वायुसेना शामिल थी। इसका मतलब था कि अगर भविष्य में किसी भी रियासत पर किसी दूसरे देश या किसी आतंकी संगठन का हमला होता तो वहां भारतीय डिफेंस फोर्सेज को तैनात किया जाता। विदेश मामलों में किसी दूसरे देश के साथ कोई संधि, किसी अपराधी का प्रत्यर्पण, समर्पण या बाहर रह रहे भारतीयों की नागरिकता से जुड़ी बातें थीं।
कैसे मिली सरदार और लौह पुरुष की उपाधि
आजादी के आंदोलन में पटेल का बड़ा योगदान था। इसमें सबसे पहला और बड़ा 1918 में खेड़ा आंदोलन का योगदान था। गांधीजी की अहिंसा की नीति से प्रभावित होकर वे आजादी के आंदोलनों में भाग लेने लगे। 1928 में बारदोली सत्याग्रह आंदोलन सफल होने के बाद उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि दी गई। महात्मा गांधी ने उनके साहस और व्यक्तित्व को देखकर लौह पुरुष की उपाधि दी थी। आजादी के बाद देश के संविधान निर्माण में भी उनकी बड़ी भूमिका थी। वे संविधान सभा के वरिष्ठ सदस्य थे।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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