सुहाग का चांद, सुहागिनों के अरमानों, उनकी मन्नतों का चांद। ये प्रतीक है, प्यार का, समर्पण का और इसके साथ खुशहाल जिंदगी की कामना का। तभी तो इतनी बेसब्री से इंतजार रहता है इस चांद का। पूरे श्रृंगार में सुहागिनें मां पार्वती और शिव के साथ चांद की पूजा कर मांगती हैं सुहाग की सलामती व खुशियों का वरदान। करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है. उस दिन कार्तिक संकष्टी चतुर्थी होती है, जिसे वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी कहते हैं. इस बार 31 अक्टूबर दिन मंगलवार को रात 09 बजकर 30 मिनट से प्रारंभ हो रही है. यह तिथि 01 नवंबर बुधवार को रात 09 बजकर 19 मिनट पर खत्म होगी. उदयातिथि और चतुर्थी के चंद्रोदय के आधार पर करवा चौथ व्रत 1 नवंबर बुधवार को रखा जाएगा. इस दिन व्रती को 13 घंटे 42 मिनट तक निर्जला व्रत रखेंगी। सुबह 06 बजकर 33 मिनट से रात 08 बजकर 15 मिनट तक होगा. जो महिलाएं 01 नवंबर बुधवार को करवा चौथ का व्रत रखेंगी, उनको शाम में पूजा के लिए 1 घंटा 18 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा. करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 36 मिनट से शाम 06 बजकर 54 मिनट तक है.इस बार का करवा चौथ सुहागिन बेहद खास है। 100 साल बाद चंद्रमा में मंगल और बुध एक साथ विराजमान है। जिस कारण बुध आदित्य योग बन रहा है। इसके अलावा करवा चौथ के दिन शिवयोग या शिव वास और सर्वार्थ योग भी बन रहा है। जो महिलाएं इस दिन व्रत रखकर चन्द्रमा को अर्घ्य देंगी उनकी मनोकामनाएं जरूर पूरी होंगी। साथ ही वैवाहिक जीवन में सुख बना रहेगा। मान्यता है कि करवा चौथ के दिन मां गौरी और भगवान शिव के साथ गणेश भगवान का भी आशीर्वाद प्राप्त होता हैन भूख की फिक्र और न प्यास की। व्रत में सोलह श्रृंगार कर छत पर जाना और छलनी के जरिए चांद के साथ ‘उनका‘ दीदार, लंबी उम्र की की कामना, थाल में पूजा के सामान के संग रिश्तों को भी संजोना यह क्रम है इस पर्व का। वाकई भावनाओं में पगा समर्पण और प्यार का पर्व है करवा चौथ. कभी करवाचौथ पत्नी की, पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था, लेकिन आज यह पति-पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की ऊष्मा से दमक और महक रहा है। आधुनिक होते दौर में हमने अपनी परंपरा तो नहीं छोड़ी है, अब इसमें ज्यादा संवेदनशीलता, समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। दोनों के बीच अहसास का घेरा मजबूत होता है, जो रिश्तों को सुरक्षित करता है। दांपत्य की बेहद खूबसूरत ओर भीनी-भीनी खुशबू के अहसास से भरा होता है यह त्योहार। सच पूछिए चांद का इंतजार करता यह त्योहार दरअसल दांपत्य प्रेम की चांदनी से धवल है जो मन को उद्धेलित कर देता है। इसी जगह आकर अपनी संस्कृति, अपनी माटी, सबसे अलग नजर आती है। यहां रिश्ते, समझौते और कागजी दस्तखतों से अलग पारदर्शी, निर्मल और प्रकृति के बेहद करीब दिखते है। दांपत्य प्रेम के प्रतिक ये त्योहार ही रिश्ते की डोर अटूट बनाते है। ये बताते है कि रिश्तों में मधुरता के लिए अपने स्तर पर त्याग, तप और प्रयास करने होते हैं।
सरगी
‘सरगी‘ पंजाब, हरियाणा की करवा चौथ पूजा का विशेष पक्ष है। यहां करवा चौथ की पूजा में उत्सव धर्मी पक्ष अधिक है। सास नई बहू को सुबह-सुबह दूध फेनी, सेवई खाने को और सारी श्रृंगार की वस्तुएं साड़ी, जेवर आदि करवा चौथ पर देती है। नारियल का पानी भी, जिससे उसे दिन भर प्यास न लगे। हरियाणा में बहू की पहली करवा चौथ मायके में होती है और सरगी का सामान ससुराल से आता है। पूजा के बाद का ‘बायना‘ (भेंट) ससुराल जाता है। इस बायने में और करवा चौथ मइया को लगने वाले नैवेद्य में भी प्रांत भेद हैं। मालवा में 13 ‘खाजे‘ चढ़ाने के लिए बनते हैं। खाजे मैदा से बनी मीठी पूड़ी होती है और इन्हीं का बायना निकाला जाता है। वहीं राजस्थान में करवा चौथ के दिन रमास, चावल, लपसी और मीठा दलिया बनता है। शायद रमास कार्तिक में आते हैं, नवान्न हैं इसलिए भी इसका भोग लगाया जाता है। इसके अलावा चौथ मइया को चावल व लपसी का भोग लगता है। उत्तर भारत में पूड़ी, हलवा और गुलगुले नैवेद्य भी हैं और बायना भी। मध्यप्रदेश में भी यही है लेकिन बहुत-सी जगह सिर्फ गुलगुले ही रहते हैं। उत्तर भारत में खत्रियों और उनके ब्राह्मण पुरोहितों में करवा चौथ की पूजा अन्य समुदायों से काफी भिन्न हैं। यहां पर बायने में बनाए जाने वाली मठरी और गुलगुलों में से एक मठरी और एक गुलगुले को बीच में से छेदवाला बनाते हैं। अर्घ्य देने वाली महिलाएं सीधे चंद्रमा को नहीं देखती। सबसे पहले दीपक छलनी से, फिर अपनी साड़ी के पल्लू से उसके बाद मठरी और गुलगुले के छेद में से चंद्रमा के दर्शन करती हैं। इसके बाद प्रत्यक्ष दर्शन कर चंद्र को देती हैं ताकि चंद्र को नजर न लगे। करवा चौथ का अर्घ्य उगते चंद्रमा को ही दिया जाता है। कुछ स्थानों पर चार-पांच बार कुछ में सात बार, घूम-घूमकर दीये पर रखे काले तिल और जौ डालते हुए यह कह कर अर्घ्य देते हैं।
करवे बदलने की रीत
ननद भावज, देवरानी-जेठानी, आस-पड़ोस की महिलाओं के साथ आंचल से ढंककर करवे बदलती हैं। क्रम ऐसा रखा जाता है कि अपना करवा अपने ही पास आता है। इससे प्रेम और सौहार्द्र की भावना प्रबल होती है और एक-दूसरे के मध्य रिश्तों की डोर और मजबूत होती है। फिर इस तरह के गीत गाती हैं- ‘बींझा बेटी करवा ले, सात भाइयों की बहन करवा ले पीहर पूरी करवा ले, अध बर खानी करवा ले, सदा सुहागिन करवा ले‘। बस यूं ही हंसी-खुशी के साथ चांद की उपस्थिति और उसके आशीर्वाद से फलता-फूलता है यह व्रत...।
करवा चौथ की मेहंदी
इस दिन मेहंदी लगवाने का जबरदस्त जोश होता है। किसी भी तरह रात के सारे कामकाज जल्दी पूरे कर मेहंदी लगवाने की होड़ होती है। मेहंदी न हुई, स्टेटस सिंबल हो गया। करवाचौथ के दिन अगर किसी स्त्री के हाथ मेहंदी से नहीं रंगे तो अधूरापन ही समझा जाता है। यही वजह है कि इस दिन पार्लरों में मेला-सा माहौल होता है। हर उम्र की स्त्रियां यहां-वहां चौकियों, कुर्सियों पर बैठी मेहंदी लगवाती देखी जा सकती है। एक तरह से करवा-चौथ पर मेहंदी लगवाना नियम-सा बन गया है। मेहंदी नहीं लगाई तो मानो व्रत ही पूरा न होगा। हर उम्र की स्त्रियां बड़ी उमंग के साथ अपनी हथेलियों को रंगवा कर उन रंगों पर इतराती हैं और फिर किसकी मेहंदी कितनी रची, इस बात की होड़ में लग जाती हैं। मेहंदी रचाने के लिए न जाने कितने सारे जतन कर लिए जाते हैं।
पूजन सामाग्री
करवा चौथ की पूजा में जल से भरा मिट्टी का टोंटीदार कुल्हड़ यानी करवा, उपर दीपक पर रखी विशेष वस्तुएं, श्रृंगार की सभी वस्तुएं जरुरी होती है। पूजा की थाली में रोली, चावल, धूप, दीप, फूल के साथ दूब अवश्य रहती है। शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय की मिट्टी की मूर्तियों को भी पाट पर दूब में बिठाते हैं। बालू या सफेद मिट्टी की बेदी बनाकर भी सभी देवताओं को विराजित करने का विधान है। अब तो घरों में चांदी के शिव-पार्वती पूजा के लिए रख लिए जाते हैं।
उपहार
दाम्पत्य के सूत्र को और गहरे से जोड़ते हैं हमारे व्रत व त्योहार और उसमें भी फिर करवा चौथ जैसा पर्व हो तो क्या बात है। अपने पति के दीघार्यु के लिए मंगलकामना करती हुई पत्नी जहां बेहद आस्था और प्रेम के साथ उसके लिए निर्जला उपवास रखती है वहीं पति भी अपनी पत्नी को उसकी खुशी जताने के लिए कुछ न कुछ उपहार जरुर देते है। इसलिए आजकल चांद की पूजा के बाद पति से मिलने वाले सरप्राइज गिफ्ट का भी इंतजार रहता है। हालांकि इसे भी पर्व की एक प्रतीकात्मक रस्म समझकर स्वीकारना चाहिए, क्योंकि तोहफे भी एक-दुसरे को जोड़कर रखने, खुशी देने में महती भूमिका निभाते है।
महत्वपूर्ण मंत्र
ऊँ नमो आनंदिनी श्री वर्धिनी गौर्ये नमः, ऊँ श्री सर्वसौभाग्यदायिनी सर्वम् पूरण श्री ऊँ नमः, त्रिचक्रे त्रिरेखं सुरेखे उज्जवले नमः व ऊँ नमो अष्टभाग्यप्रदे धात्रिदैव्ये नमः। ये चार ऐसे है महामंत्र है, जो इस बार करवा चौथ पर जाप करने से व्रती महिलाओं के पति न सिर्फ तरक्की के राह पर होंगे बल्कि विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्त व लंबी आयु भी पा सकेंगे और रोजी-रोजगार, नौकरी, सुरक्षा सहित धन-यश आदि से भी होंगे मालामाल।
पूजा का विधि-विधान
‘मम सुख सौभाग्य पुत्रपोत्रादिसुस्थिर श्रीप्राप्तये करकचतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’ पूजन से पहले पीली मिट्टी की गौरी भी बनायी जाती है। फिर एक पट्टे पर जलसे भरा लोटा एवं एक करवे में गेहूं भरकर रखते हैं। कुछ स्त्रियां परस्पर चीनी या मिट्टी का करवा आदान प्रदान करती हैं। लोकाचार में कई स्त्रियां काली चिकनी मिट्टी के कच्चे करवे में चीनी की चासनी बनाकर डाल देती हैं अथवा आटे को घी में सेंककर चीनी मिलाकर लड्डू आदि बनाती हैं। पूरी-पुआ और विभिन्न प्रकार के पकवान भी इस दिन बनाए जाते हैं। नव विवाहिताएं विवाह के पहले वर्ष से ही यह व्रत प्रारंभ करती हैं। चौथ का व्रत चौथ से ही प्रारंभ कराया जाता है। इसके बाद ही अन्य महीनों के व्रत करने की परम्परा है। नैवेद्य (भोग) में से कुछ पकवान ब्राह्मणों को दक्षिणा सहित दान करें तथा अपनी सासू मां को 13 लड्डू, एक लोटा, एक वस्त्र, कुछ पैसे रखकर एक करवा चरण छूकर दे दें। करवा तथा पानी का लोटा रोली पाटे पर रखती हैं और कहानी सुनकर करवा अपनी सास के पैरों में अर्पित करती हैं। सास न हो तो मंदिर में चढ़ाती हैं। 13 जगह सीरा पूड़ी रखकर हाथ फेरें। सभी पर रुपया भी रखें। रुपया अपनी सास को दे दें। 13 सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराने के बीच दे दें। दीवार पर या कागज पर चन्द्रमा उसके नीचे शिव-पार्वती तथा कार्तिकेय की चित्रावली बनाकर पूजा की जाती है। कथा सुनते हैं। पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री जैसे- कंघी, शीशा, सिंदूर, चूड़ियां, रिबन व रुपया रखकर दान करना चाहिए तथा सास के पांव छूकर फल, मेवा व सुहाग की सारी सामग्री उन्हें देनी चाहिए।
करवा चौथ पर न भूलें ये 16 चीजें
सुहागन स्त्रियों के लिए 16 चीजें करना जरूरी मानी गई हैं। माना जाता है कि ये 16 चीजें किसी भी स्त्री के सुहाग का प्रतीक होती हैं और जो स्त्री करवा चौथ के दिन ये 16 काम करती हैं, उनके पति की उम्र लंबी होती है और परस्पर प्रेम बढ़ता है।
बिंदी - सुहागिन स्त्रियों को कुमकुम या सिंदूर से अपने माथे पर लाल बिंदी जरूर लगाना चाहिए। इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
कंगन और चूड़ियां- हिन्दू परिवारों में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि सास अपनी बडी बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुखी और सौभाग्यवती बने रहने के आशीर्वाद के साथ वही कंगन देती है, जो पहली बार ससुराल आने पर उसकी सास ने उसे दिए थे। पारंपरिक रूप से ऐसा माना जाता है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूड़ियों से भरी रहनी चाहिए।
सिंदूर - सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। सात फेरों के बाद जब दूल्हा-दुल्हन की मांग भरता है तो इसका मतलब होता है कि वह उसका साथ जीवन भर निभाएगा। इसलिए विवाह के बाद स्त्री को अपने पति की लंबी उम्र की कामना के साथ रोज मांग भरना चाहिए।
काजल - काजल आंखों का श्रृंगार है। इससे आंखों की सुंदरता तो बढ़ती ही है। साथ ही काजल की बुरी नजर से भी बचाता है। इसे भी धर्म ग्रंथों में सौभाग्य का प्रतीक माना गया है।
मेहंदी- मेहंदी के बिना सिंगार अधूरा माना जाता है। इसलिए त्योहार पर परिवार की सुहागिन स्त्रियां अपने हाथों और पैरों में मेहंदी रचाती है। इसे सौभाग्य का शुभ प्रतीक तो माना ही जाता है। साथ ही, मेहंदी लगाना त्वचा के लिए भी अच्छा होता है
लाल कपड़े- शादी के समय दुल्हन को सुसज्जित शादी का लाल जोड़ा पहनाना शुभ माना जाता है। शादी के बाद भी कोई त्योहार हो या कोई भी शुभ काम हो और घर की स्त्रियां लाल रंग के कपड़े पहने तो बहुत शुभ माना जाता है।
गजरा- यदि कोई सुहागन स्त्री रोज सुबह नहाकर सुगंधित फूलों का गजरा लगाकर भगवान की पूजा करती है तो बहुत शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास होता है।
मांग टीका- मांग के बीचों बीच पहना जाने वाला यह स्वर्ण आभूषण सिंदूर के साथ मिलकर स्त्री की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। इसे भी सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है
नथ या कांटा- शादी के बाद यदि कोई स्त्री नाक में नथ या कांटा नहीं पहनती तो उसे अच्छा नहीं माना जाता है, क्योंकि इसे भी सौभाग्य से जोड़ कर देखा जाता है।
कान के गहने - कान में पहने जाने वाले आभूषण कई तरह की सुंदर आकृतियों में आते हैं। विवाहित स्त्री के लिए इसे शुभता का प्रतीक माना जाता है। साथ ही, कान छेदन से कई बीमारियां भी दूर रहती हैं।
हार- गले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनबद्धता का प्रतीक माना जाता है। शादी के समय वधू के गले में वर गलसूत्र (काले रंग की बारीक मोतियों का हार जो सोने की चेन में गुंथा होता है) पहनाने की रस्म निभाता है। इसी से उसके विवाहित होने का संकेत मिलता है। इसलिए गले में हार या मंगलसूत्र पहनना शुभ माना जाता है
बाजूबंद - कड़े के समान आकृति वाला यह आभूषण सोने या चांदी का होता है। यह बांहों में पूरी तरह कसा रहता है, इसी कारण इसे बाजूबंद कहा जाता है। किसी भी त्योहार या धार्मिक आयोजन पर सुहागन स्त्रियों का इसे पहनना शुभ माना जाता है।
अंगूठी - शादी के पहले सगाई की रस्म में वर-वधू एक-दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं। यह बहुत प्राचीन परंपरा है। अंगूठी को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है। शादी के बाद भी स्त्री का इसे पहने रहना शुभता का प्रतीक माना जाता है।
कमरबंद - कमर में पहना जाने वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद पहनती है। इससे उनकी छरहरी काया और भी आकर्षक दिखाई देती है। कमरबंद इस बात का प्रतीक कि स्त्री अपने घर की स्वामिनी है। किसी भी शुभ अवसर पर यदि घर की स्त्री कमरबंद पहने तो उसे लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है।
बिछुआ - पैरों के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को अरसी या अंगूठा कहा जाता है। इस आभूषण के अलावा स्त्रियां छोटी उंगली को छोड़कर तीनों उंगलियों में बिछुआ पहनती है। बिछुआ स्त्री के सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
पायल- पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण के घुंघरुओं की सुमधुर ध्वनि को बहुत शुभ माना जाता है। हर सौभाग्यवती स्त्री को पैरों में पायल जरूर पहनना चाहिए।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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