भोपाल। सर्द मौसम में कवियों ने अपनी रचनाएं सुनाकर वातावरण को गुनगुना कर दिया। अवसर था निर्भया साहित्यिक सामाजिक एवं महिला कल्याण संस्थान की काव्य गोष्ठी का। बाहर जब शीतल पवन लोगों को ठिठुरा रही थी, तब कटारा हिल्स, बर्रई स्थित गौरीशंकर कौशल आवासीय परिसर गीत, कविता और शायरी से गूंज रहा था। मॉ वीणापाणी की सुमधुर वंदना से कवयित्री प्रमिला ‘‘मीता’’ ने काव्यगोष्ठी का शुभारंभ किया। फिर प्रतिभा जी ने पढ़ा:-‘‘सर्द सर्द मौसम के ठिठुरे से गात, नीरवता ओढ़कर बैठी है रात’’ गौरव गर्वित ने पढ़ा:- ‘‘पहाड़ों से निकलकर गाँव में अपने नदी आई, हजारों गम को पीछे छोड़ दामन में खुशी आई’’ अशोक व्यग्र ने सुनाया:- ‘‘प्रेम प्रणत है, प्रेम प्रणेता, प्रेम प्रकृति का प्राण है, प्रेम प्रणव है, प्रेम प्राणप्रद, प्रेम प्राण परित्राण है।’’ इस अवसर पर उपस्थित साहित्यकार प्रियंका श्रीवास्तव, कृष्णदेव जी, अशोक निर्मल और कमलेश नूर ने काव्य गोष्ठी को नई ऊंचाई प्रदान की। प्रेमचंद प्रेम ने अपना दर्द कुछ यूं बयां किया:-‘‘कभी जज़्बात के आँसू, कभी हालात के आँसू, मेरी आँखों में रहते हैं तेरी सौगात के आँसू।’’ प्रमिला मीता ने सामाजिक हालात पर कहा:-‘‘रिश्तों के अनुबंधों में है, मात पिता का बँटवारा, छः छः महिने बाँट लिए हैं, अब कैसे करें गुजारा’’ कवि जितेन्द्र श्री की रचना का शब्द शिल्प देखिएः-‘‘लोग दुख दर्द में रंग अपना बदलते क्यों हैं, इतनी खुदगर्जी है तो दोस्ती करते क्यों हैं।’’
गुरुवार, 30 नवंबर 2023
भोपाल : ‘‘सर्द-सर्द मौसम के ठिठुरे से गात.....नीरवता ओढ़ कर बैठी है रात’’
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