- डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने की अन्नकूट की प्रसादी ग्रहण की, गिरिराज को लगाए 56 भोग में तीन प्रकार की खीर और एक दर्जन से अधिक प्रकार की मिठाईयों और औषधीय पकवान
आरती के पश्चात श्रद्धालुओं को अन्नकूट की प्रसादी के साथ भोजन का वितरण
भगवान की पूजन के पश्चात विभिन्न मिश्रित सब्जियों, पूड़ी, कढ़ी, खीर, सेवा-नुक्ती आदि भोजन के अलावा प्रसादी का वितरण किया गया। इस भव्य अन्नकूट उत्सव में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की। अन्नकूट महोत्सव में देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालुओं ने गिरिराज के दर्शन किए। इस मौके पर भागवत भूषण पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि श्री कृष्ण को अन्नकूट का प्रसाद चढ़ाएंगी तो ये आपके लिए विशेष रूप से फलदायी होगा। ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन पूजा कृष्ण भगवान को 56 भोग चढ़ाने से माता अन्नपूर्णा की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है और घर में कभी भी अन्न धन की कमी नहीं होती है। परमब्रह्म श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को पकवान बनाते देखा। गोकुलवासियों को पूजा की तैयारियों में व्यस्त देख श्री कृष्ण ने योशदा मईया से पूछा कि ब्रजवासी किसकी पूजा करने की तैयारी कर रहे हैं। जवाब मिला कि ब्रजवासी इंद्र देव की पूजा करेंगे। कान्हा की लीला में दूसरा सवाल आया। इंद्रदेव की पूजा क्यों, इस पर माता यशोदा बताया, इंद्रदेव वर्षा करते हैं। अच्छी वर्षा अन्न की अच्छी पैदावार के लिए जरूरी है। इसी से गायों को चारा मिलता है। कन्हैया ने कहा कि वर्षा तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। यदि पूजा ही करनी है तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारी गायें गिरिराज गोवर्धन पर चरती हैं। वहीं से फल-फूल, सब्जियां भी मिलती हैं। कान्हा का तर्क सुनकर ब्रजवासी इंद्रदेव को छोडक़र गिरिराज गोवर्धन की पूजा करने लगे। देवराज इंद्र ने कृष्ण लीला को अपमान समझा। बाद में भयंकर बारिश और जलप्रलय जैसे मंजर के बीच कान्हा ने गिरिराज गोवर्धन को उंगली पर धारण किया। लोगों ने परमावतार कृष्ण के दर्शन किए और इसी दिन से गोवर्धन पूजा की परंपरा शुरू हो गई। 56 भोग लगाने की परंपरा के कारण इसे अन्नकूट भी कहा जाने लगा। हमारे सनातन धर्म में अन्नकूट महोत्सव की प्रसादी का काफी महत्व है।
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