सीहोर : कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में बृजधाम की झलक - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

सीहोर : कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में बृजधाम की झलक

  • डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने की अन्नकूट की प्रसादी ग्रहण की, गिरिराज को लगाए 56 भोग में तीन प्रकार की खीर और एक दर्जन से अधिक प्रकार की मिठाईयों और औषधीय पकवान

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सीहोर। प्रतिवर्ष अनुसार इस वर्ष भी जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में सोमवार की सुबह बृजधाम की झलक दिखाई दी। मंदिर परिसर में भव्य रूप से गोवर्धन सजाया और 56 भोग से गिरिराज की झांकी के समक्ष सजाए गए थे। यहां पर हजारों की संख्या में आए श्रद्धालुओं ने दर्शन के उपरांत महा प्रसादी ग्रहण की। 56 प्रकार के भोग में तीन प्रकार की खीर, अनेक प्रकार के भाजिया, एक दर्जन से अधिक मिठाईयों के अलावा औषधीय पकवान शामिल थे। इस मौके पर सुबह मंदिर में अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक भागवत भूषण पंडित प्रदीप मिश्रा ने यहां पर आए श्रद्धालुओं के समक्ष महा आरती की और उसके पश्चात प्रसादी का वितरण किया। मंदिर परिसर में पिछले दो दिनों से भक्तों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था। शनिवार और रविवार को शहर सहित आस-पास के सभी होटल, धर्मशाला में श्रद्धालु ठहरे हुए थे, वहीं सोमवार को करीब डेढ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की। सुबह दस बजे से भोजन प्रसादी का क्रम आरंभ हो गया था। इसके पश्चात मंदिर परिसर में बनी गौशाला में भागवत भूषण पंडित श्री मिश्रा ने पहुंचकर गो माता की पूजा अर्चना की और गोपाष्टमी के पर्व की सभी को बधाई भी दी।  परम्परानुसार गोपाष्टमी के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक भागवत भूषण पंडित श्री मिश्रा सहित विठलेश सेवा समिति के पदाधिकारियों की मौजूदगी में मंदिर परिसर के विशाल हाल में अन्नकूट दर्शन का आयोजन किया गया और उसके पश्चात गौ माता एवं गोवर्धन नाथ की आरती के पश्चात बाबा गोवर्धन नाथ जी एवं कुबेरेश्वर महादेव का प्रसादी का वितरण किया गया। इस मौके पर हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की। इस संबंध में जारी देते हुए विठलेश सेवा समिति के मीडिया प्रभारी प्रियांशु दीक्षित ने बताया कि सुबह से ही यहां पर समिति के कार्यकर्ताओं ने गिरिराज जी के समक्ष छप्पन प्रकार से अधिक व्यंजनों का भोग लगाया गया था। इस भोग में पोषक तत्वों वाली खाद्य सामग्री शामिल की गई। इनमें करीब एक दर्जन से अधिक प्रकार की विभिन्न प्रकार की मिठाईयों के अलावा इम्युनिटी को मजबूत करने वाली औषधीय सामग्री जैसे तुलसी, नारियल, अदरक, दही, पनीर, आंवला, पालक, मैथी, ड्राय फू्रट्स, सभी प्रकार की मिश्रित सब्जी, पंचामृत, खीर, गुलाब जामुन, पेड़ा, मोहनथाल, हलवा,  लड्डू  धनिया पंजीरी, मूंग दाल हलवा, मालपुआ, रबड़ी,  दाल चावल  कढ़ी,  खिचड़ी, मुरब्बा, ताजे फल और सूखे फल आदि के पकवान शामिल थे। वहीं श्रद्धालुओं के लिए विशेष प्रकार की शुगर फ्री मिठाई भी बनाई गई थी।


आरती के पश्चात श्रद्धालुओं को अन्नकूट की प्रसादी के साथ भोजन का वितरण

भगवान की पूजन के पश्चात विभिन्न मिश्रित सब्जियों, पूड़ी, कढ़ी,  खीर, सेवा-नुक्ती आदि भोजन के अलावा प्रसादी का वितरण किया गया।  इस भव्य अन्नकूट उत्सव में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की। अन्नकूट महोत्सव में देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालुओं ने गिरिराज के दर्शन किए। इस मौके पर भागवत भूषण पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि श्री कृष्ण को अन्नकूट का प्रसाद चढ़ाएंगी तो ये आपके लिए विशेष रूप से फलदायी होगा। ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन पूजा कृष्ण भगवान को 56 भोग चढ़ाने से माता अन्नपूर्णा की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है और घर में कभी भी अन्न धन की कमी नहीं होती है। परमब्रह्म श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को पकवान बनाते देखा। गोकुलवासियों को पूजा की तैयारियों में व्यस्त देख श्री कृष्ण ने योशदा मईया से पूछा कि ब्रजवासी किसकी पूजा करने की तैयारी कर रहे हैं। जवाब मिला कि ब्रजवासी इंद्र देव की पूजा करेंगे। कान्हा की लीला में दूसरा सवाल आया। इंद्रदेव की पूजा क्यों, इस पर माता यशोदा बताया, इंद्रदेव वर्षा करते हैं। अच्छी वर्षा अन्न की अच्छी पैदावार के लिए जरूरी है। इसी से गायों को चारा मिलता है। कन्हैया ने कहा कि वर्षा तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। यदि पूजा ही करनी है तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारी गायें गिरिराज गोवर्धन पर चरती हैं। वहीं से फल-फूल, सब्जियां भी मिलती हैं। कान्हा का तर्क सुनकर ब्रजवासी इंद्रदेव को छोडक़र गिरिराज गोवर्धन की पूजा करने लगे। देवराज इंद्र ने कृष्ण लीला को अपमान समझा। बाद में भयंकर बारिश और जलप्रलय जैसे मंजर के बीच कान्हा ने गिरिराज गोवर्धन को उंगली पर धारण किया। लोगों ने परमावतार कृष्ण के दर्शन किए और इसी दिन से गोवर्धन पूजा की परंपरा शुरू हो गई। 56 भोग लगाने की परंपरा के कारण इसे अन्नकूट भी कहा जाने लगा। हमारे सनातन धर्म में अन्नकूट महोत्सव की प्रसादी का काफी महत्व है।

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