- 2022 तक सबों को पक्का मकान देने की केंद्र की घोषणा फ्लॉप साबित हुई, नया वास-आवास कानून बनाने की खेग्रामस की मांग की हुई पुष्टि
बिहार में भूमिसुधार की प्रक्रिया पर भाजपाई बुलडोजर के चलते पिछले 15 वर्षों से वह ठहरी हुई है, जिसके कारण बड़ी आबादी गरीबी के दुष्चक्र से बाहर नहीं निकल पा रही है। भूमि की मिल्कियत की रिपोर्ट आने से ही बिहार की वास्तविक सामाजिक-आर्थिक तस्वीर सामने आएगी। आवासीय स्थिति की तस्वीर भी भयावह है जो दिखलाता है कि प्रधानमंत्री आवास योजना खासकर 2022 तक सबों को पक्का मकान देने की घोषणा फ्लॉप हो गई है। रिपोर्ट से खेग्रामस-भाकपा माले के हाउसिंग राइट आंदोलन की पुष्टि होती है। बिहार के 36.76 परिवार के पास ही दो या दो से अधिक कमरे वाला पक्का मकान है। इसका मतलब यह हुआ कि राज्य की बड़ी आबादी भारी आवास संकट के दौर से गुजर रही है। अत्यंत पिछड़ा वर्ग में 15.49 झोपड़ी में और 28.71 टीना छत या खपरैल वाले परिवार हैं। दलितों में यह आंकड़ा क्रमशः 16.08 और 40.96 है। झोपड़ी और टीना छत-खपरैल वाले परिवारों में बहुतायत ऐसे परिवार हैं जिनके पास घर वाली जमीन का मालिकाना हक नहीं है। तमाम अनधिकृत बसावट का मुकम्मल सर्वे के बाद ही सही तस्वीर सामने आएगी। इसलिए मुकम्मल सर्वे का आधार पर नया वास-आवास कानून बनाने की मांग जो खेग्रामस के बेतिया सम्मेलन से की गई है वो राज्य के लिए निहायत जरूरी है। बिहार को गरीबी के दुष्चक्र से निकालने के लिए दलित-गरीबों के 5 गारंटी आंदोलन अहम है। सरकार को गरीबी उन्मूलन का समग्र कार्ययोजना बनाना चाहिए। शिक्षा-रोजगार में अत्यंत पिछड़ों-अतिपिछड़ों-दलितों-पसमांदा जमात के लोगों की कम हिस्सेदारी चिंताजनक है, सरकार को फौरी कार्ययोजना बनानी चाहिए।
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