मेरा अभीष्ट यह रहा कि इस संग्रह में ऐसे निबंधों को दिया जाए जो सारगर्भित ही न हों अपितु पाठकों को कश्मीर के प्राचीन और अर्वाचीन जीवन,इतिहास,संस्कृति और विविधायामी साहित्यिक ‘रस-रंग’ से रू-ब-रू करा सकें। पिछले तीन दशकों से कश्मीर सामाजिक-राजनीतिक कारणों से अशांत भी रहा है।इन कारणों और उनसे जनित दुष्परिणामों का भी इस पुस्तक में यहाँ-वहाँ उल्लेख किया गया है।मेरी यह पुस्तक विश्व-पुस्तक मेले में रिलीज़ होने वाली थी। कोविड की बढ़ती चुनौती के मद्देनज़र चूंकि ‘मेला’ स्थगित हुआ है, अतः अब सीधे प्रकाशक/अमेज़न से उपलब्ध होगी।
—डॉ० शिबन कृष्ण रैणा—
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