- साहिर लुधियानवी रूमान और इंकलाब के शायर थे, हिंदी- उर्दू के साहित्यकार और आलोचक शामिल हुए
पटना, 15 नवंबर । प्रगतिशील लेखक संघ , पटना द्वारा माध्यमिक शिक्षक संघ भवन साहिर लुधियानवी जन्मशताब्दी पर केंद्रित कार्यक्रम "साहिर लुधियानवी एक सदी की दास्तान" का आयोजन किया गया। प्रोफेसर तरुण कुमार की अध्यक्षता में पहले सत्र का प्रारंभ साहिर लिखित गीतों के गायन से हुआ। आगत अतिथियों का स्वागत गजेंद्रकांत ने किया। प्रगतिशील लेखक संघ की पटना इकाई के इस आयोजन में बड़ी संख्या में हिंदी - रुर्दू के अजीब, शायर, साहित्यकार, रंगकर्मी, साहित्यकार, समाजिक कार्यकर्ता, छात्र संगठन, ट्रेड यूनियन सहित विभिन्न जन संगठनों के प्रतिनिधि शामिल थे। गायक रवि किशन ने साहिर के कुछ गीतों से कार्यक्रम का प्रारंभ किया। मो आसिफ अली ने अपने परिचयात्मक अभिभाषण में उनके जीवन के तमाम पहलुओं पर प्रकाश डाला। प्रगतिशील लेखक संघ के उपमहासचिव अनीश अंकुर ने विषय प्रवेश के दौरान साहिर लुधियानवी की प्रगतिशील चेतना को रेखांकित करते हुए कहा " उन्होंने पहली बार गीतों को मार्क्सवादी विचारधारा से जोड़ने का काम किया। उन्होंने पहली बार गरीबों और वंचितों की आवाज को अपने अपने गीतों जगह दी। वे सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय एकता के मिसाल थे। वे लाहौर जाकर देर भारत लौट आने का दूरदर्शी फैसला लिया। वे भारत आकार तरक्की पसंद तहरीक के साथ जुड़े। कम्युनिस्ट पार्टी से उनके ताल्लुकात थे। " ए.एन कॉलेज में उर्दू के प्राध्यापक मणिभूषण जी ने अपने व्याख्यान में कहा " वे मजलूमों की आवाज बनते हैं। वे अपने जमाने की शायरी का जायजा लेने का काम करते हैं। इकबाल उनके प्रिय शायर थे पर जब इकबाल मुसोलिनी पर शेर लिखते हैं तो वे उन्हें भी नहीं छोड़ते। उनकी आलोचना करते हैं। ऐसे तमाम शायरों की खबर लेते हैं जो साम्राज्यवाद के पक्ष में शायरी करते हैं। "
कॉमर्स कालेज में उर्दू के प्रोफेसर सफदर इमाम कादरी ने कहा ' साहिर काल तरक्की पसंद लोगों का स्वर्ण युग है। लाहौर के साहित्य कारखाने से साहिर भी हमारे बीच आते हैं। वे चमकता हुआ एक सितारा थे। वे बहुत कम उम्र में पत्रकारिता से जुड़ गए।उनका गद्य उसी समय का है। उनमें जबरदस्त साहित्यिक उठान थी जिसे देखकर लोग चकित रह जाते हैं। परिणाम स्वरुप उन्हें कृष्ण चंदर जैसे साहित्यकार का साथ मिलता है। उनकी लोकप्रियता ही उनका दुश्मन बन गया जिसके कारण उनका सही सही मूल्यांकन नहीं हो पाया। कमोबेश आज भी वही स्थिति है।जबकि वे वैश्विक संदर्भों के कवि हैं। बौद्धिकता उनकी सबसे बड़ी शक्ति है। " प्रसिद्ध कवि आलोक धन्वा ने साहिर के जीवन के कई छुए-अनछुए पहलुओं को उदघाटित करते हुए कहा " इतिहास को जाने बिना हम गूंगे-बहरे होते हैं। इतिहास हमें भाषा देता है,जबान देता है। इतिहास को जानना साहिर को जानना है। साहिर हमारी धड़कनों को झकझोरते हैं। वे भारतीय कौम को आवाज देने वाले शायर हैं। " मरजान अली ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा " वे सच्चे अर्थों में सेक्यूलर थे। उनके गीतों में उस समय के सामाजिक यथार्थ के लगभग सभी रंग मौजूद हैं। उनके नज़्म इन्कलाबी हैं। " पटना कॉलेज के प्रचार्य प्रोफेसर तरुण कुमार ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा " देर से ही सही हमनें साहिर को याद तो किया । कविता और राजनीति का रिश्ता गहरा होता है यह पहली बार साहिर की शायरी में दिखता है। रुसी क्रांति के बाद पूरे विश्व का साहित्य बदलाता है और वही रुझान साहिर में हम देखते हैं। इसके बाद साहित्य में प्रगतिशीलों की पूरी जमात खड़ी हो जाती है। पहले सत्र का संचालन गजेन्द्र कान्त शर्मा द्वारा किया गया। "
दूसरा सत्र : साथी हाथ बढ़ाना
साहिर लुधियानवी : एक सदी की दास्तां के दूसरे सत्र का विषय था " साथी हाथ बढ़ाना "। इस सत्र के शुरुआत रविकिशन द्वारा ' जिन्हें नाज़ है हिंद पर कहां हैं ' द्वारा इस सत्र का संचालन प्रलेस के जयप्रकाश ने किया। तरन्नुम जहां ने अपने संबोधन में कहा " साहिर ने अमन और तहज़ीब की बातें की और पूरी दुनिया में अमन के पैगंबर की तरह नजर आए। उन्होंने तकसीमे हिंद के खिलाफ काफी कुछ लिखा। उनके तवील नज्म है 'परछाइयां ' जो जंग की नाकाबिले हालात की चर्चा कर उसकी मुखालाफत करते हैं। दो दिलों के भाने ड्रामाई अंदाज में बातें करते हैं जिस तरह मीर ने अपबीती को जागबीती बनाया ठीक उसी प्रकार साहिर करते हैं। " अलीना अली मल्लिक ने साहिर के काव्य संग्रह 'गाता गाए बंजारा ' के बारे में बात करते हुए कहा " साहिर की ज़िंदगी को उसके जाती जिंदगी से अलग कर में मेरा मानना यह है की कोई अदब खला में पैदा नहीं होता। साहिर 1950 में अपनी वालिदा को दूसरी बार बंबई लेकर आए और इस शहर में 1980 तक रहे। साहिर के फिल्मी गीतों के संख्या बहुत ज्यादा है। 'गाता गए बंजारा ' से पता चलता है की इस संग्रह के गीत वही हैं जिससे हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। साहिर ने एस. डी बर्मन और ओ पी नय्यर से मिलकर फिल्मी जगत में धूम मचा दी। साहिर गायकों से ज्यादा पैसा लिया करते थे। उन्होंने खय्याम, एन दत्ता, रवि के साथ भी काम किया। " आफसा बानो ने साहिर लुधियानवी ने औरतों के किरदार के बारे में बात करते हुए कहा " साहिर की शायरी में औरत वक्त के आगे बेबस तो नजर आती है लेकिन हिम्मत से काम लेती नजर आती है। साहिर ने औरतों को उनके नाजो अदा से बाहर करके उसे इंसानी वजूद प्रदान किया। साहिर अपनी महबूबा को संबोधित अपनी नज्म में 'मता ए गैर ' लिखी। साहिर ने बेहद खूबसूरत और फनकारा अंदाज में अपनी बातें की है। "
शगुफ्ता नाज ने साहिर के 'समाजी और सियासी शऊर', फरहत सगीर ने 'साहिर की शायरी में रूमानियत' नाहिद परवीन ने 'साहिर ने शायरी में औरतों का तसव्वुर' और कृष्ण समिध ने भी अपनी बातें रखी। अध्यक्षीय वक्तव्य शायर संजय कुमार कुंदन ने दिया । कार्यक्रम के अंतिम सत्र में काव्य पाठ का आयोजन शायर शाहिद अख्तर की सदारत में किया गया। जिन कवियों ने पाठ किया उनमें थे निविदिता झा, निखिल आनंद गिरि, नरेंद्र कुमार, राजेश कमल , प्रियदर्शी मातृ शरण आदि। इस सत्र का संचालन युवा कवि चंद्रबिंद ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम के परिकल्पक मणिभूषण कुमार ने दिया। कार्यक्रम के प्रमुख लोगों में थे नूर हसन, गौहर, अरुण सिंह, रमेश सिंह, मीर सैफ अली, सिकंदर-ए आजम, पंकज प्रियम, विजय कुमार सिंह, विश्वजीत कुमार, पीयूष रंजन झा, बिट्टू भारद्वाज, सुशील कुमार, इंद्रजीत कुमार, देवरत्न प्रसाद, राजकुमार शाही, अरुण मिश्रा, गोपालनशर्मा, रंजीत कुमार, राकेश कुमुद, विनोद कुमार वीनू , पुरुषोत्तम, अमन , राज आनंद , सीटू तिवारी , राजन बिंदेश्वर गुप्ता आदि प्रमुख हैं।
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