रांची. अविभाजित बिहार अंतर्गत छोटानागपुर में चार जर्मन मिशनरियों के आगमन का178 वां वर्ष पूरा हो गया. इन चार मिशनरियों में एमिल शत्स, फ्रद्रिक वत्स, अगस्तुस ब्रांत और ई. थियोडोर यानके शामिल थे.वे 1844 में जर्मनी के बर्लिन शहर से फादर योहनेस एंवजेलिस्ता गोस्सनर साहब के निर्देशानुसार पूरे परिवार के साथ पहली बार छोटानागपुर में प्रथम ईसाई धर्म प्रचारक के रूप में रांची पहुंचे और दो नंवबर 1945 को वर्तमान बेथेसदा स्कूल समीप जीइएल चर्च कंपाउंड स्मारक पत्थर पास अपना शिविर लगाया. यही से छोटानागपुर में गोस्सनर एवंजेलिकल लूथेरान (जीइएल)चर्च का कार्य शुरू हुआ.फादर गोस्सनर ने इन चार मिशनरियों को वर्मा देश के मेरगुई शहर में सुसमाचार का प्रचार करने के लिए भेजा था. लेकिन, तत्कालीन समस्याओं के कारण वे छोटानागपुर पहुंच गए. उन्होंने यहां शिक्षा के साथ स्वास्थ्य सहायता का कार्य आरंभ किया.इसी क्रम में 25 जून,1846 को मर्था नामक बालिका का प्रथम बार बपतिस्मा हुआ. वृहद रूप में जीइएल चर्च छोटानागपुर व असम के मसीहियों ने छोटानागपुर में मसीही बनने वाले प्रथम चार उरांव, हेथाकोटा के पाहन नवीन डोमन तिर्की, चिताकुनी के केसो भगत व बंधु उरांव और करंदा के घूरन उरांव को स्मरण किया.नौ जून 1850 को चार उरांव हेथाकोटा के पाहन नवीन डोमन तिर्की, चिताकुनी के केसो भगत व बंधु उरांव और करंदा के घूरन उरांव ,1851 में दो मुंडा, एक अक्टूबर 1855 को नौ बंगाली व आठ जून 1866 को दोर खड़िया सहित 10 मई 1868 हो परिवार ने जीइएल चर्च कलीसिया में बपतिस्मा लिया. इसी दौरान पहली बार प्रथम गिरजाघर के रूप में 18 नंवबर, 1851 में रांची ख्रीस्त गिरजाघर का शिलान्यास रखा गया.इन चार मिशनरियों ने काफी लंबे समय तक छोटानागपुर में सुसमाचार प्रचार किया. 10 जुलाई, 1919 में जीइएल चर्च स्वायत्त हो गया.चर्च का संचालन छोटानागपुर के भारतीय लोगों के हाथ में आई. प्रथम भारतीय प्रेसीडेंट पादरी हानुक दत्तो लकड़ा व सचिव पीटर हुरद बने.
173 साल पूर्व 09.06.1850 को बपतिस्मा संस्कार ग्रहण कर मसीही धर्म स्वीकार किया था़.इस अवसर पर जीइएल चर्च के सदस्यों ने क्राइस्ट चर्च, मेन रोड में लगे स्मारक पत्थर पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें स्मरण किया़ धन्यवादी आराधना भी हुई़ इस अवसर पर बिशप जॉनसन लकड़ा ने कहा कि यह दिन प्रथम वयस्क बपतिस्मा दिवस है़ फादर गोस्सनर ने बर्मा के करेन में सुसमाचार प्रचार के लिए चार मिशनरियों को भेजा था. लेकिन ईश्वर की इच्छा से वे चारों दो नवंबर 1845 को छोटानागपुर पहुंचे.पांच वर्षों तक सेवा कार्य से अथक जुड़े रहे़ उनके कठिन परिश्रम का परिणाम था कि छोटानागपुर के चार वयस्क व्यक्तियों ने नौ जून 1850 को बपतिस्मा लेकर प्रभु का वचन ग्रहण किया. बिशप ने कहा कि उन मिशनरियों ने जब इस बात की जानकारी फादर गोस्सनर को दी, तब उन्होंने एक बड़े गिरजाघर के निर्माण का सुझाव दिया. इसके लिए 13 हजार रुपये दिये़ उन दिनों यह रांची का सबसे बड़ा भवन था.चार मसीहियों से शुरू हुई यह संख्या पिछले साल की जनगणना तक तीन लाख, 81 हजार 487 तक पहुंच गयी. वर्तमान में इस चर्च का विस्तार 12 राज्यों में है़ बिशप ने कहा कि पूर्वजों को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके विश्वास की रक्षा करें. धन्यवादी आराधना में रेव्ह सीमांत तिर्की, रेव्ह बेंजामिन टोपनो, रेव्ह एमएस मंजर, रेव्ह ममता बिलुंग, रेव्ह अनूप जॉली भेंगरा और अन्य मौजूद थे.शाम को हुई आत्मिक जागृति सभा में मॉडरेटर बिशप जोहन डांग ने संदेश दिया.
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