वाराणसी : व्रती महिलाओं ने अस्ताचलगामी सूर्य को दी अर्घ्य - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 19 नवंबर 2023

वाराणसी : व्रती महिलाओं ने अस्ताचलगामी सूर्य को दी अर्घ्य

  • घाटों पर आस्थावानों की रही भीड़, नदियो से लेकर तालाबों व कुंडो तक दी अर्घ्य, सुरक्षा का रहा तगड़ा इंतजाम 

Chhath-sandhya-arghya
वाराणसी (सुरेश गांधी) लोक आस्था का महापर्व छठ के मौके पर लोगों का उत्साह चरम पर है. धर्म एवं आस्था की नगरी काशी पूरे पूर्वांचल में छठ की धूम है। 36 घंटे के इस महाव्रत को लेकर पूरे दिन तैयारियां होती रही। मौका जब ढलते सूर्य को अर्घ देने की आयी तो घाटों पर चारों तरफ आशीर्वाद रूपी किरणें ही बरसती दिखी। घाट पर हर कोई भगवान भास्कर को नमन करते दिखा। व्रती महिलाएं भगवान सूर्य की उपासना कर अपने संतान की लंबी उम्र, समृद्धि व परिवार की खुशियों की मन्नतें मांगती दिखी। हर जुबान पर छठ मईया के गीत बाट जे पूछेला बटोहिया, बहंगी केकरा के जाय..., कांच ही बांस के बंहगिया, बहंगी लचकत जाए... ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया। या यूं कहे पूरा पूर्वांचल छठ के रंग में सराबोर नजर आया। किसी के माथे पर सूप-दउरा किसी के कांधे पर ईख। हर तरफ उत्साह का माहौल रहा। गंगा से लेकर नदी, तालाबों, कुंडो के किनारों पर आस्था का अलौकिक नजारा देखा गया। बड़ी संख्या में लोग घाटों पर पहुंचे। सोमवार को महापर्व के अंतिम दिन उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जायेगा। इसके बाद व्रत का पारण के साथ ही चार दिवसीय छठ महापर्व का समापन हो जायेगा। घाटों पर सुबह से ही आज नजारा आम दिनों से अलग हट कर था। दोपहर बाद छठ मइया के भक्त बड़ी संख्या में डाला उठाए गंगा समेत जल स्थलों की ओर कूच कर गए। सूर्य अस्त होते ही व्रतियों का सैलाब घाट पर उमड़ गया। सायंकाल घाटों पर छठ मइया के पावन गीत गाते, गुनगुनाते कमर भर जल में खड़े होकर भगवान सूर्य देव के डूबने का इंतजार किया। आसमान में जैसे ही डूबते सूर्य की लालिमा छाते ही सस्वर मंत्रों के बीच श्रद्धालुओं ने जलांजलि व दुग्धाजंलि समर्पित कर दिया। व्रतियों ने कमर तक पानी में पैठ कर भगवान सूर्य की प्रदक्षिणा भी की। इस दौरान घाटों पर अपार भीड़ लगी रही। ग्रामीण अंचलों में भी व्रतियों ने जोड़े नारियल, सेव, केला, घाघरा निंबू, ठेकुंआ से अर्घ्य दिया। इससे पहले घाटों पर बच्चों ने जमकर आतिशबाजी की। इस दौरान चहुंओर छठी मैया के गीत गूंजते रहे।


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छठ के गीतों ने गंगा-वरुणा के तटों, कुंडों, सरोवरों के किनारे लोक पर्व की महिमा से हर तन-मन को सींचा। कमर या घुटने तक जल में खड़ी व्रती महिलाओं ने एक तरफ शुभ के प्रतीकों से सजा डाला लेकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया तो दूसरी ओर उनके परिजनों, रिश्तेदारों ने बैंडबाजे, नगाड़े की धून पर थिरकते नजर आएं। ग्रामीणे अंचला में भी सूर्योपासना के लिए दोपहर बाद उमड़े व्रतियों के जन सैलाब से घाटों का नजारा बदल गया। नए परिधानों में सज-धज कर महिलाएं घरों से अर्घ्य देने के लिए निकलीं तो तमाम लोग उन रास्तों की धूल बटोरने लगे। कुछ महिलाएं लेटते हुए घाटों, कुंडों पर पहुंची तो कुछ लकड़ी से रास्ता नापते हुए। शाम चार बजे तक दशाश्वमेध घाट, शीतला घाट, अहिल्याबाई घाट, दरभंगा घाट, राण महल के अलावा केदार घाट, हनुमान घाट, शिवाला घाट से लेकर अस्सी, नगवा, सामने घाट से विश्व सुंदरी पुल तक व्रतियों की एक समान शृंखला सी बन गई। सूप, दउरी में अल्पनाओं से सजे कलश पर जलता हुआ दीया लेकर व्रतियों के पति, पुत्र या भाई, भतीजे अर्घ्य दिलाने के लिए आगे-आगे चल रहे थे और उनके पीछे परिचितों की भीड़। संतान की कामना और अचल सुहाग के निमित्त जिसके मनोरथ पूरे हुए थे, वह उसी तरह बधाई बजवाते हुए घाटों पर पहुंचा। वेदियों पर हल्दी से शुभ के प्रतीक बनाए गए। गन्ने के मंडप के नीचे पांच, 11, 21 दीये जलाकर अनार, सेब, संतरा, केला, अन्ननास, नारियल, चना, गुड़-आटे का खास्ता भोग के रूप में अर्पित किया गया। अर्घ्य देने के बाद तमाम व्रती महिलाएं वेदियों के पास रात भर छठ माता की आराधना कर जागरण करेंगी। जगह-जगह घाटों, कुंडों को लतर और फूलों से सजाया गया है।

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