वाराणसी : आस्था के महापर्व को लेकर सजे छठ घाट, आज हर किरण से बरसेगा आशीष - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 18 नवंबर 2023

वाराणसी : आस्था के महापर्व को लेकर सजे छठ घाट, आज हर किरण से बरसेगा आशीष

  • भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के लिए नदी और तालाबों के किनारे उमड़ेगी छठ व्रतियों की भीड़
  • प्रशासन के किए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम, घाट किनारे अनहोनी से निपटने के लिए तैनात रहेंगे एनडीआएफ के जवान

Chhath-ghat-varanasi
वाराणसी (सुरेश गांधी) लोक आस्था के महापर्व छठ की चारों तरफ धूम है। पूरा माहौल छठ के गीतों से भक्तिमय हो गया है। सभी लोग अपने-अपने तरीके से साफ- सफाई से लेकर व्रतधारियों की सेवा में लगे हुए हैं। जबकि सायंकाल खरना के साथ व्रतियों का 36 घंटे का महान अनुष्ठान की शुरुआत हो गया है। उधर, प्रशासन ने घाटों पर उमड़ने वाली भीड़ के मद्देनजर पुख्ता इंतजाम किए है। रविवार को शहर से लेकर देहात में घाटों पर शाम को आशीर्वाद रूपी किरणें बरसेगी। भगवान भास्कर को नमन करने के लिए छठ व्रती दोपहर बाद से ही घाटों पर पहुंचने लगेंगे। छठ पर्व को लेकर तालाब, कुंड, नदी व गंगा के घाट रोशनी से जगमगा उठे हैं। सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं। रविवार को सायंकाल पहला अर्घ्य और सोमवार की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ 36 घंटे के निर्जला उपवास का समापन होगा। इससे पहले छठ के महापर्व के दूसरे दिन यानी शनिवार की शाम व्रतियों ने खरना किया। इस दौरान विभिन्न घाटों व घरों में व्रतियों ने पूरी आस्था और स्वच्छता के साथ खरना का प्रसाद खीर और रोटी का महाप्रसाद बनाया और ग्रहण करने के बाद भगवान भास्कर के भक्ति में लीन हो गए हैं। प्रशासन की ओर से व्रतियों के लिए गंगा नदी और तालाब के किनारे व्यापक व्यवस्था की हैं। गंगा के किनारे सभी 100 घाटों और तालाबों, पार्कों में व्रत धारी के लिए भगवान भास्कर को अर्घ्य देने की व्यवस्था की गई है। सभी घाटों पर सुरक्षा के प्रबंध किए गए है। किसी भी घटना की आशंका को लेकर इन घाटों पर पुलिस की तैनाती की गई है। श्रद्धा और विश्वास का महापर्व छठ प्रकृति के प्रति अपनी आस्था प्रदर्शित करने का ही नहीं है बल्कि परिवारों के पुनर्मिलन का भी है। परिवार के सदस्य देश-विदेश से पर्व के मौके पर एकजुट होते हैं। अर्घ्य देते समय पूरे परिवार की तरक्की और खुशहाली की कामना करते हैं।


स्वास्थ्य की संजीवनी है छठ

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छठ की हर रस्म प्रकृति व हमारे स्वास्थ्य से सीधी जुड़ी हैं। छठ में उपवास रहने से शरीर की कैलोरी जलती है। पाचन तंत्र ठीक रहता है। सुबह में पानी में खड़े होकर अर्घ्य देने के दौरान सूर्य की किरणें शरीर पर पड़ती हैं, उससे विटामिन डी की कमी की भरपाई हो जाती है। किसी तरह के चर्म रोग में इससे लाभ होता है। छठव्रती पानी में खड़े होकर अर्घ्य देती हैं। इससे सूर्य की किरण आंख के बीच संपर्क बनता है। कमर तक पानी में सूर्य की ओर देखना सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। त्वचा संबंधी रोगों में सूरज की किरणों से लाभ होता है। यह श्वेत रक्त कणिकाओं की कार्यप्रणाली में सुधार कर रक्त की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। सौर ऊर्जा हार्मोन के स्राव को नियंत्रित करने की शक्ति प्रदान करती है। रोज सूर्य ध्यान शरीर और मन को आराम देता है। ‘आरोग्यम भाष्करात इच्छेसु यानी सूर्य में आरोग्य देने की पूर्ण शक्ति है। सूर्य के सात घोड़े हैं, विज्ञान भी मानता है सूर्य की सात किरणें हैं। असल में ये सातों किरणें ही आरोग्य श्रोत हैं। सूरज की डूबती किरणें और सुबह की पहली किरणें हमारे शरीर को एक अलग ही ऊर्जा देती हैं, समग्र क्रांति के रूप में। प्रतिदिन सूर्योदय से डेढ़ घंटा पहले उठकर नित्यक्रियासे निवृत होकर सूर्य नमस्कार करने का विधान बताया गया है। ताम्बे के एक लोटा में स्वच्छ जल लेकर पूर्वाभिमुख होकर सूर्यार्घ्य दें। हस्त-मुद्रा चिकित्सा में भी सूर्य-मुद्रा के बारे में बतलाया गया है। अनामिका अंगुली को मोड़कर इसके ऊपरी पोर के भाग को अंगूठे के मूल पर लगाकर अंगूठे से दबाएं। कुछ देर दबाकर रखें। मन शांत होगा। मोटापा कम होगा। तनाव कम होगा। सूर्य को स्थावर और जंगम जगत की आत्मा कहा गया है। जीवन का प्राण सूर्य है।


भाई-बहन हैं छठी मइया और सूर्यदेव

यों तो षष्ठी तिथि के स्वामी कार्तिकेय हैं और इसी दिन देव सेनापति बने। षष्ठी देवी ही देवसेना हैं, जिन्हें छठी मइया कहते हैं, परंतु समाज में असम्बद्ध से भी संबंध बढ़ाने की परंपरा है। इसीलिए छठी मइया और भगवान सूर्य में भाई-बहन का संबंध होना बताया जाता है। जो समवयस्क सहकर्मी भिन्न लिंगवालों का सबसे पवित्र रिश्ता है और भारतीयता का परिपोषक है। ऐसा नाता, जो दोनों को साथ देखकर भी किसी तरह की कलुषित शंका जनमने नहीं दे सकता। संभवतः इसलिए भी दोनों की आराधना में एकत्व है, इसीलिए सूर्य-षष्ठीव्रत है।


ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं षष्ठी देवी

शास्त्रोंमें षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानस पुत्री, मनसा प्रकृति का अंश एवं मंगला चण्डी का रूप माना गया है। इन्हें कात्यायनी, देवसेना एवं शिवपुत्र स्कन्द की प्राणप्रिया भी कहा गया है। ये बालकों की रक्षिका है तथा निसंतान को पुत्र प्रदान करती है। शिशु जन्म के छठे दिन (छठियार), नामकरण, अन्नप्रासन आदि अवसरों तथा नवरात्र में छठे दिन (षष्ठं कात्यायनीतिच) अनिष्टकारी शक्तियों से रक्षा एवं दीर्ध आयुष्य के लिए इनके पूजन की परम्परा है।

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