आलेख : एड्स : मासूमों को जन्म के साथ मिल रहा है जीवन भर का दर्द - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

आलेख : एड्स : मासूमों को जन्म के साथ मिल रहा है जीवन भर का दर्द

देश में हर दिन एड्स की वजह से तकरीबन 115 लोगों की जान जा रही है. एड्स यानी एचआईवी या ह्यूमन इम्युनोडिफेशिएंसी वायरस. ये वायरस शरीर के इम्युन सिस्टम पर हमला करता है और उसे इतना कमजोर कर देता है कि शरीर दूसरा कोई संक्रमण या बीमारी झेलने के काबिल नहीं बचता. एचआईवी ऐसा वायरस है, जिसका समय पर अगर इलाज नहीं किया गया तो ये आगे चलकर एड्स की बीमारी बन जाता है. इसका अभी तक कोई पुख्ता इलाज नहीं है, लेकिन कुछ दवाओं के सहारे वायरल लोड को कम किया जा सकता है, जिससे शरीर का इम्युन सिस्टम मजबूत बना रहता है. लेकिन सबसे चौकाने वाली बात ये है कि अब ये मासूमों पर कहर बनकर टूट रही है। आंकड़ों के मुताबिक हर वर्ष देश में एक लाख से अधिक नवजात इसकी चपेट में आ रहे है। एचआईवी संक्रमित विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था में महिलाओं द्वारा बरती गयी लापरवाही मासूमों को जन्म के साथ ही जीवनभर का दर्द भी दे रही है

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फिरहाल, हमारे समाज में आज भी लोग कई बीमारियों को बताने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं. लोगों को यह लगता है कि लोग क्या सोचेंगे और जबतक वह किसी को बताने की हिम्मत जुटा पाते हैं, तबतक वह बीमारी ज्यादा प्रभावित हो जाता है और लोगों की जान तक पर बन आती है. उन्हीं बीमारियों में से एक है एड्स, जो हर साल सैकड़ों लोगों की जान ले रहा है। हालांकि एड्स एक खरनाक बीमारी जरुर है, लेकिन बचाव ही इसका सबसे बड़ा इलाज है. चिकित्सकों का कहना है कि इस बीमारी में शरीर का इम्यून एकदम से कमजोर हो जाता है. जिससे शरीर एक कमजोर हो जाता है और किसी भी बीमारी के चपेट में आने से लोगों की मृत्यु हो जाती है. आकड़ों के मुताबिक पूरे विश्व में 3.6 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं. इससे निपटने के लिए सरकार ने इस साल वर्ल्ड एड्स को लेट कम्युनिटिज लीड है। मतलब साफ है बीमारी से प्रभावित समुदायों को नेतृत्व करने की भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करना है। इस साल के वर्ल्ड एड्स डे के बचाव में जो कदम उठाये गये हैं. उसकी भी सहारना की जाएगी. ताकि समाज में नीची नजरों से देखे जाने की वजह से लोग खुलकर इस बीमारी के बारे में बात कर सकें. ताकि साल 2030 तक इसे जड़ से खत्म किया जा सके। लेकिन हाल के सालों में इसका सबसे बड़ा प्रभाव मासूमों पर देखा जा रहा है। दरअसल, एचआईवी एड्स के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। महिला पुरुष ही नहीं नवजात भी इसकी शिकार हो रहे हैं। पड़ताल में पता चला है कि ंनिजी व सरकारी अस्पतालों में हर वर्ष एक लाख से अधिक नवजात जन्म के बाद जांच में एचआईवी संक्रमित पाए जा रहे हैं, जो चिंता का विषय बना हुआ है। चिकित्सकों के अनुसार एचआईवी संक्रमित बच्चों का मानसिक व शारीरिक विकास प्रभावित होता है। उनमें वजन कम होना, बार-बार बीमार होने समेत कई अन्य लक्षण भी पाए जाते हैं। उनका कहना है की जांच में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। महिलाएं गर्भावस्था के दौरान एचआईवी जांच जरुर कराएं। गर्भावस्था के आठवें महीने में इसका पता चलता है, तब तक देर हो चुकी होती है। महिलाओं में यह संक्रमण पुरुषों की तुलना में दोगुना तेजी से फैलता है। संक्रमित महिला से शिशु में 45 फीसदी तक का खतरा होता है। लेकिन समय पर उपचार लेने पर खतरा टल जाता है।


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नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक 10 साल में भारत में 17 लाख से ज्यादा लोग असुरक्षित यौन संबंधों के कारण एड्स की चपेट में आए हैं. जबकि 2011 से 2021 के बीच 15,782 लोग ऐसे हैं जो संक्रमित खून के जरिए एड्स पॉजिटिव हुए हैं और 4,423 बच्चे माओं के जरिए संक्रमित हुए हैं. एड्स से संक्रमित होने का सबसे बड़ा कारण असुरक्षित यौन संबंध है. कई मामलों में संक्रमित खून के संपर्क में आने से भी संक्रमण हो जाता है. वहीं, बच्चों में ये संक्रमण उनकी मांओं से आ जाता है. इस वायरस को दुनिया में आए 40 साल से ज्यादा समय हो चुका है, लेकिन अब तक इसका कोई ठोस इलाज नहीं है. इससे संक्रमित लोगों को एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी दी जाती है, जिससे वायरल लोड कम होता है. अगर समय पर इलाज हो जाए तो काफी मदद मिलती है, लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो एचआईवी होने का खतरा बढ जाता है. आमतौर पर एचआईवी की चपेट में आने के कई सालों बाद एड्स की बीमारी होती है. बता दें, एड्स का पता तो 1981 में ही चल गया था, लेकिन भारत में इसका पहला मामला 1986 में सामने आया था. तब चेन्नई की रहने वालीं कुछ सेक्स वर्कर्स में इस संक्रमण की की पुष्टि हुई थी. उस समय तक दुनिया के कई देशों में एड्स पहुंच चुका था और भारत में भी इसकी एंट्री हो गई थी. एड्स के संक्रमण के मामले में भारत दुनिया मेंदूसरे नंबर पर है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2030 तक “एड्स के अंत“ तक पहुंचना अभी भी संभव है। हालांकि, यह तभी हो पाएगा, जब जब कम्युनिटीज बेहतर तरीक से लीड करें। इसके साथ ही प्रॉपर फंडिग दी जाए। हाल ही में यूएनएड्स ने अपनी वार्षिक विश्व एड्स दिवस रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में यह बात कही गई कि साल 2030 तक “एड्स को अभी खत्म किया जाना संभव है, बशर्ते कि इस दिशा में सही से प्रयास किए जाएं। रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में 39 मिलियन लोग एचआईवी से पीड़ित हैं। लिहाज़ा एचआईवी रोकथाम, टेस्टिंग, इलाज और देखभाल के लिए लोग जागरुक हो। रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 की बात की जाये, तो दुनिया भर में तक़रीबन 1.5 मिलियन लोगों को एचआईवी हुआ. और क़रीब साढ़े 6 लाख  लोगों की एड्स से संबंधित कारणों से मौत हुई है. जबकि दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में साल 2021 में अनुमानित 82 हज़ार लोगों की मौत एड्स से संबंधित कारणों से हुई है. जो कि वर्ल्ड लेवल पर 12 प्रतिशत से ज्यादा है.


केवल 22 फीसदी युवाओं को है जानकारी

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एक सर्वे के मुताबिक केवल 22 फीसदी नौजवानों को एड्स की रोकथाम के बारे में जानकारी है. साल 2020 के आखिर तक एचआईवी के साथ जी रहे लोगों को अपनी स्थिति के बारे में जानकारी थी. जबकि 61 प्रतिशत लोग एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी पर थे. इसके अलावा उन्होने जानकारी दी, कि पूरे क्षेत्र में करीब 95 प्रतिशत नए एड्स संक्रमित जैसे सेक्स वर्कर, ड्रग्स का इंजेक्शन लगाने वाले लोग, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुष और ट्रांसजेंडर लोगों में से हैं. नशीली दवाओं का इंजेक्शन लगाने वाले लोगों की टेस्टिंग के कवरेज में सुधार की गुंजाइश है. जबकि एड्स सेल्फ-टेस्टिंग और प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस जैसे गेम-चेंजिंग इनोवेशन कई देशों तक नहीं पहुंच पायी है. लिहाज़ा एड्स ने राजनीतिक नेताओं से कानूनों, नीतियों और प्रथाओं में फौरन सुधार करने की अपील की है।


क्या कहते हैं आंकड़े?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, अब भी ये वायरस हर साल लाखों लोगों को संक्रमित कर रहा है. 2021 के आखिर तक दुनिया में 3.84 करोड़ लोग ऐसे थे जो इस वायरस से संक्रमित थे. 2021 में दुनियाभर में  6.5 लाख लोगों की मौत का कारण एचआईवी ही था. 2021 में भारत में एड्स के 62,967 नए मामले सामने आए थे और 41,968 लोगों की मौत हो गई थी. यानी हर दिन औसतन 115 मौतें. आंकड़े बताते हैं कि 2021 तक भारत में 24 लाख लोग एचआईवी संक्रमित थे.


लक्षण

अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल के मुताबिक, एचआईवी से संक्रमित होने पर फ्लू जैसे लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे- बुखार होना, गला खराब होना या कमजोरी आना. इसके बाद इस बीमारी में तब तक कोई लक्षण नहीं दिखाई देते, जब तक एड्स न बन जाए. एड्स होने पर वजन घटना, बुखार आना या रात में पसीना आना, थकान-कमजोरी जैसे लक्षण दिखते हैं. आमतौर पर एचआईवी के एड्स में तब्दील होने में तीन स्टेज लगती है. पहली स्टेज : व्यक्ति के खून में एचआईवी का संक्रमण फैल जाता है. इस स्टेज में फ्लू जैसे लक्षण दिखते हैं. हालांकि, कई बार संक्रमित व्यक्ति को कोई लक्षण भी महसूस नहीं होते. दूसरी स्टेज : ये वो स्टेज होती है जिसमें संक्रमित व्यक्ति में कोई लक्षण नहीं दिखता, लेकिन वायरस एक्टिव रहता है. कई बार 10 साल से भी ज्यादा वक्त गुजर जाता है, लेकिन व्यक्ति को दवा की जरूरत नहीं पड़ती. इस दौरान व्यक्ति संक्रमण फैला सकता है. आखिर में वायरल लोड बढ़ जाता है और व्यक्ति में लक्षण नजर आने लगते हैं. तीसरी स्टेज : अगर एचआईवी का पता लगते ही दवा लेनी शुरू कर दी जाए तो इस स्टेज में पहुंचने की आशंका बेहद कम होती है. एचआईवी का ये सबसे गंभीर स्टेज है, जिसमें व्यक्ति एड्स से पीड़ित हो जाता है. एड्स होने पर व्यक्ति में वायरल लोड बहुत ज्यादा हो जाता है और वो काफी संक्रामक हो जाता है. इस स्टेज में बिना इलाज कराए व्यक्ति का 3 साल जी पाना भी मुश्किल होता है.


बचाव

  1. यौन संबंध के दौरान लगातार और सही ढंग से कंडोम का उपयोग करके सुरक्षित सेक्स का अभ्यास करें.
  2. एचआईवी के लिए रेगुलर टेस्ट करवाएं, खासकर अगर आप हाई जोखिम में हैं या आपके कई साथी हैं.
  3. यौन पार्टनर्स की संख्या सीमित करें और ऐसे पार्टनर चुनें जिनका एचआईवी टेस्ट भी किया गया हो.
  4. सुई या कोई अन्य दवा शेयर करने से बचें, क्योंकि इससे एचआईवी फैल सकता है.
  5. अगर आपको एचआईवी होने का खतरा ज्यादा है तो प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (पीआरईपी) पर विचार करें. च्तम्च् एक दैनिक दवा है जो एचआईवी ट्रांसमिशन के जोखिम को काफी कम कर सकती है.
  6. अगर आप एचआईवी पॉजिटिव हैं, तो अपने वायरल लोड को कम करने और वायरस को प्रसारित करने के जोखिम को कम करने के लिए अपने हेल्थ केयर प्रोवाइडर द्वारा निर्धारित एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (एआरटी) लगातार लें.
  7. एचआईवी/एड्स के बारे में खुद को शिक्षित करें.
  8. अगर आप गर्भवती हैं और एचआईवी पॉजिटिव हैं, तो अपने बच्चे में वायरस फैलने से रोकने के लिए उचित दवाएं लें.
  9. सेक्सुअल पार्टनर्स को अपनी एचआईवी हिस्ट्री के बारे में बताएं.
  10. उन पहलों को सपोर्ट करें और प्रचार करें जिनका उद्देश्य एचआईवी/एड्स से जुड़े कलंक को कम करना है, क्योंकि इससे जागरूकता बढ़ाने और व्यापक रोकथाम प्रयासों को प्रोत्साहित करने में मदद मिल सकती है.


जागरूकता

एड्स जागरूकता दिवस की आवश्यकता आवश्यक है क्योंकि एचआईवी संक्रमण वर्तमान में लाइलाज है, लेकिन इस बीमारी के बारे में अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा के साथ इसे नियंत्रित किया जा सकता है , खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। एक समय यह एक असहनीय पुरानी स्वास्थ्य स्थिति थी, लेकिन अब, अवसरवादी संक्रमण सहित एचआईवी की रोकथाम, निदान, प्रबंधन और देखभाल में प्रगति के साथ, एचआईवी से पीड़ित लोग लंबे समय तक और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। भारत में वर्ष 2019 में 58.96 हजार एड्स से संबंधित मौतें और 69.22 हजार नए एचआईवी संक्रमण सामने आए। वैश्विक स्तर पर, वर्ष 2021 में, 14.6 लाख लोगों (13 लाख वयस्कों और 15 वर्ष से कम उम्र के 1.6 लाख बच्चों) को एचआईवी (नए मामले) प्राप्त हुए, यह बीमारी घातक है, क्योंकि उसी वर्ष (2021) में 6.5 लाख एचआईवी रोगियों की मृत्यु हो गई। लगभग 3.84 करोड़ लोग (3.67 करोड़ वयस्क और 15 वर्ष से कम उम्र के 17 लाख बच्चे) एचआईवी संक्रमित बताए गए हैं (2021 तक), जिनमें से 4 फीसदी महिलाएं और लड़कियां हैं, जिनमें से अधिकांश प्रभावित लोग निम्न स्तर पर रहते हैं और मध्यम आय वाले राष्ट्र।


एचआईवी के वैश्विक तथ्य

2021 में, लगभग 85 फीसदी मरीज़ अपनी एचआईवी स्थिति को पूरी तरह से जानते थे, जबकि बाकी उनमें बीमारी की मौजूदगी से पूरी तरह अनजान थे। 2021 के अंत में, 75 फीसदी लोगों के पास एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (एआरटी) तक पहुंच थी, और एचआईवी से पीड़ित 81 फीसदी गर्भवती लोगों के पास गर्भावस्था और प्रसव के दौरान अपने बच्चों में एचआईवी के संक्रमण को रोकने के लिए एआरटी तक पहुंच थी। अनुमान है कि 2025 तक वैश्विक स्तर पर नए एचआईवी संक्रमण और एड्स से संबंधित मौतों में प्रति 100,000 जनसंख्या पर क्रमशः 4.4 और 3.9 की गिरावट आएगी, इसके बाद 2030 तक दोनों में 90 फीसदी की कमी आएगी। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। शिक्षा, उपचार और रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करने को विश्व स्तर पर बड़े पैमाने पर लागू किया जाना चाहिए।


रेड रिबन की सफलता

भारत में एचआईवी/एड्स से निपटने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) की स्थापना की। 2010 के बाद से, जब एनएसीपी ने नए एचआईवी संक्रमण और एड्स से संबंधित मौतों को 80 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य रखा था, जिसे हासिल कर लिया गया, एड्स से संबंधित मृत्यु दर में 82 फीसदी की गिरावट आई है। हालाँकि, नए एचआईवी संक्रमणों की वार्षिक संख्या में केवल 48 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। वैश्विक स्तर पर, 1988 से जागरूकता अभियानों का अस्तित्व एक बड़ा वरदान रहा है, क्योंकि 2010 के बाद से नए रोगियों की संख्या में 32 फीसदी की गिरावट आई है, और 2004 के बाद से एड्स से संबंधित मौतों में 68 फीसदी की कमी आई है।


सावधानियां

  • सुरक्षित संभोग
  • एसटीडी के लिए परीक्षण और इलाज कराएं
  • एकल यौन साथी
  • सुई साझा करने जैसी अस्वास्थ्यकर प्रथा से परहेज
  • एचआईवी के लिए परीक्षण करवाएं
  • एचआईवी रोकथाम दवाओं का उपयोग जैसे कि एक्सपोज़र से पहले और बाद में प्रोफिलैक्सिस


एड्स पीड़ितों के भी होते है स्वस्थ बच्चे

अमूमन एचआईवी पीड़ित महिलाएं शादी या संतानोत्पत्ति से बचती हैं। उन्हें डर रहता है उनकी संतान भी एचआईवी से ग्रसित हो सकती है, लेकिन एड्स पीड़ित नियमित इलाज से न सिर्फ गृहस्थ जीवन जी रहे हैं, बल्कि उनके आंगन में स्वस्थ बच्चों की किलकारियां भी गूंज रही हैं। मेडिकल कॉलेज का एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) सेंटर में जिन 50 गर्भवती महिलाओं का इलाज चल रहा है, उनमें से 90 प्रतिशत से ज्यादा के बच्चे एचआईवी नेगेटिव निकले हैं। गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार खाने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की दवाइयां दी जाती हैं।


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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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